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सामाजिक आतंक के खिलाफ स्वामी विवेकानंद

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स्वामी विवेकानंद की दृष्टि में देश-भक्ति

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संघ का असली लक्ष्य हिन्दुत्व की रक्षा करना नहीं, संघ का प्रधान लक्ष्य है अंधविश्वास फैलाना, अविवेकवाद फैलाना

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आरएसएस का प्रधान लक्ष्य है भारत को अंधविश्वास में बांधे रखना। सामाजिक रुढ़ियों के सर्जकों-संरक्षकों को बढ़ावा देना, सार्वजनिक मंचों से स्वाधीनता आंदोलन और समाज सुधार आंदोलन के नेताओं की इमेज दुरुपयोग करना। इसी क्रम में संघ परिवार बड़े पैमाने पर स्वामी विवेकानंद की इमेज का दोहन करता रहा है। वास्तविकता यह है कि स्वामी विवेकानंद के अधिकांश विचारों के साथ संघ के आचरण का कोई लेना-देना नहीं है। मसलन्, हम अंधविश्वास के सवाल को ही लें। संघ के लोग और उनके पीएम का सारी दुनिया को विगत सात महीने में जो संदेश गया है वह है भारत अतीत में और अंधविश्वासों की ओर लौट रहा है। प्रतिगामी कदम है। यह पीछे की ओर ले जाने वाला विकास है।

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संघ के लोग सड़कों से लेकर मीडिया तक सांस्कृतिक आतंक पैदा करते रहे हैं और समय-समय पर अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले करते रहे हैं। संघ का प्रधान लक्ष्य है अंधविश्वास फैलाना, अविवेकवाद फैलाना। संघ का असली लक्ष्य हिन्दुत्व की रक्षा करना नहीं है। संघ का असली चरित्र है अंधविश्वास और गरीबी की रक्षा करने वाला।

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विवेकानंद का मानना था भारत की बुनियादी समस्या धर्म नहीं, गरीबी है

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स्वामी विवेकानंद को सारी दुनिया समाज सचेतक के रुप में जानती है। हिन्दुत्ववादी के रुप में नहीं जानती। भारत के हिन्दुओं की इमेज को साखदार बनाने में संघ के किसी नेता का कोई योगदान नहीं रहा है। आज भी संघ को देश के बाहर सबसे घटिया संगठन के रूप में जाना जाता है, इसके विपरीत विवेकानंद को सारी दुनिया जागरुक तार्किक संत के रुप में जानती है। यही वजह है कि विवेकानंद हम सबके प्रेरणा स्रोत हैं। विवेकानंद का मानना था भारत की बुनियादी समस्या धर्म नहीं, गरीबी है। कंगाली की समस्या देश की सबसे बड़ी समस्या है। यह अनुभव उनको भारत का पांच साल तक भ्रमण करने के बाद हुआ।

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उन्होंने अपने एक पत्र में लिखा

''गरीबों के लिए काम की व्यवस्था करने के लिए भौतिक सभ्यता की, यहाँ तक विलास-बाहुल्य की आवश्यकता है। रोटी, रोटी ! मैं यह नहीं स्वीकार करता कि जो ईश्वर मुझे यहाँ रोटी नहीं दे सकता, वह स्वर्ग में मुझे अनंत सुख देगा। उफ! भारत को ऊपर उठाया जाना है। गरीबों की भूख मिटायी जानी है। शिक्षा का प्रसार किया जाना है। पंडों-पुरोहितों को हटाया जाना है ! हमें पंडे-पुरोहित नहीं चाहिए। हमें सामाजिक आतंक नहीं चाहिए! हरेक के लिए रोटी, हरेक के लिए काम की अधिक सुविधाएं चाहिएं।''

(सेलेक्शन्स फ्रॉम स्वामी विवेकानंद,पृ.862)

देश को भगवान की नहीं, रोटी की आवश्यकता

संघ के नेतागण और बाजारू संत-महंत आए दिन प्रचार करते हैं हमें आध्यात्मिक गुरु बनना है। हमें विश्व गुरु बनना है। लेकिन देश को तो भगवान की नहीं,रोटी की आवश्यकता है। भगवान तो अमीरों की जरूरत है, गरीबों के उत्थान के लिए रोटी-रोजी का इंतजाम पहले किया जाना चाहिए।

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विवेकानंद ने गरीबों के बारे में लिखा

''वे हमसे रोटी माँगते हैं,'' .. '' हम उन्हें पत्थर देते हैं। भूख से पीड़ित जनों के गले में धर्म उड़ेलना, उनका अपमान करना है। भूख से अधमरे व्यक्ति को धार्मिक सिद्धांतों की घुट्टी पिलाना, उसके आत्मसम्मान पर आघात करना है।''

संघ परिवार के फंटामेंटलिज्म ने सामाजिक विभाजन का खतरा पैदा कर दिया

swami vivekananda

इन दिनों संघ परिवार ने ईश्वर महिमा के नाम पर फंटामेंटलिज्म का जो मार्ग पकड़ा है उसने सामाजिक विभाजन का खतरा पैदा कर दिया है। मीडिया में भी ऐसे विचारक उपदेश दे रहे हैं कि हमारे देश में अनीश्वरवाद के लिए कोई जगह नहीं है। इस तरह के लोगों को ध्यान में रखकर ही विवेकानंद ने पंडे-पुरोहितों और धार्मिक आतंक की कटु आलोचना करते हुए लिखा था

''मैं आप लोगों को अंधविश्वासी मूर्खों की बजाय पक्के अनीश्वरवादियों के रुप में देखना ज्यादा पसंद करूँगा। अनीश्वरवादी जीवित तो होता है, वह किसी काम तो आ सकता है। किन्तु जब अंधविश्वास जकड़ लेता है तब तो मस्तिष्क ही मृतप्राय हो जाता है, बुद्धि जम जाती है और मनुष्य पतन के दलदल में अधिकाधिक गहरे डूबता जाता है।''

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''यह कहीं ज्यादा अच्छा है कि तर्क और युक्ति का अनुसरण करते हुए लोग अनीश्वरवादी बन जायें -बजाय इसके कि किसी के कह देने मात्र से अंधों की तरह बीस करोड़ देवी-देवताओं को पूजने लगें!''

 विवेकानंद चाहते थे कि भारत के नागरिक अंधविश्वास विरोधी बनें और ताकतवर बने, उनके शब्दों में

''मजबूत बनो! कायर और लिबलिबे न बने रहो! साहसी बनो! कायर की जरूरत नहीं!''

जगदीश्वर चतुर्वेदी

धर्मांतरण धर्म के पाखंड पर स्वामी विवेकानंनद | Vivekananda on conversion & hypocrisy of religion

Swami Vivekananda was against social terror

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