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विचार के बिना अधूरी होती है रचना

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hastakshep
19 Oct 2019
हृदयेश बिना जोखिम की जोखिम भरी यात्रा : आत्मुग्धताओं और कुण्ठाओं का पुलिन्दा

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प्रलेसं के एक दिवसीय रचना शिविर में कविता, कहानी, लेखन पर हुआ विमर्श

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वरिष्ठ रचनाकारों से रू-ब-रू हुए युवा लेखक

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तेजी से बदलते समाज में रचनाकारों की दृष्टि और भूमिका पर हुई चर्चा

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भोपाल। बेहतर कविता लेखन के लिए कवि के पास "कवि हृदय" के साथ साथ "कवि मस्तिष्क" होना भी अपेक्षित है। विचार के बिना रचना अधूरी है। बदलते समय में रचनाकार को अपनी भूमिका को भी नए सिरे से तलाशना होगा। लेखक के लिए विभिन्न जीवनानुभवों से गुजरना बेहद जरूरी है। ये बिंदु मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेसं) की भोपाल इकाई की ओर से आयोजित एक दिवसीय रचना शिविर में चर्चा के दौरान सामने आए।

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भोपाल स्थित भारत ज्ञान विज्ञान समिति में आयोजित इस शिविर में 20 रचनाकारों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।

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वरिष्ठ कथाकार सुबोध श्रीवास्तव ने इन रचनाओं पर अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी दी। वरिष्ठ कथाकार रमाकांत श्रीवास्तव और कवि कुमार अंबुज ने रचना के रूप (फॉर्म), दृष्टि एवं रचनाकारों की भूमिका से जुड़े सवालों के जवाब दिए। इस दौरान पत्रकारिता और साहित्य के अंतर्संबंधों पर भी चर्चा हुई।

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इस अवसर पर प्रसिद्ध समकालीन कविताओं पर अनिल करमेले के बनाये गए पोस्टरों की प्रदर्शनी लगाई गई।

वरिष्ठ कथाकार स्वयं प्रकाश ने कहा कि तेजी से बदलती दुनिया में रचनाकारों को भी अपनी भूमिका नये सिरे से तलाश करना होगा। जनता के पास पहुंचने के नये तरीके ईजाद करना होंगे। संस्कृतिकर्मियों को अपने बदले हुए उत्तरदायित्व के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए।

रूप (फॉर्म) पर बात करते हुए कुमार अंबुज ने कहा कि

"कवि हृदय" के साथ "कवि मस्तिष्क" होना भी जरूरी है। कविता अपनी लंबी यात्रा में छंद से मुक्त होकर समकालीन कविता के इस रूप तक आई है। नए रचनाकारों को यदि छंद के साथ अपनी बात कहना भी है तो उसकी समृद्ध परंपरा को ध्यान में रखना उचित होगा। दृष्टि के संबंध में उन्होंने मुक्तिबोध को उदधृत करते हुए कहा कि ‘जीवन विवेक ही साहित्य विवेक है।‘ व्यक्ति अपने जीवन से परे होकर नहीं लिख सकता। राजनीति, समाज और जीवनदृष्टि एकदूसरे से गुंथे हुए हैं। बेहतर जीवन और साहित्य के लिए एक स्पष्ट वैचारिक दृष्टि की जरूरत होती है।

वरिष्ठ कथाकार रमाकांत श्रीवास्तव ने कहा कि कहानी या किसी रचना के अंत को पूर्व-निर्धारित ढंग से तय करके लिखना रचना के साथ अन्याय है। कहानी में कथ्य रचनाकार के अपने अनुभव से आता है लेकिन उसे व्यापक बनाने का काम भी रचनाकार का है। उन्होंने कहा कि विसंगतियों से असहमति और प्रतिरोध किसी रचना को मूल्यवान बनाते हैं।

रचनाओं पर बात करते हुए वरिष्ठ कथाकार सुबोध श्रीवास्तव ने कहा कि विभिन्न जीवन अनुभव रचना को बेहतर बनाते हैं, उसके लिए जनता से जीवंत संपर्क और यात्राएं अपेक्षित हैं। हमारी युवा पीढ़ी जागरूक है और वह अपने समय में हस्तक्षेप करना जानती है।

इस शिविर में वरिष्ठ कवि कुमार अम्बुज ने 'यातना शिविर', मोहन कुमार डहेरिया ने ‘महानायक नहीं है वह‘, अनिल करमेले ने ‘उपस्थित‘, शैलेंद्र शैली ने ‘सवाल तो होगा ही‘, आरती ने ‘मृत्यु शैया पर एक स्त्री का बयान‘, प्रज्ञा रावत ने ‘सुंदर दृश्य‘, सत्यम ने ‘मछली जल की रानी है‘, रवींद्र स्वप्निल प्रजापति ने ‘शहर से बाहर‘, संदीप कुमार ने ‘नियति‘, सचिन श्रीवास्तव ने ‘एक करीबी कवि के बारे में‘, दिनेश नायर ने ‘दूरियां‘, शेफाली शर्मा ने ‘अभी बाकी है‘, पूजा सिंह ने ‘उसका कमरा‘, मानस भारद्वाज ने ‘पिता‘और पिंटू अवस्थी ने ‘याद‘ कविता का पाठ किया।

दीपक विद्रोही और राजा वर्मा ने रिपोर्ताज और धर्मेंद्र कमारिया ने कवित्त का पाठ किया।

रचना शिविर का संचालन प्रलेसं की भोपाल इकाई के सचिव अनिल करमेले ने किया।

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