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#WorldDaughtersDay
एय मेरी तुलू ए नूर ..
तू बढ़ और छा जा अबद की काली रवायतों पर ..
कर शुरूआत नयी ..
लिक्ख उजाले अपनी लकीरों में ..
तू ख़ुशियों का अर्क पी ..
रक्साँ- रक्साँ बढ़ चल ..
हो बड़ी ..मेरे भरोसे पर ..
कि यह माँ ..
ता उम्र तुम्हारा साथ नहीं छोड़ने वाली ...
तू बेख़ौफ़ चल आगे ..
मैं साये की तरह चल रही हूँ ना ..पीछे- पीछे ..
तू कहीं भी कमज़ोर नही पड़ना ...
दुआओं का इक मज़बूत हाथ है तेरे सर पर ...
तू अपने हौसलें आज़मा तो सही ...
मैं देखूँ ...
कौन -कौन से मौसम ..डराते हैं ..
ख़फ़ा होते हैं तेरी परफिशानी से ...
तू अपनी उड़ानें ..बुलंदियों तलक ले जा ...
कि क़ाबे ने ..सरेआम क़बूला है ..
लिक्खा है पाकीज़ा किताबों के सुफेद सफ़हों पर बड़े ही पक्के हर्फ़ो से ...
कि मैं माँ हूँ ..
जन्नत यक़ीनन मेरे ही पाँव तले है ...
बुत खाने सुबूत हैं ..
कि आठ हाथों की रूहानी ताकतें मौजूदा हैं ..मेरे कने ......
मैं ठीक तुम्हारे पीछे खड़ी हूँ ...
गिर्दाब के रू़ख पलटने को ...
तू सुरमई बादलों पर गुलाबी इबारतें लिक्ख ...
मैंने शफ़क को रोक के रक्खा है ...
मैं तेरी राह में कोई स्याह रात हरगिज़ ..नहीं आने दूँगी ...
मैंने कड़कती धूप को कस दिया है पल्लू की गिरह में ...
मैंने तुझ संग रिश्ते में कोई कच्चा रंग नहीं भरा ...
जिसे वक़्त की धूप उड़ा दे ..
फीका कर दे ...
मैंने खुद को निचोड़ कर तुम्हें ...लिक्खा है ..
यह लहू से उकेरी ...बुनी इबारत है
नसों में दौड़ती हुयी हरारत है ..
इतनी आसानी से कौन मिटा सकता है तुझे ...
तू कह मैं तमाम रिवाजों के ख़िलाफ़ जाकर के सुनूँगी तुझे ....
क्योंकि मैंने तुम्हें माशरे की बेकार रस्मों रवायतों के लिये हरगिज़ नही जना ...
मैंने जना है ..तुम्हें ..सिर्फ़
और सिर्फ़ तुम्हारे लिये
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