मोदी का हिंदुत्व सिर्फ फरेब है?

मोदी का हिंदुत्व सिर्फ फरेब है?

 क्या बाहैसियत पूरबिया, पूर्वोत्तरी गैरनस्ली बंगाली हम हिंदू नहीं है या मोदी का हिंदुत्व सिर्फ फरेब है?

ध्वनि ही मेरे अस्तित्व की गूंज अनुगूंज बनाती है। वह गूंज अनुगूंज इस कायनात में हमनस्ल-हमशक्ल इंसानों के दिलो-दिमाग में रच बसकर इंसानियत और कायनात की बेहतरी और खासतौर पर दुनियाभर मजहब नस्ल कौम वतन के दायरे तोड़कर इंसानियत और कायनात के हक हकूक का कोई काम करें, यशी तमन्ने का मतलब मेरा जीना मेरा मरना है।

इसी लिहाज से मुझे हर वक्त शब्दों के जरिये उन ध्वनियों को आकार देने की कसरत करनी होती है।

जब तक ध्वनियों से लैस इंसानियत और कायनात के हक में मजबूती से मोर्चाबंद हो पाते हैं मेरे लफ्ज, मैं जिंदा हूँ वरना समझो कि मेरा इंतकाल हो गया। फिर किसी खोज खबर की जरूरत है नहीं।

इस बदतमीजी के लिए इंसानियत और कायनाते के दुश्मनों की नजर में मेरा वजूद शायद खतरनाक भी हो और इसी लिए मुझे न सही मेरे लफ्जों की हत्या की हर मुमकिन कोशिशें होनी हैं बशर्ते कि उसमें लड़ने और हालात बदलने का, फिजां में बहारों का अंजाम देने का दम हो।

माटी से जनमा हूँ। जनम से जन्मजात हिंदू हूँ, अस्पृश्य हूँ और शरणार्थी परिवार से हूँ। जनम से मेरे लिए भारत विभाजन का सिलसिला और वही खूनखराबा, वही जलजला वतन निकाला अब भी जारी है।

यह हादसा मेरी जिंदगी का सच है। हकीकत का मुकम्मल मंजर।

इस महादेश के चप्पे-चप्पे में वतन दर वतन जो कातिलों की जम्हूरियत का फसाना है, हकीकत का यह लहूलुहान मंजर वहाँ उस हादसे के शिकार लोगों का अफसाना है।

इसे वही समझ सकता है, जिनके जख्मों से अभी रिसता है खून।

हमने बार-बार काश्मीर के अलगाववादियों से बातचीत करने की कोशिश की। वे बात करने को तैयार नहीं हैं।

उनका कहना है कि पहले आप काश्मीर के भारत में विलय का विरोध करो और काश्मीर की आजादी के सवाल उठाओ, तब बात होगी वरना नहीं।

काश्मीर मसले को सुलझाने में भारत राष्ट्र की सत्ता और राजनीति के सरदर्द का सबब भी यही है, जिसे काश्मीर के चप्पे-चप्पे में फौजी हुकूमत के जरिये शायद हम हल नहीं कर सकते।

हमने पूर्वोत्तर भारत में कई बार यात्राएं कीं।

अपने मित्र जोशी जोजफ की फीचर फिल्म इमेजिनेरी लाइंस के बाहैसियत संवाद लेखक शूटिंग के लिए कोहिमा से बस तीन किमी दूर मणिपुर के सेनापति जिले के मरम वैली के नागा गांव में डेरा डाला जहाँ नागा लोग अपने ही गांव को स्वदेश मानते हैं और बाकी देश दुनिया उनके लिए विदेश है।

मणिपुर, गुवाहाटी, आगरतला से लेकर पूर्वोत्तर के संवेदनशील इलाकों में बाहैसियत एक सामाजिक कार्यकर्ता और प्रोफेशनल पत्रकार हमने उन तत्वों से संवाद करने की कोशिश की जिनका युद्ध भारत राष्ट्र के खिलाफ जारी है।

वे कहते हैं कि भारत की सत्ता हेजेमनी पूर्वोत्तर के लोगों को भारत का नागरिक मानती नहीं है, दोयम दर्जे की गैरनस्ली प्रजा मानती है। गुलाम मानती है और फौजी ताकत के जरिये हमें भारत में बनाये रखना चाहती है।

खालिस्तान आंदोलन अभी मरा नहीं है।

भारत में उस आंदोलन का दमन हो गया है।

जिन विकसित देशों के साथ सैन्यगठबंधन के जरिये विदेशी पूंजी के हितों में भारत सरकार ने अपनी ही जनता के खिलाफ युद्ध जारी रखा है सलवाजुड़ुम आफसा संस्कृति के तहत, उन्ही राष्ट्रों में बेखौफ भारत विरोधी हरकतें जारी रखे हुये हैं।

आतंक के खिलाफ ग्लोबल अमेरिकी युद्ध के सर्वोच्च सिपाहसालार अमेरिकी अश्वेत राष्ट्रपति बाराक हुसैन ओबामा की नाक के नीचे और शायद उन्हीं के संरक्षण में जारी हैं भारत विरोधी कातिलाना गतिविधियां।

और सारी साजिशें वाशिंगटन में ही रची जा सकती हैं और वहीं से उन्हें अंजाम दिया जाता है। लेकिन उसके खिलाफ सब-कुछ जानबूझकर गुलाम सरकारें खामोश रही हैं और आस-पड़ोस में युद्ध छायायुद्ध के खेल में अमेरिका और इजराइल के साथ रक्षा सौदों का कमीशन खाती रही हैं। खा भी रही हैं। खाती रहेंगी अनंतकाल। यही राष्ट्रीय सुरक्षा का स्थाई बंदोबस्त है मस्त धर्मोन्मादी। बरोबर। बरोबर।

विदेशों में सिख अब भी मास्टर तारा सिंह की आवाज बुलंद कर रहे हैं कि बंटवारे में हिंदुओं को हिंदुस्तान मिला, मुसलमान को पाकिस्तान मिला, सिखों को क्या मिला।

वे सिखों को अलग कौम मानते हैं और मानते हैं कि भारत में सिखों का दमन हो रहा है और यह भी मानते हैं कि मनुस्मृति शासन और हिंदू राष्ट्र के धारक वाहकों के साथ मिलकर सिखों की मौजूदा राजनीति सिखों की शहादत की विरासत के साथ गद्दारी कर रही है। वे खालिस्तान का ख्वाब पूरा करने के लिए रोज नई स्कीमें बना रहे हैं और भारत सरकार और उसकी खुफिया एजेंसियों को इसकी जानकारी होनी ही चाहिए।

हमें तामिलनाडु और तामिलनाडु के बाहर द्रविड़नाडु के झंडेवरदारों से भी संवाद करते रहने का मौका मिलता रहता है जो पेरियार के आत्मसम्मान आंदोलन के तहत नई दिल्ली के आर्य प्रभुत्व को तोड़ने का सपना पालते हैं।

यह हकीकत है। इसे छुपाने से देश की एकता अखंडता बचेगी नहीं।

हमें, इस देश के नागरिकों को इस हकीकत के बारे में पता होना चाहिए ताकि लोगों के गिले शिकवे तकलीफों का ख्याल करते हुये अनसुलझे मसलों को हल करके हम इस देश की एकता और अखंडता की रक्षा कर सकें।

हमें माफ कीजियेगा।

पलाश विश्वास

(समाप्त....)

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पलाश विश्वास । लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। “अमेरिका से सावधान “उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना। पलाश जी हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।

 

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