गत दिनों भारत भवन में इला अरुण, के के रैना द्वारा परिकल्पित और निर्देशित नाटक ‘शब्द लीला’ के मंचन का समाचार पढ़ने को मिला। पिछले कुछ वर्षों में भारत भवन में आमंत्रण (Invitation to Bharat Bhavan Bhopal) भेजे जाने वाली सूची में संशोधन किया गया था और गत दो दशक की परम्परा को तोड़ते हुए मुझ जैसे लोगों को आमंत्रण भेजना बन्द कर दिया गया था, इनमें म.प्र. प्रगतिशील लेखक संघ (M.P. Progressive writers association) के प्रदेश अध्यक्ष व ऎतिहासिक वसुधा पत्रिका के सम्पादक राजेन्द्र शर्मा भी सम्मलित हैं। यदि समय पर सूचना मिल गयी होती तो इसे देखने मैं अवश्य ही गया होता।
धर्मवीर भारती, पुष्पा भारती, कनु प्रिया
मेरी रुचि का कारण इसका विषय है। यह नाटक धर्मवीर भारती की प्रसिद्ध रचना ‘कनु प्रिया’ पर आधारित (Drama based on Dharamvir Bharti's famous work 'Kanu Priya') बताया गया है जिसके बाद में ‘अंधायुग’ का मंचन, भी किया गया था।
कहा जाता है कि ‘कनु प्रिया’ रचने की प्रेरणा भारती जी को अपने निजी जीवन में उठे द्वन्द और उसे हल करने के प्रयासों से प्राप्त जीवन अनुभवों से मिली। वे इलाहाबाद विश्व विद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक थे और पुष्पा भारती उनकी कक्षा की सबसे सुन्दर लड़कियों में से एक थीं। पूर्व से विवाहित भारती जी को उनके रूप और इस आकर्षण को मिले प्रतिदान ने द्वन्द में डाल दिया था।
उन दिनों इलाहाबाद हिन्दी साहित्य की राजधानी थी जहाँ भारती जी के अलावा निराला, फिराक गोरखपुरी, हरिवंशराय बच्चन, सुमित्रा नन्दन पंत, महादेवी वर्मा, उपेन्द्र नाथ अश्क, भैरव प्रसाद, मार्कण्डेय, कमलेशवर, दुष्यंत कुमार त्यागी, ज्ञानरंजन, रवीन्द्रनाथ त्यागी आदि आदि लोग सक्रिय थे।
अपनी प्रेमिका छात्रा पुष्पा भारती से विवाह करने के विचार पर नैतिकतावादी भारती गहरे द्वन्द से घिरे रहे पर अंततः उनका प्रेम जीता और उन्होंने पुष्पा जी से विवाह कर लिया।
Dharmaveer Bharti's memoir article on Lohia Ji in Dharmayuga
एक बार धर्मयुग में उन्होंने लोहिया जी पर एक संस्मरणात्मक लेख लिखा। इस लेख में उन्होंने लिखा था कि अपने दूसरे विवाह के सम्बन्ध में उन्होंने लगभग समस्त परिचितों और आदरणीयों से सलाह चाही थी किंतु किसी ने भी खुल कर मेरा समर्थन नहीं किया था। किंतु जब उन्होंने लोहिया जी से सलाह मांगी तब उनकी सहमति ने उन्हें बल दिया था और वे निष्कर्ष पर पहुँचे थे।
जैसा कि मैं पहले भी एक संस्मरण में जिक्र कर चुका हूं कि जब पुष्पा भारती जी भोपाल आयीं थीं, और दुष्यंत संग्रहालय में मुझे उनसे बातचीत का अवसर मिला था तो मैंने उनसे भारती जी की राजनीति के बारे में जानना चाहा था। उनका उत्तर था कि भारतीजी किसी राजनीति विशेष से जुड़े हुए नहीं थे और उनके घर पर तो हर तरह की राजनीति के लोग आते थे।
इस पर मैंने कुरेदते हुए लोहिया जी से उनके सम्बन्धों के बारे में जनना चाहा तो उन्होंने एक संस्मरण सुनाया।
“भारतीजी तब मुम्बई <तब की बम्बई> आ चुके थे। लोहिया जी मुम्बई आये हुये थे और रेलवे स्टेशन के रिटायरिंग रूम में रुके हुये थे। हम दोनों उनसे मिलने गये और भारती जी ने मेरा परिचय कराया तो उन्होंने छूटते ही कहा चीज तो बहुत अच्छी है। यह सुन कर मुझे आग लग गयी। जब भारतीजी ने बाहर ले जाकर मुझसे पूछा कि क्या आज शाम इन्हें खाने पर बुला लें तो मैंने साफ मना कर दिया कि इस आदमी को तो मैं कतई खाना नहीं खिला सकती। फिर भारतीजी ने कभी ऐसा प्रस्ताव नहीं किया।“
इस पर जब मैंने पुष्पाजी को धर्मयुग में लिखे भारतीजी के संस्मरण के बारे में बताते हुए यह भी बताया कि आपसे शादी का अंतिम निर्णय लोहिया जी की सलाह के बाद ही हुआ था तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ, क्योंकि उन्हें यह बात पता ही नहीं थी। वे बोलीं, तो ये बात थी। शायद उन्हें अफसोस हुआ हो।
भारतीजी की पहली पत्नी का नाम कांता था जिसे समाचार में भूल से कामता लिख दिया गया है। उन्होंने ‘रेत पर तड़फती हुयी मछली’ नाम से एक उपन्यासनुमा रचना लिखी है। इस कृति के बारे में कहा जाता है कि वह उनकी आत्मकथा है।
भारतीजी से द्वेष रखने वाले किसी विश्वविद्यालय के चयनकर्ताओं ने उसे कभी कोर्स में भी लगा दिया था। कांता जी की एक लड़की भी थी जो काफी समय तक मुम्बई में रही।
भारतीजी जितने अच्छे साहित्यकार थे उतने ही अच्छे सम्पादक भी थे। मैं यह बात निजी अनुभव से कह सकता हूं कि उन्होंने देश भर में हजारों लेखकों को मांजा है, संवारा है, और पहचान दी है। छोटी छोटी पर्चियों पर लिखी उनकी संक्षिप्त टिप्पणियां आज भी मेरी धरोहर हैं।
इसी मुलाकात में पुष्पाजी ने एक और संस्मरण साझा किया था जो उन्हें लता मंगेशकर ने फोन करके बताया था।
एक बार लताजी पुणे से लौट रही थीं कि दो लड़कियां लिफ्ट मांगने का इशारा करते हुयीं दिखीं तो उन्होंने ड्राइवर से उन्हें बैठा लेने को कहा। ड्राइवर ने बेमन से आदेश का पालन किया।
लताजी उन लड़कियों से उनके बारे में पूछ ही रही थीं कि ड्राइवर ने सीडी प्लेयर चालू कर दिया जिसमें लताजी का ही गीत आ रहा था। उन लड़कियों ने उन्हें रोकते हुए कहा कि रुकिए, लताजी का गीत आ रहा है।
गीत समाप्त होने के बाद उन्होंने पूछा कि क्या तुम लोगों को लताजी पसन्द हैं?
उत्तर में उन्होंने कहा कि वे तो हमारे लिए भगवान हैं।
लताजी ने पूछा कि अगर तुम्हें लताजी से मिलवा दें तो?
उन लड़कियों ने ऐसा भाव प्रकट किया कि यह तो सम्भव ही नहीं है।
तब लताजी न कहा कि मैं ही लता मंगेशकर हूं तो दोनों ने इसे सबसे बड़ा चुटकला सुन लेने के अन्दाज़ में खुले मुँह पर चार उंगलियां रख कर उपहास भाव प्रकट किया। लता जी ने उनके विश्वास को तोड़ने की कोशिश न करते हुए ड्राइवर से कहा कि मुझे घर छोड़ते हुए इन्हें इनके गंतव्य तक पहुंचा देना।
ड्राइवर ने जब उनके घर पर छोड़ा, जिसके बारे में वे लड़कियां शायद पहले से जानती होंगीं, तो उनकी हालत देखने लायक थी।
राजीव गाँधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद हिन्दी में सबसे पहला साक्षात्कार पुष्पा भारती को ही दिया था। इसकी व्यवस्था तत्कालीन सांसद अमिताभ बच्चन ने की थी जो उन्हें बड़ी बहिन मानते रहे हैं। स्मरणीय है कि अमिताभ की शादी के समय उन्होंने इसी भूमिका का निर्वाह किया था। अपने समय की बहुचर्चित पुष्पाजी मुम्बई में ही रहती हैं। कामना है वे स्वस्थ रहें और उम्रदराज हों।
वीरेन्द्र जैन