कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण (Internationalization of Kashmir issue) हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया भर में अपने किये की सफाई देते हुए घूम रहे हैं। भारतीय मीडिया प्रधानमंत्री के पक्ष की रिपोर्टिंग देश में कर रही है, लेकिन वैश्विक प्रतिक्रियाओं को छिपा रही है।
धारा 370 (Article 370) हटते ही अलगाववादियों ने विश्वविरादारी में अपने पक्ष में नई दलील रखनी शुरू कर दी है कि भारत से रियासत का समझौता खत्म हो गया है और अब काश्मीर स्वतंत्र है जिस पर भारत का जबरिया कब्ज़ा है। ट्रम्प के इस संबंध में लगातार बयान आ रहे हैं। वह मध्यस्थता को आतुर हैं।
हमने पहले ही कहा था कि मोदी ने पाकिस्तानी अमेरिका परस्तों की मुराद पूरी करते हुए अमेरिका को कश्मीर में आने का आधार दे दिया है।

Madhuvan Dutt Chaturvedi मधुवन दत्त चतुर्वेदी
लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।
आज अमेरिका की तरफ से रिपोर्टिंग है कि वह पाकिस्तान से टेरर फंडिंग और टेरर एक्सपोर्ट रोकने की बात करेगा लेकिन साथ ही कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन पर गंभीर है। पहली बात भरोसे के लायक नहीं, ऐसी बातें वह करता रहा है और पाकिस्तान की आर्थिक एवं सैन्य मदद भी जारी रखता रहा है।
नरेंद्र मोदी ने नोटबन्दी की तरह 370 पर भी बिना सोचे मूर्खता धूर्तता और तानाशाही का निर्णय लिया है। नोटबन्दी की तरह ही भारत को इस फैसले की बड़ी कीमत चुकानी है।
मुझे लगता है, 370 पर सरकार पीछे हट सकती है या उसी तरह के अन्य समझौते के लिए बाध्य हो सकती है।
मधुवन दत्त चतुर्वेदी
(लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।)