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70 साल विभिन्न सरकारों ने देश का निर्माण किया. आज देश को देश बनाने वाले पस्त हैं. हमेशा से देश को तोड़ने वाले सत्ता पर काबिज़.
दरअसल भूमंडलीकरण के पहले मध्यम वर्ग ने अपने पूरे जीवन में इतना पैसा नहीं देखा था, जो उनकी संतानों ने मनमोहन सिंह के दस सालों में देखा. मैनेजमेंट, आईटी सेक्टर में कैंपस में ही पैकेज डील ने एक ऐसी कौम पैदा की, जिसके लिए विकास का मतलब पिज़्ज़ा आर्डर करने वाला जुमला बन गया.
गज़ब और शातिर खेल देखिये इसी ‘विकास मतलब 25 मिनट में पिज़्ज़ा’ के जुमले को जुमलेबाज़ ने मार्केट किया. पिज़्ज़ा जनरेशन ने समर्थन और जुमलेबाज़ सत्ता पर विकास का जुमला लिए पसर गए. भूमंडलीकरण के दौर में पैदा हुई नस्ल ‘यूज़ & थ्रो’ का मन्त्र जपती है. वो अपने माँ बाप को वृद्ध-आश्रम में रखती है तो मनमोहन की क्या बिसात?
जुमलेबाज़ के कुकर्मों से इसी मध्यमवर्ग का पिज़्ज़ा खाना बंद हो गया. नोटबंदी ने सबके वारे न्यारे कर दिए. जुमलेबाज़ और तड़ीपार ने अपनी पार्टी के आलिशान दफ्तर बना लिए और पार्टी में जमा सारा पैसा सफ़ेद हो गया. देश का किसान बर्बाद, युवा बेरोजगार और मजदूर तबाह. सिर्फ़ जुमलेबाज़ के दो मित्र पूंजीपति मालामाल!
चुनाव आए तो जुमलेबाज़ को पता था विकास पैदा ही नहीं हुआ तो बिकेगा कैसे. तो विकास का गर्भपात कर राष्ट्रवाद का जुमला चला.
घटनाक्रम देखिये ठीक चुनाव के पहले पुलवामा, बालाकोट हुआ. जुमलेबाज़ ने कहा देश सुरक्षित हाथों में हैं जनता ने कहा हाँ.
जनता यह पूछना भूल गई ‘अरे जुमलेबाज़ तुम तो सत्ता में थे जब पुलवामा हुआ था’।
खैर राष्ट्रवाद के उन्माद ने जनता को भेड़ों में बदल दिया. युवा अपनी बेरोज़गारी भूल गए, किसान अपनी फ़सल के दाम और आत्महत्या, मजदूर अपनी भुखमरी। सब राष्ट्रवाद के उन्माद में भेड़ बनकर जुमलेबाज़ के साथ खड़े हो गए और जुमलेबाज़ दोबारा तख्तनशीं हो गए ‘सुल्तान ऐ हिन्दुस्थान’ की तर्ज़ पर!
धर्म की आड़ में भेड़ों को खुश किया जा रहा है ‘कश्मीर’ का विकास उसी का नुमाना है। आज जब चुनाव आता है सेनायें अपने शौर्य का वीडियो जारी करती हैं, मीडिया जयकारा लगाता है। चुनावी रैलियों में जुमलेबाज़ सेना के शौर्य को राष्ट्रवाद के रूप में बेचता है. भेड़ें हुआन हां करती हैं और बहुमत की सरकार चुनावी जीत का डंका बजाती रहती है.
अब सेना के शौर्य के साथ NRC जुड़ गया है. यानी पश्चिमी सीमा पर सेना का शौर्य और पूर्वी सीमा पर NRC का राष्ट्रवाद चरम पर है. राष्ट्र के लिए एक कतरा भी जिसने नहीं बहाया वो आज राष्ट्रवाद की मार्केटिंग से सत्ता पर काबिज़ हैं और देश का निर्माण करने वाले हाशिए पर ‘राष्ट्र द्रोही’ के इनाम के साथ.
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार व रंगकर्मी हैं।)
इसलिए सैनिकों के शौर्य की मार्केटिंग करो और चुनाव जीतो!
बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था, मौलिक सुविधा ये जनता के मुद्दे हैं. पर आज जनता नहीं समाज में जनता के नाम पर राष्ट्रवाद के उन्माद से भरी भेड़ें हैं. बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था, मौलिक सुविधा मुद्दे आपको अब चुनाव नहीं जिता सकते? अब चुनाव लोकतान्त्रिक प्रकिया नहीं है. अब चुनाव सिर्फ़ युद्ध है राष्ट्रवाद के नाम पर!
– मंजुल भारद्वाज
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार व रंगकर्मी हैं।)