बड़ी हसरत से तकते हैं शक्लों को
मिट्टी के दिये...
बाज़ार के कोनों से...
और फिर उदासी ओढ़ कर सोचते हैं अक्सर...
क्या उस नदी ने झूठ बोला था...
इक उम्र तलक सरयू ने बांची..कथा राम की...
बनबास राम का...
और
राम का लौटना...
उसने रोज़ कहा...
किस तरह वो जगमगाहटों का आधार बने थे ..
इक सीता की पालकी के कहार बने थे... .
सुन सुन कर सौ बार जुगनुओं सी चमकी थी आँखें... .
फिर चाक पर चढ़ने के दिवा स्वप्न भी जागे...
सौ मन्नतों के असर से
इक चाक ने चूमा ..
उँगलियों की थिरकनो में बदन ख़ुशी-खुशी झूमा... .
जगने लगे फिर बातियों से मिलने के ख़्वाब...
संग याद आये हवाओं के वो सच्चे झूठे रूआब ..
कच्ची पक्की मिट्टी के लिये रंग अनूठे...
टोकरी में इक बुढ़िया के ख़्वाबों को समेटे...
बाज़ार तक आये तो नज़र डरी-डरी है...
रौशनियों की चकाचौंध है ..
भीड़ पर भीड़ चढ़ी है...
ऐसे में कौन टिमटिमाहटों के भाव को पूछे...
शगुनों वाले दियों के चाव को पूछे...
आस्था राम की बुझ गयी क्या ? लिये प्रश्न पड़े हैं...
मिट्टी के भाव बिकने को भी तैयार खड़े हैं...
मगर इस सादगी का अब कोई ख़रीददार नहीं है...
इन दियों से... दो रोटी की जुगाड़ नहीं है...
इन्हें मुँडेर पर सज़ा ले वो गाँव नहीं बचे...
गाँव में भी अब राम के चाव नहीं बचे ..
तो बाज़ार में पसरा... ये जश्न.. किसका जश्न है...?
कोई मामूली बात नहीं...
यह राम की घर वापसी का प्रश्न है...
डॉ. कविता अरोरा
Happy Diwali, शुभ दीपावली, 26 October 2019, News.