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.इस छोर... ढूँढता हूँ मैं ... गुमशुदा ख़ुशियों का सिरा ... उस छोर मेरी तलाश में है ... इक गाँव सिरफिरा....

.इस छोर... ढूँढता हूँ मैं ...  गुमशुदा ख़ुशियों का सिरा ...  उस छोर मेरी तलाश में है ...  इक गाँव सिरफिरा....

ऊँची रिहायशी बिल्डिंगों की खिड़कियों से झाँकूँ तो

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शहर बौना लगता है...

चींटियों सी रेंगती कारें और खिलौने से मकाँ..

हवाओ के सफ़र से मैं भी मानने लगा हूँ कि क़द बढ़ गया है मेरा...

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कुछ लोग मेरे मयार के नहीं रहे..

झुक कर मिलूँ तो ओहदों को फ़र्क़ पड़ता है..

बेवजह नहीं मिलता अब मैं किसी से...

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पुराने दोस्तों को मसरूफियात का हवाला देकर टाल देता हूँ....

वो दिलचस्पियाँ नहीं रहीं..

उनसे मिलने मिलाने में...

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देर रात इक पुरानी बाइक की पिछली सीट पर बैठ सुन्झी गलियों सड़कों पर रेस...

पान की दुकान पर हँसी ठठ्ठे...

और वो लड़कियों की बातें....

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आवारगी के दौर थे..

थी लड़कपन की कहानियाँ...

अब उम्र पर उम्र चढ़ रही है....

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पैरों तले रौदंती हुई जवानियाँ....

जब भी कभी कनपटी पर...

सफेद हुए..बालों को रंगता हूँ तो....

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नज़र के चश्मे से.. बचा कर नज़र...

आइने में देख लेता हूँ ...

अपने वो जाते हुए दिन...

और कर लेता हूँ अपने आप से ही...

उस दौर की कुछ बातें....

यूँ तो मेरे सजावटी घर..

संगमरमरी फ़र्श वाले..

दरोदीवार की रौनक़ें बहुत हैं....

मगर कमबख़्त यह बोलती नहीं हैं..

खूबसूरत रंगों...

और टँगी क्लासिक तस्वीरों से गुमान बढ़ गये हैं इनके....

साथ ही बढ़ गयी हैं इतराहटें....

झूमरों वाली जगमगाहटों की जद में पड़ते हैं रौशनी के परछावे...

पक़डू तो मैं ख़ुद भी परछाईं..

मैंने की कोशिश..

kavita Arora डॉ. कविता अरोरा डॉ. कविता अरोरा

इन सजावटी बुतों को सिखा सकूँ...

जबां अपनी...

कि वो बोलने लगे ...

मगर साजिशी चुप्पियाँ हैं..

कि मुझे ही..

बुत बनाने में लगी है....

.इस छोर... ढूँढता हूँ मैं ...

गुमशुदा ख़ुशियों का सिरा ...

उस छोर मेरी तलाश में है ...

इक गाँव सिरफिरा....

  • डॉ. कविता अरोरा

http://www.hastakshep.com/oldtruth-was-that-the-bjp-was-defeated-in-maharashtra/

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