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उमा भारती, मोदी से कम पढ़े-लिखे हैं कवासी लखमा

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hastakshep
28 Dec 2018
अफ्रीकी संघर्ष के प्रतीक नेल्सन मंडेला

उमा भारती, मोदी से कम पढ़े-लिखे हैं कवासी लखमा

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पंकज चतुर्वेदी

बस्तर का सुकमा में जीना और सियासत करना कितना दूभर है - इसकी कल्पना बाहरी दुनिया के लोग कर नहीं कर सकते, ऐसे इलाके की कोंटा सीट से चौथी बार विधायक बने कवासी लखमा (Kawasi Lakhma), इलाके में दादी के नाम से मशहूर हैं, निखालिस आदिवासी-- किसी के घर भे खटिया पर बैठ गए- तुम्बे से पानी पी लिया -- आश्चर्य होगा कि पहली बार कोई सुकमा से मंत्री बना। कुछ लोग उनके निरक्षर होने पर तंज कस रहे हैं। निरक्षर अनपढ़ या अज्ञानी नहीं होता, कभी कवासी दादी के पास बैठो तो पता चलेगा।

कवासी लखमा का जीवन परिचय

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अपना जीवन संघर्ष गायों को चराने से प्रारंभ करने वाले कवासी ठेठ आदिवासी परिवार से हैं। गाय चराने में ज्यादा कमाई नहीं होने के कारण उन्होंने गांव-गांव जाकर जानवरों की खरीदी बिक्री करना शुरू किया। इसी दौरान उनका सुकमा इलाके के लगभग सभी लोगों से परिचय हो गया। दिमाग से तेज कवासी को इलाके अधिकांश लोगों को उनके नामों से जानते हैं। इसी खासियत के कारण उनको इलाके के एक कांग्रेसी नेता ने पंचायत चुनाव में पंच पद के लिए चुनाव लड़वाया। इस चुनाव में वह जीत गए। इसके अगले साल ही उन्होंने सरपंच का चुनाव जीता। तब उनको कांग्रेस पार्टी ने युवा कांग्रेस का ब्लाक अध्यक्ष बनाया। उसी साल इनको विधान सभा के चुनाव टिकट दिया गया। इस चुनाव में कवासी लखमा ने जीत दर्ज की। इनकी इलाके में लोकप्रियता को देखते हुए दंतेवाड़ा का जिला कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। चार बार लगातार विधायक बनने के बाद पार्टी ने प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया। वहीं वह पीसीसी और एसीसी के मेंबर भी हैं।

पार्टी ने उनके लगातार पांचवीं बार विधायक चुने जाने के बाद उनको मंत्री पद से नवाजा है।

कवासी लखमा ने सबसे पहले सन् 1995 में कोंटा विधान सभा से पंचायत चुनाव में पंच के लिए लड़े थे और जीते। इसके बाद दूसरे साल सन् 1996 में सरपंच का चुनाव जीता। सन् 1998 में उन्हें कांग्रेस पार्टी की तरफ से विधायक का टिकट दिया गया और उन्होंने यह चुनाव जीत। इसके बाद कवासी ने कभी मुड़ कर नहीं देखा। कांग्रेस पार्टी इसलिए उनको मंत्री पद से नवाजा है।

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कवासी लखमा को अपने अनपढ़ होने का बहुत दुख है। इसलिए उनकी पहली प्राथमिकता है कि बस्तर में शिक्षा को लेकर लोग जागृत नहीं है, इसलिए गांव-गांव में प्राथमिक शालाओं और और कॉलेजों को खोला जाएगा।

एक बात कवासी के बारे में सत्य है कि वे जन नेता हैं और जनता के बीच रहते हैं, भले ही डिग्रीधारी न हों लेकिन उन्हें किसी डिग्री को छुपाने या उसे दिखने से बचने की जरूरत महसूस नहीं होती।

(वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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