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अर्थशास्त्र के जनक एडम स्मिथ ने 1776 में पप्रकाशित अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Wealth of Nations में एक जगह लिखते हैं,
“कि जिस व्यक्ति का सारा जीवन केवल एक ही प्रकार के सरल कार्य को करते हुए व्यतीत होता है उसकी अपनी समझ अथवा बुद्धि के प्रयोग की आदत समाप्त हो जाती है, तथा वह इतना अधिक मूर्ख बन जाता है, जितना मनुष्य के लिए बनना संभव हो सकता है” इससे यह साफ़ नजर आता है कि किसी व्यक्ति की अपने व्यवसाय में बड़ती निपुणता उसको अपनी बुद्धि या सामाजिक गुणों को खोकर ही प्राप्त होती है
- अगर हम इस नजरिये से गोरखपुर की घटना को देखते हैं तो चीजें बहुत साफ़ - साफ़ नजर आती हैं, कि कोई भी इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता है, कि अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है। अगर हम इस कसौटी पर केंद्र और राज्य सरकार के जिम्मेदार ओहदों पर बैठे महत्वपूर्ण व्यक्तियों के बयानों को कसते हैं तो यह बात समझ में आती है।
- उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्दार्थ नाथ सिंह का बयान कि हर साल अगस्त में मौतें होती हैं, उनकी संवेदनशीलता के स्तर को दिखाता है, कि राजनीतिज्ञों से बहुत ज्यादा संवेदनशील होने की उम्मीद अभी कितनी दूर की कौड़ी है।
- भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अब राज्यसभा में सांसद अमित शाह का बयान कि देश में पहली बार नहीं हुआ इतना बड़ा हादसा जन्माष्टमी तो मनाएंगे, इतने बड़े पद पर बैठे एक जिम्मेदार शख्स से इस तरह के बयान की उम्मीद नहीं की जाती।
- लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री का बयान कि गोरखपुर हादसा एक प्राकृतिक आपदा है, जबकि एक समझदार व्यक्ति आसानी से बता सकता है कि इस घटना के पीछे प्रशासनिक लापरवाही और राज्य सरकार के मुख्यमंत्री और गोरखपुर से पांच बार सांसद रह चुके योगी आदित्यनाथ की नाकामी है। और जबकि वह इसी मेडीकल कोलेज का दो बार दौरा कर चुके थे, कोई भी इतने लम्बे समय से वहां का सांसद रहा हो वह अपनी जिम्मेदारी से इतनी बेशर्मी से कैसे पीछे हट सकता है।
- मुख्यधारा का मीडिया भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है जो गोरक्षपीठ की गायों से लेकर कुत्ते और नाई से लेकर सोने खाने पूजा - पाठ तक की खबर रखता हो, लेकिन इस घटना पर उसका ध्यान नहीं गया, जबकि वहां के स्थानीय पत्रकार ने कई बार इसके लिए प्रशासन को इससे अवगत कराया था।
- बिना किसी विशेष जांच पड़ताल के बाल रोग विभाग के अधिकारी डा कफील को गोरखपुर सिर्फ इसलिए बर्खास्त कर दिया कि वह अपने पैसों से ऑक्सीजन के सिलेंडर क्यूँ लेकर आए जबकि बाकी के कर्मचारियों पर जांच रिपोर्ट आने के बाद ही कारवाई की जाएगी।
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नरेन्द्र यादव, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। |
आज आजाद भारत के 71वें स्वतंत्रता दिवस पर यह सवाल कि कैसे हमारी एक लोकतांत्रिक व्यवस्था इतने गलीचे में बदल गई कि वह इसे गैर जिम्मेदार नेताओं को चुन रही है, जो अपनी जीडीपी का 1.2 प्रतिशत ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करते हैं, जोकि अन्य विकाशसील देशों जो अपनी जीडीपी का 4 फीसदी खर्च करते हैं, से काफी कम है। जबकि विकसित देश अपनी जीडीपी का 6 से 10 फीसदी तक खर्च करते हैं।
क्या नौकरशाही इतनी अमानवीय हो सकती है कि उसे अच्छे से पता हो कि जब ऑक्सीजन कंपनी को भुगतान न करने से ऑक्सीजन सप्लाई बंद हो जाएगी और कोई भी हादसा हो सकता है। वह भी तब जब एक सरकारी रिकोर्ड के मुताबिक़ इसी बीआरडी मेडीकल कोलेज में
पिछले साल सितम्बर में तक 224 बच्चों की जान गई थी। प्रशासनिक लापरवाही का इससे बड़ा उदाहरण आपको शायद ही कहीं मिले।
Gorakhpur genocide and political and administrative insensitivity