चर्यापद के बाद आठवीं सदी से लेकर ग्यारवीं सदी के इतिहास में भारत भर में शूद्रों आदिवासियों दलितों के इतिहास पर जिस तरह कोई चर्चा नहीं हुई है, जिस तरह परातत्व अनुसंधान और इतिहास पर वर्ग वर्ण वर्चस्व की वजह से हड़प्पा सिंधु सभ्यता और अनार्य द्रविड़ सभ्यता की निरंतरता और उसे जुड़ी आम भारतीयों की रक्तधारा के विलय के इतिहास को लगातार दबाया जाता रहा है, जिस तरह शासक वर्ग के इतिहास और साहित्य से किसान, आदिवासी और दलित शूद्र बहुजन सिरे से गायब हैं, उसी तरह भारत में आदिवासी किसानों के इतिहास को मिटाने का कार्यक्रम फासिज्म के सैन्य राष्ट्रवाद का एजंडा है और इसी एजंडे के तहत रवींद्र का भगवाकरण है तो रवींद्र के साहित्य के किसान आदिवासी दलित शूद्र आंदोलन, मेहनतकशों के हक हकूक, जल जंगल जमीन के प्रतिरोध संघर्षों की जमीन और रवींद्र के दलित विमर्श पर चर्चा निषिद्ध है।
इन्हीं लालन फकीर ने जाति तोड़ो आंदोलन बंगाल में शुरू किया था, जिसमें भारतीय ग्रामीण पत्रकारिता के भीष्म पितामह कंगाल हरिनाथ बाउल उनके अनुयायी और सहयोगी थे। जो नील की खेती कराने वाले किसानों के हक में अंग्रेजों से एकतरफ लोहा ले रहे थे तो दूसरी तरफ रवींद्र के पिता महर्षि देवेंद्रनाथ की जमींदारी और बंगाल के जमींदारों, सामंतों के खिलाफ पत्रकारिता कर रहे थे और जाति तोड़ो आंदोलन के तहत बाउल गान बी रच रहे थे।
अब पूरा देश गोडसे के राममंदिर में तब्दील है, यही आज का सबसे भयंकर सच है जमींदार सामंत भद्रलोक कुलीन वर्चस्व के खिलाफ रवींद्र के दलित विमर्श की जमीन यही है। इसीलिए शुरू से रवींद्रनाथ मनुसमृति व्यवस्था के निशाने पर हैं।लालन फकीर जात पांत और धर्म की पहचान से इंकार कर रहे थे और उनके जाति तोड़ो आंदोलन से ब्रह्मसमाज में भी खलबली मची हुई थी। जाति तोड़ो आंदोलन बंगाल में तब वैष्णवों की गौर सभा भी चला रही थी और हरिचांद ठाकुर का मतुआ आंदोलन भी शुरू हो गया था।
संत कबीर की तरह सभी जाति धर्म के लोग लालन फकीर से प्यार करते थे तो सभी जाति धर्मों के कट्टरपंथी लोग उनका विरोध करते थे। हिंदू उन्हें हिंदू मानते थे तो मुसलमान उन्हें मुसलमान मानते थे। वे निराकार ईश्वर के मानवधर्म की बात करते थे तो ब्रह्मसमाजी उन्हें ब्रमसमाज आंदोलन का हिस्सा मानते थे। जबकि वैष्णव उन्हें वैष्णव मानते थे।
लालन का जवाब एक वाक्य का हैः‘সব লোকে কয় লালন কী জাত সংসারে। ’सभी पूछते हैं कि लालन इस संसार में किस जाति के हैं। आनंदमठ का हिंदू संन्यासी योगी ? लेकिन बंकिम ने की थी 33साल ब्रिटिश शासकों की सेवा रवींद्र नाथ लालन फकीर से नहीं मिले और न वे कंगाल हरिनाथ से मिले। लेकिन लालन फकीर और उनके बाउल अनिवार्य से वे सिलाईदह में लगातार संवाद करते रहे हैं और लालन फकीर की रचनाओं को संकलित और प्रकाशित करने की पहल भी उन्होने ही की। लालनगीति डाट काम में इसी का ब्यौरा इस प्रकार दिया गया हैःরবীন্দ্রনাথ ও লালন সম্ভবত লালনের সঙ্গে রবীন্দ্রনাথের দেখা হয়নি। তবে সভ্য সমাজে লালনকে পরিচয় করিয়ে দিয়েছিলেন খোদ রবীন্দ্রনাথ। লালনের একটি গানে বেশ মোহিত হয়েছিলেন তিনি, ‘খাঁচার ভেতর অচিন পাখি/কমনে আসে যায়। /ধরতে পারলে মনো-বেড়ি/দিতাম পাখির পায়। ’ দেহতত্ত্বের এ গানটিকে রবীন্দ্রনাথ ইংরেজি অনুবাদও করেছিলেন। তিনি চেয়েছিলেন গানের মর্মার্থ বোঝাতে। আর সে কারণেই বুঝি ১৯২৫ সালের ভারতীয় দর্শন মহাসভায় ইংরেজি বক্তৃতায় এই গানের উদ্ধৃতি দিয়েছিলেন। বলেছিলেন, অচিন পাখি দিয়ে সাধারণ মানুষের কাছে কত সহজে মরমি অনুভব পৌঁছে দিয়েছিলেন লালন। লালনের সঙ্গে দেখা না হলেও লালন-অনুসারীদের সঙ্গে দেখা হয়েছে রবিবাবুর। এক চিঠির মধ্যে পাওয়া যায় সেই কথা, ‘তুমি তো দেখেছ শিলাইদহতে লালন শাহ ফকিরের শিষ্যদের সঙ্গে ঘণ্টার পর ঘণ্টা আমার কিরূপ আলাপ জমত। তারা গরিব। পোশাক-পরিচ্ছদ নাই। দেখলে বোঝার জো নাই তারা কত মহৎ। কিন্তু কত গভীর বিষয় সহজভাবে তারা বলতে পারত। ’ শুধু কি তাই! লালনের মৃত্যুর পর তাঁর গানের খাতাও সংগ্রহ করেছিলেন রবীন্দ্রনাথ। লালনগীতি সংগ্রাহক একজনকে লালনশিষ্য ভোলাই শা বলেছিলেন- ‘দেখুন, রবিঠাকুর আমার গুরুর গান খুব ভালোবাসতেন, আমাদের খাতা তিনি নিয়ে গেছেন। ’ সেই খাতা গত শতকের শেষার্ধে পাওয়া যায় এবং প্রকাশিত হয়।
अरुणा शानबाग से निर्भया तक, क्या बदला ? हम आनंदमठ के वंदेमातरम राष्ट्रवाद के सच पर लगातार चर्चा करते रहे हैं और बंगाल के बाउल फकीर सूफी वैष्णव बौद्ध आंदोलनों पर भी लगातार चर्चा करते रहे हैं। कंगाल हरिनाथ और लालन फकीर से संबंधित उपलब्ध सामग्री भी हम लगातार शेयर कर रहे हैं। करते रहेंगे। बहुजनों को रवींद्र का दलित विमर्श समझ में आये तो उन्हें बहुजन आंदोलन की अल विरासत की समझ आयेगी और नस्ली वर्ण वर्चस्व का यह कारपोरेटफासिस्ट तिलिस्म भी टूटेगा। इस संवाद का मकसद यही है। जो प्रेम घृणा बन सकता है, वह प्रेम नहीं..वो शादी न करेगी तो मार दोगे? सामूहिक बलात्कार करोगे? बीबीसी की ताजा खबर हैः ‘संविधान पर पुनर्विचार आरएसएस का ‘हिडेन एजेंडा’ है’! राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि भारतीय संविधान में बदलाव कर उसे भारतीय समाज के नैतिक मूल्यों के अनुरूप किया जाना चाहिए. संघ प्रमुख भागवत ने हैदराबाद में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि संविधान के बहुत सारे हिस्से विदेशी सोच पर आधारित हैं और ज़रूरत है कि आज़ादी के 70 साल के बाद इस पर ग़ौर किया जाए. आरक्षण पर फिर से विचार हो: मोहन भागवत ‘वेद और विज्ञान’ पर मोहन भागवत के कमेंट को लेकर चर्चा आरक्षण पर फिर से विचार हो: मोहन भागवत आरएसएस का ‘हिडेन एजेंडा’ संघ की विचारधारा का मूलाधार हिन्दुत्व के रूप में फासिज्म है, हिन्दू तो आवरण हैभारतीय लोक गणराज्य और भारतीय संविधान के साथ नरसंहार संस्कृति के वध्य भारतीय जनगण को बचाने के लिए समता और न्याय, मनुष्यता, सभ्यता और प्रकृति, नागरिकता, आजीविका, जल जंगल जमीन, नागरिक अधिकार और मानवाधिकार के लिए निरंकुश नस्ली वर्चस्व की कारपोरेट राजकाज, राष्ट्रवाद और राजनीति के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सामंतवाद विरोधी साम्राज्यवाद विरोधी एकताबद्ध जनप्रतिरोध की साझा विरासत से जुड़ने की सख्त जरुरत है।
नस्ली वर्चस्व की राष्ट्रवाद के प्रतिरोध के खिलाफ तथाकथित संन्यासी विद्रोह के आनंदमठ के झूठ के खिलाफ बाउल साधु फकीर आंदोलन का सच जानने की जरुरत है। संन्यासी फकीर आंदोलन और चुआड़ विद्रोह के तुरंत बाद शुरू संथाल मुंडा भील विद्रोह के साथ नील विद्रोह से भारत में महात्मा गौतम बुद्ध, वैष्णव बाउल, सन्यासी फकीर सूफी आंदोलन के साथ लालन फकीर और कंगाल हरिनाथ का जाति तोड़ो आंदोलन एक तरफ तो दूसरी तरफ हरिचांद ठाकुर के मतुआ आंदोलन से गुरुचांद ठाकुर के चंडाल आंदोलन और बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के जाति उन्मूलन एजंडा मिशन की शुरूआत महात्मा ज्योति बा फूले के शब्दों में बहुजनों की गुलामगिरि खत्म करने के लिए शुरू हो चुकी थी।
बहुजन विमर्श, आदिवासी विमर्श, दलित विमर्श, स्त्री विमर्श और रवींद्र के दलित विमर्श का प्रस्थानबिंदू यही आदिवासी दलित बहुजन किसान असल नवजागरण है, जो इतिहास और साहित्य में नहीं है।
हिंदुत्व के एजंडे के लिए गांधी की तरह रवींद्र का वध भी जरूरी हैब्रह्म समाज आंदोलन और औपनिवेशिक ब्रिटिश राज से भी पहले पठान मुगल इस्लामी राजकाज के दौरान समाज सुधार आंदोलनों नवजागरण की चर्चा खूब होती रही है लेकिन जाति तोड़ो अस्मिता तोड़ो के एकीकरण के बहुजन आंदोलन, आदिवासी किसान जनविद्रोहों के सिलिसिले में बाउल फकीर आंदोलन और लालन फकीर कंगाल हरिनाथ की युगलबंदी के रवींद्र संगीत के दलित विमर्श पर चर्चा कभी नहीं हुई है।
बंगाल के बाहर बाकी भारत में रवींद्र और बाब डिलान के नोबेल पुरस्कार के सौजन्य से लालन फकीर के बारे में पढ़े लिखों को थोड़ी बहुत सूचना हो सकती है लेकिन दक्षिण एशिया में ग्रामीण पत्रकारिता की शुरूआत नील विद्रोह, बाउल फकीर आंदोलन और जमींदारों के प्रजा उत्पीड़न के प्रतिरोध बतौर शुरू करने वाले लालन फकीर के नवजागरण ब्रहमसमाज के समकालीन, समानंतर जाति धर्म पहचान तोड़ो आंदोलन में सहयोगी, अनुयायी पत्रकार बाउल कंगाल हरिनाथ की चर्चा अभी शुरू नही हुई है।
मजहबी सियासत के हिंदुत्व एजंडे से मिलेगी आजादी स्त्री को?बहुजनों के असल नवजागरण के हिंदुत्वकरण के इसी धतकरम से नस्ली वर्ण वर्ग वर्चस्व के नस्ली राष्ट्रवाद का जन्म औद्योगिक उत्पादन प्रणाली और ब्रिटिश राज में बहुजनों को मिले हकहकूक की वजह से टूटती जाति व्यवस्था आधारित मनुस्मृति प्रणाली की बहाली के लिए हुआ। इसे समझे बिना नरसंहारी कारपोरेट फासिज्म का प्रतिरोध मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
कंगाल हरिनाथ देवेंद्र नाथ टैगोर की जमींदारी के प्रजाजनों के प्रतिरोध के नेता थे और लालन फकीर के अखाडा़ के बाउल पत्रकार भी थे। वे एक साथ नीलसामंत देशी विदेशी काले गोरे शासकों का प्रतिरोध कर रहे थे तो वर्म वर्ग वर्चस्व के साहित्य कला माध्यम के खिलाफ वैकल्पिक पत्रकारिता की जमीन भी रच रहे थे और मजे की बात यह है कि अपनी ही जमींदारी के खिलाफ प्रतिरोध की यही लालन कंगाल जमीन ही रवींद्र रचनाधर्मिता में तब्दील हो गयी है।
जैसे बाउल फकीर आंदोलन का नस्ली वर्चस्व के राष्ट्रवाद के हित में भगवाकरण हुआ, जैसे संतों सूफियों, फकीरों के सामंतविरोधी राजसत्ता और दैवीसत्तो के खिलाफ लोक जमीन के प्रतिरोध आंदोलन का भक्ति आंदोलन बतौर हिंदुत्वकरण हुआ, जैसे गौतम बुद्ध, महात्मा महावीर, गुरु नानक और गुरु गोविंद सिंह, शिवाजी महाराज, चंडाल मतुआ आंदोलन, लिंगायत आंदोलन, द्रविड़ आंदोलन, अयंकाली और लोखांडे के आंदोलन महात्मा ज्योतिबा फूले और बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर और मान्यवर कांशीराम के मिशन का हिंदुत्वकरण हुआ, उसीतरह लालन फकीर और कंगाल हरिनाथ के जाति तोड़ो आंदोलन का हिंदुत्वकरण हुआ और इसी के तहत रवींद्रनाथ का महिमामंडन और चरित्रहनन का सिलसिला भारतीयजनगण और खासतौर पर भारतीयबहुजन समाज को साझा विरासत की जमीन से बेदखल करने के लिए जारी है।
रवींद्र को विश्वकवि, ऋषि रवींद्र, कविगुरु बनाकर उन्हे लालन फकीर कंगाल हरिनाथ के दलित बहुजन विमर्श और आदिवासी किसान आंदोलन से अलग रखने का कार्यक्रम आनंद मठ का दूसरा पहलू है। आज इसी मुद्दे पर हम सिलसिलेवार चर्चा करेंगे। विस्तार से यह आलेख हस्तक्षेप पर पढ़ें। पूरा आलेख पढ़ने से पहले मेरे फेसबुक पेज पर संबंधित संदर्भ सामग्री बाउल फकीर आंदोलन, लालन फकीर और कंगाल हरिनाथ के बारे में देख लें तो बेहतर।- Veda BF (वेडा बीएफ) पूर्ण वीडियो | Prem Kahani – Full Video
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