भारतीय संवतों को किसी धर्म विशेष से जोड़कर लोगों में दूरी या वैमनस्यता पैदा करना असंवैधानिक है और देशद्रोह से कम नहीं है।
जब भी भारतीय नव वर्ष शुरू होता है। वे लोग जिनकी इस नव वर्ष में अगाध आस्था है, आपस में एक दूसरे को बधाई और शुभकामनाएं ज्ञापित करते हैं। मगर बीमार मानसिकता के कुछ लोग हर साल रंग में भंग डालते रहते हैं। अत: मैंने अपनी फेसबुक वाल पर 19 मार्च, 2018 को एक छोटा सा सवाल पूछ लिया था कि————''यह कैसी राष्ट्रभक्ति है? भारतीय नववर्ष हमारा नहीं, बामणों का है! लेकिन संविधान भारत का नहीं अम्बेडकर का है?'' अनेक ऐसे कट्टरपंथी अंधभक्तों को इससे भी बहुत ज्यादा पीड़ा होने लगी, जो कथित रूप से खुद को अम्बेड़करवादी, बुद्धिष्ट और संविधानवादी कहते हैं, लेकिन हकीकत में वे हैं नहीं। हकीकत में इनके विचारों या आचरण में अम्बेड़कर के चिंतन, बुद्ध की प्रज्ञा, संविधान की विशालता तथा भारत की एकता—अखण्डता से दूर—दूर तक कोई वास्ता ही नजर नहीं आता। सच में ये लोग बहुजन एकता तथा अम्बेड़करवाद के नाम पर संचालित कैडर कैम्पों में सुनाई जाने वाली झूठी तथा मनगढ़ंत कहानियों पर आधारित घृणित ज्ञान के रुग्ण उत्पाद हैं जो सत्य को जाने बिना देश के सौहार्द को मिटाने के लिये अम्बेड़कर, बुद्ध और संविधान की आड़ में समाज में कट्टरता को फैलाते रहते हैं। इनमें से कुछ अज्ञानियों ने सवाल पूछा है कि 'कहाँ पढ़ लिया कि ये/नव वर्ष भारत का नववर्ष है'। इसलिये फिलहाल मैं, अपनी टिप्पणी के पहले हिस्से पर ऐसे कट्टरपंथियों से नयी पीढी को भ्रमित होने से बचाने के लिये अपनी बात लिख रहा हूं। दूसरे हिस्से पर फिर कभी लिखूंगा।
————हिन्दी, उर्दू, मराठी, पंजाबी, गुजराती, मलयालम, कन्ऩड़ आदि सभी भाषाएं भारत में जन्मी हैं और भारत के लोगों द्वारा बोली जाती हैं। इसीलिये ये सभी भाषाएं भारतीय भाषाएं कहलाती और मानी जाती हैं। बेशक गुजरात का रहने वाला मलयालम को नहीं समझता हो और महाराष्ट्र में रहने वाला पंजबी को नहीं समझता हो। बेशक हम सभी भारतीय लोग, सभी भाषाओं के समर्थक न भी हों। फिर भी भारत की भाषाओं को हम भारतीय या भारत की भाषाएं ही कहते हैं और जो नहीं कहते, उन्हें संविधान का सम्मान करना है तो मानना और कहना ही होगा। ठीक इसी संवैधानिक उदारता से शक संवत (कनिष्क), विक्रम संवत आदि जितने भी संवत भारत में उदित होकर भारत के लोगों द्वारा स्वीकारे और दैनिक आचरण में माने जाते हैं, सभी भारतीय संवत कहलाते हैं। भारतीय संवतों को किसी धर्म विशेष से जोड़कर लोगों में दूरी या वैमनस्यता पैदा करना असंवैधानिक है और देशद्रोह से कम नहीं है।
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'-National President-BAAS & National Chairman-JMWA