हिंदी विश्वविद्यालय (Hindi University) में ‘छायावाद के सौ वर्ष’ (Hundred years of chhaayaavaad) पर राष्ट्रीय संगोष्ठी उद्घाटित
वर्धा, दि. 08 मई 2019: महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय (Mahatma Gandhi International Hindi University) के हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग की ओर से ‘छायावाद के सौ वर्ष’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता वरिष्ठ आलोचक प्रो. विजय बहादुर सिंह ने कहा कि छायावाद ने हृदय से आखों तक दृष्टि और रौशनी दी है। उन्होंने कहा कि छायावाद प्रवृत्ति बहुलता का आंदोलन है। परंपरा और छायावाद पर बहस की आवश्यकता है।
उन्होंने छायावाद क्या है, छायावाद और नवजागरण, रहस्यवाद, स्वच्छंदतावाद और आदर्शवाद आदि पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त और महादेवी वर्मा आदि की काव्य दृष्टि और छायावाद पर विस्तार से अपनी बात रखी।
- Veda BF (वेडा बीएफ) पूर्ण वीडियो | Prem Kahani – Full Video
- 82 हजार अखबार व 300 चैनल फिर भी मीडिया से दलित गायब!
- आरएसएस-भाजपा ने चंदे के लिए माफिया दाऊद की कम्पनी में लगाया पीएफ का पैसा – दिनकर
- अगर बचाना है लाखों रुपये का हॉस्पिटल बिल तो एक मिनट तक हाथ धोएं
- सरयू राय को प्रचार करने से मुख्यमंत्री समर्थकों ने रोका
रचनाधर्मिता का आंदोलन था छायावाद
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि छायावाद, रचनाधर्मिता का आंदोलन था। इस आंदोलन का ठीक से मूल्यांकन नहीं हो सका। उन्होंने कविता और कला की बात करते हुए कहा कि कला में चेतना का विस्तार होता है।
इस अवसर पर कार्यकारी कुलसचिव प्रो. कृष्ण कुमार सिंह, भाषा विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्ल, साहित्य विद्यापीठ की अधिष्ठाता प्रो. प्रीति सागर, आवासीय लेखिका पुष्पिता अवस्थी, संगोष्ठी संयोजक प्रो. अवधेश कुमार मंचासीन थे। विवि के गालिब सभागार में दो दिवसीय (8 और 9 मई) संगोष्ठी का उदघाटन किया गया।
बीज वक्तव्य में प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्ल ने कहा कि छायावाद में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त और महादेवी वर्मा चारों कवी एक दूसरे के पूरक है और जयशंकर प्रसाद इसके केंद्र मे है। छायावाद के रचनाकारों ने नई दुनिया अपने लिए तैयार की है। आवासीय लेखिका पुष्पिता अवस्थी ने छायावाद को शब्दों की यात्रा बताते हुए कहा कि भाषा की शक्ति की वजह से छायावाद आज भी प्रभावी है।
दीप प्रज्ज्वलन, कुलगीत के साथ कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ।
स्वागत वक्तव्य प्रो. प्रीति सागर ने दिया तथा संगोष्ठी की संकल्पना प्रो. के. के. सिंह ने प्रस्तुत की।
इस अवसर पर जनसंचार विभाग के विद्यार्थियों ने वर्धा दर्शन समाचार बुलेटिन प्रस्तुत किया तथा मंचासीन अतिथियों द्वारा मीडिया समय का प्रकाशन किया गया।
कार्यक्रम का संचालन संगोष्ठी के सह-संयोजक तथा साहित्य विद्यापीठ के प्रो. अखिलेश कुमार दुबे ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी के संयोजक प्रो. अवधेश कुमार ने किया।
इस अवसर पर प्रो. मनोज कुमार, प्रो. कृपाशंकर चौबे, प्रो. नृपेंद्र प्रसाद मोदी, डॉ. शोभा पालीवाल, आवासीय लेखिका शेषारत्नम, अरूण कुमार त्रिपाठी, डॉ. अरूण वर्मा, अशोक मिश्र, मुन्ना तिवारी, शितला प्रसाद, चंद्रभान तथा अध्यापक, विद्यार्थी एवं शोधार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।