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चींटियों की रुलाई का अनुवाद करने वाले कवि हैं केदारनाथ सिंह

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hastakshep
25 Sep 2019
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चींटियों की रुलाई का अनुवाद करने वाले कवि हैं केदारनाथ सिंह

हम केदार के लोग हैं... प्रलेस इलाहाबाद का शानदार आयोजन/ पद्मश्री शम्सुर्रहमान फारूकी जी मुख्य अतिथि

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इलाहाबाद। 'केदार यारों के यार और कवियों के कवि थे। हम लोग मिलते कम थे, वे अपने काम में व्यस्त रहते मैं अपने काम में। अपने अंतिम वक्त उन्होंने जिन लोगों को याद किया उनमें मैं भी था, यह सुनकर मेरी आँखें भर आईं। जब मैं खुदा के पास जाऊँगा, अगर गया तो, तो मैं वहाँ जाकर कहूँगा कि मैं केदार जी की दोस्ती लेकर आया हूँ।' ये बातें प्रसिद्ध उर्दू आलोचक और मुख्य अतिथि पद्मश्री शम्सुर्रहमान फारूकी ने केदार जी पर आयोजित कार्यक्रम में कहीं।

उन्होंने बहुत भावुक होकर केदारजी को याद किया।

धरती के कवि केदारनाथ सिंह

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केदारनाथ सिंह धरती के कवि होने के साथ ही सम्पादक भी थे। साखी उनकी अनियतकालीन पत्रिका थी। इसी साखी को केदारजी की स्मृति में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और हिन्दी लेखक ने उनकी स्मृति में प्रकाशित सम्पादित किया है।

साखी के लोकार्पण के मौके पर प्रगतिशील लेखक संघ इलाहाबाद ने यह शानदार आयोजन रूहे अदब के सभागार में किया।

शाही ने कहा कि केदार जी ने मुझसे कहा था कि कभी इलाहाबाद जाओ तो फारूकी जी को मेरा सलाम कहना। मैं वही सलाम कहने आया हूँ। साखी के माध्यम से हम केदार जी को कोई नम्बर नहीं देने जा रहे, हमें कोई जल्दी नहीं है, इस पत्रिका में आप केदार जी की कविताओं को पढ़िए और उन्हें समझिए। वह चींटियों की रुलाई का अनुवाद करने वाले कवि हैं। वह समग्र सृष्टि की मनुष्यता के कवि हैं और हम केदार के लोग हैं।

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इसके पूर्व प्रलेस अध्यक्ष प्रो संतोष भदौरिया ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि क्या पढ़ाने में भी कोई तरन्नुम हो सकता है, इसके लिए केदार जी को देखें जो अपनी वाणी में बहुत तरल और सहज थे।

युवा आलोचक दिनेश कुमार ने कहा कि साखी का यह अंक 576 पेज का है जिसमें सौ से ज़्यादा लेखकों की भागीदारी है। यह शाही जी की सम्पादकीय क्षमता और केदारजी की अपार लोकप्रियता को दिखाता है।केदार जी गँवई चीजों को उठाते हैं और उन्हें वैश्विक दृष्टि दे देते हैं यही उनकी विशेषता है। केदारनाथ और रघुवीर सहाय अपने आप में कविता का स्कूल हैं जिन्होंने नई परम्परा विकसित की है।

युवा आलोचक रमाशंकर ने पानी और पर्यावरण से जोड़ते हुए कवि की भूमिका को रेखांकित किया।

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युवा कवि संतोष चतुर्वेदी ने केदार जी से जुड़े अपने तमाम संस्मरण साझा किए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली से आए एनबीटी के सम्पादक और पत्रकार पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि कहा कि जब तक आपमें स्थानीयता का भाव ज़िंदा होता है तब तक आप अपनी मिट्टी पर पकड़ बनाए रखते हैं। हम केदार जी को पढ़ें और रचें यही उनकी सच्ची स्मृति होगी।

कार्यक्रम का संचालन इलाहाबाद प्रलेस महासचिव संध्या नवोदिता ने किया। आभार ज्ञापन प्रलेस उपाध्यक्ष असरार गाँधी ने किया।

कार्यक्रम में प्रणय कृष्ण, हरिश्चन्द्र द्विवेदी, हरिश्चंद्र पांडे, फजले हसनैन, कर्नल अबरार, ओडी सिंह, केके पांडे, हिमांशु रंजन, ज्योतिर्मयी, बसंत त्रिपाठी, नीलम शंकर, ताहिरा परवीन, अमीन अख्तर, अशरफ अली बेग, एकता शुक्ला, अनिता त्रिपाठी, शमेनाज , गुरपिंदर, रमन, धीरेन्द्र, आरती बृजेश सहित बड़ी संख्या में छात्र और युवा मौजूद रहे।

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