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6 दिसंबर 1992 : बाबरी मस्जिद के साथ उस दिन अनेक संवैधानिक संस्थाएं भी धराशायी हो गईं थीं

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hastakshep
25 Apr 2017
6 दिसंबर 1992 : बाबरी मस्जिद के साथ उस दिन अनेक संवैधानिक संस्थाएं भी धराशायी हो गईं थीं

6 दिसंबर 1992 : बाबरी मस्जिद के साथ उस दिन अनेक संवैधानिक संस्थाएं भी धराशायी हो गईं थीं

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हमारे देश में न्यायपालिका का कितना महत्व है यह उस समय पुनः सिद्ध हुआ जब सर्वोच्च न्यायालय ने बाबरी मस्जिद के ध्वंस के लिए जिम्मेदार (Responsible for the demolition of Babri Masjid) आरोपियों पर आपराधिक षड़यंत्र का मुकदमा चलाने का आदेश दिया।

आदेश पारित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की।

न्यायालय ने कहा कि बाबरी मस्जिद के ध्वंस का अर्थ हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष तानेबाने का छिन्न-भिन्न होना है।

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सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि भले ही आसमान गिर जाए पर न्याय अवश्य होना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि भारतीय जनता पार्टी के अनेक दिग्गज नेता बाबरी मस्जिद के ध्वंस के लिए किए गए षड़यंत्र में शामिल थे। कुछ वर्षों पूर्व इन पर लगाए गए आरोप वापिस ले लिए गए थे। यह फैसला सन् 2001 में हुआ था। बाद में यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा और अंततः यह फैसला हुआ कि निचली अदालत में इन नेताओं के खिलाफ षड़यंत्र रचने का आरोपपत्र तैयार किया जाए।

भाजपा के जिन नेताओं के विरूद्ध षड़यंत्र रचने का आरोप लगाया गया है और जिन्हें सीबीआई अदालत में मुकदमे का सामना करना पड़ेगा, वे हैं पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुरलीमनोहर जोशी, वर्तमान केन्द्रीय मंत्री उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, विष्णु हरि डालमिया, चम्पत राय बंसल, सतीश प्रधान, धर्मदास, महंत नित्य गोपालदास, महामण्डलेश्वर जगदीश मुनी, रामविलास वेदान्ती, बैकुंठ लाल शर्मा और सतीश चन्द नागर।

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वर्ष 1993 में सीबीआई ने इन सबको और इनके अलावा बड़ी संख्या में अन्य लोगों को आरोपी माना था।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपना आदेश सुनाते हुए कहा ‘‘इस अदालत का अधिकार है, न सिर्फ अधिकार है वरन् कर्तव्य है कि किसी ऐसे मामले, जिसमें न्याय  करने की आवश्यकता है पूरी तरह न्याय किया जाए। इस मामले में एक ऐसा अपराध हुआ था जिसने 25 वर्ष पहले देश के संविधान सम्मत धर्मनिरपेक्ष ढांचे को हिलाकर कर रख दिया था।"

सर्वोच्च न्यायालय ने कल्याण सिंह का नाम अपने आदेश में शामिल नहीं किया है, क्योंकि वे अभी राजस्थान के राज्यपाल हैं। संविधान के अनुसार किसी राज्यपाल के विरूद्ध आपराधिक मामला नहीं चलाया जा सकता। हां जिस दिन वे इस पद से निवृत्त होंगे उस दिन उन्हें अदालत का सामना करना पड़ेगा।

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यहां स्मरणीय है कि जब बाबरी मस्जिद ढहाई गई थी उस समय कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।

मुख्यमंत्री की हैसियत से कल्याण सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय एकता परिषद को आश्वासन दिया था कि वे हर हालत में बाबरी मस्जिद की सुरक्षा करेंगे और उसे ढहने नहीं देंगे। इस दृष्टि से उनका अपराध अन्य आरोपियों की तुलना में ज्यादा गंभीर है।

यहां इस बात का उल्लेख प्रासंगिक होगा कि यदि बाबरी मस्जिद संबंधी मुकदमा बिना बाधा के चलता रहता तो इस बात की पूरी संभावना थी कि उन्हें दोषी पाया जाता और यदि ऐसा हो गया होता तो राज्यपाल के पद पर उनकी नियुक्ति नहीं हो पाती।

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इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई और उत्तरप्रदेश सरकार को फटकार लगाई है। सर्वोच्च न्यायालय की राय है कि ऐसा जानबूझकर किया गया।

सर्वोच्च न्यायालय की मान्यता है कि बाबरी मस्जिद ढहाने के लिए एक बड़ा षड़यंत्र रचा गया था। और ये सारे नेता इस षड़यंत्र में शामिल थे।

सर्वोच्च न्यायालय का आदेश पारित होने के तुरंत बाद उमा भारती सहित अनेक भाजपा नेताओं ने यह दावा करना प्रारंभ कर दिया कि बाबरी मस्जिद के ध्वंस के लिए कोई षड़यंत्र नहीं रचा गया था। ध्वंस तो खुलेआम हुआ, उसमें लाखों लोग शामिल थे।

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वैसे इस बात के सुबूत उपलब्ध हैं कि बाबरी मस्जिद के ध्वंस की तैयारी कई दिनों से चल रही थी। उस समय अनेक पत्रकारों ने अपनी व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर यह लिखा था कि एक विशेष रूप से निर्मित कैंप में कारसेवक मस्जिद के ध्वंस में काम आने वाले औजारों को तराश रहे थे। दिनांक 6 दिसंबर 1992 (जिस दिन मस्जिद ढहाई गई थी) के पहले पूरी तैयारी हो चुकी थी। इस तैयारी के बारे में संघ व भाजपा के सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों को जानकारी थी।

यदि उमा भारती व अन्य नेताओं के दावे को मान भी लिया जाए कि मस्जिद के ध्वंस हेतु कोई षड़यंत्र नहीं किया गया था तब भी यह तो स्पष्ट है कि संघ परिवार की पूरी मशीनरी ने अपने धुआंधार प्रचार के माध्यम से देश में एक जहरीला वातावरण उत्पन्न कर दिया था।

ध्वंस के पहले आडवाणी की रथयात्रा हुई थी। रथयात्रा के दो प्रमुख नारे थे- ‘मंदिर वहीं बनेगा' और 'रामद्रोही, देशद्रोही'।

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मदिंर वहीं बनाएंगे के नारे पर यदि विचार किया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि उस स्थान पर मंदिर तभी बनाया जा सकता था जब मस्जिद का ध्वंस हो।

अडवाणी की यात्रा ने पूरे देश में तनाव का वातावरण उत्पन्न कर दिया थां।

आडवाणी की यात्रा को भारी जनसमर्थन प्राप्त हुआ। वह तो लालू यादव की हिम्मत एवं इच्छाशक्ति का परिणाम था कि बिहार पहुंचने पर आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया। इस तरह मस्जिद के ध्वंस के पूर्व एक खुला षड़यंत्र किया गया था। इस षड़यंत्र का आधार घनघोर प्रचार था। इस प्रचार का ही नतीजा था कि 6 दिसंबर को लाखों कारसेवक अयोध्या पहुंच गए और उन्होंने देखते ही देखते मस्जिद को धराशायी कर दिया।

मस्जिद के धराशायी होते ही कारसेवकों के बीच खुशी की लहर दौड़ गई। कुछ नेताओं ने मस्जिद के ध्वंस पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि ‘‘आज हमने मुस्लिम आक्रमणकारियों से बदला ले लिया। मस्जिद के ध्वंस से प्रफुल्लित होकर उमा भारती मुरली मनोहर जोशी के कंधे पर चढ गईं थीं। इन सबकी प्रसन्नता से यह झलक रहा था कि वे अपने षड़यंत्र के सफल होने से प्रसन्न हैं। यह षड़यंत्र ठीक वैसा था जैसा गांधी जी की हत्या के पूर्व रचा गया था।

गांधी की हत्या के तुरंत बाद संघ परिवार पर हत्या करवाने का आरोप लगा था। उस समय भी यह माना गया था कि गांधीजी की हत्या के लिए संघ परिवार ने औपचारिक रूप से कोई षड़यंत्र भले ही न किया हो परंतु संघ परिवार द्वारा गांधी के विरूद्ध किए गए दुष्प्रचार और विवमन का ही नतीजा गांधीजी की हत्या के रूप में सामने आया।

उस समय सरदार पटेल ने गांधीजी की हत्या में आरएसएस की भूमिका के बारे में स्वयं गोलवलकर को एक पत्र लिखा था। 19 दिसंबर 1948 को लिखे गए इस पत्र में पटेल कहते हैं:

‘‘हिन्दुओं का संगठन करना, उनकी सहायता करना एक प्रश्न है पर उनकी मुसीबतों का बदला, निहत्थे व लाचार औरतों, बच्चों व आदमियों से लेना दूसरा प्रश्न है। इसके अतिरिक्त उन्होंने कांग्रेस का विरोध करने और इस कठोरता से कि न व्यक्तित्व का ख्याल, न सभ्यता व शिष्टता का ध्यान, जनता में एक प्रकार की बैचेनी पैदा कर दी थी। इनकी सारी स्पीचिज साम्प्रदायिक विष से भरी थीं। हिन्दुओं में जोश पैदा करने व उनकी रक्षा के प्रबंध करने के लिए यह आवश्यक न था कि वे जहर फैलाते। इस जहर का फल अंत में यही हुआ कि गांधीजी की अमूल्य जान की कुर्बानी देश को देनी पड़ी और सरकार व जनता की सहानुभूति जरा भी आरएसएस के साथ नहीं रही, बल्कि उसके खिलाफ हो गई। उनकी मृत्यु पर आरएसएस वालों ने जो हर्ष प्रकट किया था और मिठाई बांटी उससे यह विरोध और बढ़ गया और सरकार को इस हालात में आरएसएस के खिलाफ कार्यवाही करना जरूरी ही था।

"तब से अब 6 महीने से ज्यादा हो गए। हम लोगों की आशा थी कि इतने वक्त के बाद सोच विचार कर के आरएसएस वाले सीधे रास्ते पर आ जाएंगे। परंतु मेरे पास जो रिपोर्ट आती हैं उनसे यह विदित होता है कि पुरानी कार्यवाहियों को नई जान देने का प्रयत्न किया जा रहा है।"

लगभग इसी भाषा में बाबरी मस्जिद के ध्वंस के लिए संघ व भाजपा को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

भाजपा व संघ परिवार को छोड़कर सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय की सर्वत्र प्रशंसा की गई है। देश के प्रतिष्ठित दैनिक समाचारपत्रों में से एक इंडियन एक्सप्रेस ने दिनांक 20 अप्रैल को प्रकाशित अपने संपादकीय में मांग की है कि राजनीतिक नैतिकता का यह तकाजा है कि कल्याण सिंह और उमा भारती अपने-अपने पदों से इस्तीफा दें।

Advani's rath yatra from Somnath to Ayodhya is a shameful event in the history of the country.

इंडियन एक्सप्रेस आगे लिखता है कि आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ यात्रा देश के इतिहास की एक शर्मनाक घटना है। 6 दिसंबर 1992 को घटनाचक्र ने न सिर्फ बाबरी मस्जिद को धराशायी होते देखा था वरन् उस दिन देश की अनेक संवैधानिक संस्थाएं भी धराशायी हो गईं थीं।

एक दूसरे प्रतिष्ठित समाचारपत्र टाईम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है कि बाबरी मस्जिद का ध्वंस एक ऐसा अपराध है जिसने देश के संविधान सम्मत ढांचे को हिलाकर रख दिया। समाचार पत्र ने इस बात पर चिंता प्रकट की है कि साम्प्रदायिक घटनाओं से संबंधित मुकदमे शीघ्रता से नहीं निपटते हैं और इसलिए ही देश में बार-बार दंगे होते हैं। समाचारपत्र ने उमा भारती की टिप्पणी को देश के कानून का खुला उल्लंघन बताया है।

सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का एक परिणाम ऐसा है जो प्रधानमंत्री मोदी को सुखद प्रतीत होगा। कुछ दिनों बाद राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है। केन्द्र में सत्ताधारी गठबंधन के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में आडवाणी और जोशी का नाम भी लिया जा रहा था। लेकिन अब चूंकि इन दोनों के विरूद्ध आपराधिक मामला चलेगा इसलिए अब इनके नामों पर विचार तक नहीं होगा।

एल.एस. हरदेनिया

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं)  

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