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हर साँस पर मौत की इबारत लिखता 'जानलेवा प्रदूषण'
देश के राजनैतिक गलियारों में अक्सर कभी नागरिकों के लिए मुफ़्त शिक्षा का अधिकार, कभी मुफ़्त भोजन का अधिकार, कभी काम करने के अधिकार, कभी स्वास्थ्य सेवा मुफ़्त हासिल करने का अधिकार तो कभी उन्हें मुफ़्त मकान दिए जाने के अधिकार जैसी तरह-तरह की लोक लुभावन बातें सुनाई देती हैं। शासन व प्रशासन स्तर पर उपरोक्त वादों या दावों को पूरा कर पाना किसी हद तक संभव भी हो सकता है। परन्तु गत कई वर्षों से भारत सहित पूरी दुनिया में मानव जाति को प्रकृति की ओर से दी गई जीवन की सर्वोपयोगी व बहुमूल्य नेमत अर्थात स्वच्छ साँस लेने के मानवीय अधिकार पर ही तलवार लटकती दिखाई दे रही है।
वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी हमारी ही है We have the biggest responsibility for air pollution
दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे वायु प्रदूषण की वजह से स्वच्छ साँस लेने में जो दिक़्क़तें पैदा हो रही हैं। दरअसल उसकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी हमारी ही है। परन्तु अब जबकि यह स्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी है ऐसे में हम राजनीतिज्ञों की ओर इस समस्या से निजात पाने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। उन राजनीतिज्ञों से, जो समस्या के समाधान निकालने से अधिक समस्याएं खड़ी करने,उन्हें उलझाने अथवा लटकाने में या एक दूसरे पर किसी समस्या सम्बन्धी आरोप प्रत्यारोप मढ़ने में पूरी महारत रखते हैं।
हमारे देश में प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ चुका है कि माँ की गर्भ में पलने वाला बच्चा भी पैदा होने से पहले ही वायु प्रदूषण से पैदा होने वाली जानलेवा बीमारी का शिकार है।
राजधानी दिल्ली के अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीज़ों की तादाद में 20 प्रतिशत तक इज़ाफ़ा हो चुका है।
इन्हीं ख़तरनाक हालात के बीच दिल्ली व पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एनसीआर में पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी (Public Health Emergency in NCR) लागू कर दी गयी है। इसके साथ ही दिल्ली सरकार ने राजधानी के सभी स्कूलों को 5 नवंबर तक बंद करने की घोषणा भी कर दी है। इसके अतिरिक्त 4 नवंबर से 15 नवंबर तक राजधानी दिल्ली में यातायात सम्बन्धी ऑड-ईवन फ़ार्मूला (Traffic related Odd-even formula) भी लागू कर दिया गया है।
जगह-जगह पानी का छिड़काव कर प्रदूषण कम करने की कोशिश की जा रही है। राजधानी में वायु प्रदूषण से भयभीत या प्रभावित लोग खांसते व मुंह पर मास्क लगाए हुए देखे जा रहे हैं। किसी की आँखों से पानी बह रहा है किसी की आँखों में जलन हो रही है तो किसी का साँस लेना ही मुहाल हो गया है।
उधर राजनैतिक स्तर पर देखिये तो हरियाणा,पंजाब,दिल्ली तथा केंद्र की सरकारों के ज़िम्मेदारान एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं। जिस दिल्ली के चारों ओर लाखों औद्योगिक इकाइयां, लाखों ईंटों के भट्टे, करोड़ों वाहन हों उस दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने की ज़िम्मेदारी हरियाणा व पंजाब के किसानों पर मढ़ने की कोशिश की जा रही है।
दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (Air Quality Index in Delhi) 360 को पार कर गया है। इसका अर्थ यह है कि दिल्ली में न चाहते हुए भी प्रत्येक व्यक्ति को 20 से लेकर 25 सिगरटें तक पीनी पड़ रही हैं।
2015 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक़ दिल्ली के हर 10 में से चार बच्चे 'फेफड़े की गंभीर समस्याओं' से जूझ रहे हैं।
इन्हीं आंकड़ों के अनुसार 2015 में प्रदूषण से हुई मौतों के मामले में भारत 188 देशों की सूची में पांचवें नंबर पर था।
अध्ययन के अनुसार दक्षिण पूर्व एशिया में वर्ष 2015 में हुई मौतों की संख्या लगभग 32 लाख रही। और पूरे विश्व में हुई क़रीब 90 लाख मौतों में से 28 प्रतिशत मौतें अकेले भारत में हुई हैं। गोया यह आंकड़ा 25 लाख से भी अधिक रहा। ज़ाहिर है 2015 से लेकर आज 2019 के अंतिम दिनों तक वायु प्रदूषण की दशा गत पांच वर्षों के दौरान बद से बदतर ही हुई है।
Less of awareness about pollution among common people
आम लोगों में प्रदूषण के प्रति जागरूकता में कमी भी इसका प्रमुख कारण है। किसानों द्वारा पराली जलाने की घटना तो वर्ष में एक-दो बार ही होती है। जबकि आम लोग गली मोहल्लों में, गांव देहातों में रोज़ाना कूड़ा, कबाड़, प्लास्टिक, पॉलीथिन आदि जलाते हुए मिल जाएंगे। दुधारू जानवर के आस-पास धुंआ कर मच्छर भगाना तो गोया डेयरी मालिकान की परंपरा का एक हिस्सा है। घण्टों धुंआ होने से मच्छर भागें या न भागें परन्तु वातावरण में भरपूर प्रदूषण ज़रूर होता है साथ ही जानवर भी आँखों में धुंआ लगने से विचलित होते हैं।
जहाँ तक प्रदूषण नियंत्रण के बारे में कारगर क़ानून बनाने का सवाल है तो यहाँ भी कारपोरेट के हितों को ध्यान में रखा जाता है।
मिसाल के तौर पर 15 वर्ष पुराने वाहन को सड़क पर चलने के अयोग्य ठहराना एक ऐसा ही क़ानून है। इस क़ानून के बजाए ऐसे क़ानून बनाए जाने चाहिए कि प्रत्येक अमीर व्यक्ति जब और जितने वाहन चाहे वह न ख़रीद सके। किसी भी व्यक्ति को केवल ज़रुरत के अनुसार ही वाहन ख़रीदने की इजाज़त होनी चाहिए। जबकि आज हर धनाढ्य व्यक्ति अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ वाहन ख़रीद सकता है। इससे ट्रैफ़िक व प्रदूषण दोनों ही प्रभावित होता है। अनियंत्रित व अव्यवस्थित निर्माण कार्यों से भी बहुत प्रदूषण फैलता है। इस पर भी नज़र रखा जाना ज़रूरी है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि जहाँ जाने अनजाने में हम किसी न किसी तरह प्रदूषण को बढ़ाने में अपना कोई न कोई योगदान ज़रूर देते हैं चाहे पॉलीथिन या प्लास्टिक का इस्तेमाल ही क्यों न हो। वहीँ प्रदूषण को काम करने के अनेक छोटे छोटे घरेलु उपाए करने में हम पीछे रह जाते हैं। उदाहरणार्थ वृक्षारोपण में ही हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है।
हम अपना जन्म दिवस मनाने और शादी की सालगिरह मनाने के लिए क्या कुछ नहीं करते। पैसे, समय सब कुछ ख़र्च करते हैं। क्या ऐसे अवसरों को हम वृक्षारोपण के लिए निर्धारित नहीं कर सकते? ऐसे मौक़ों पर हमारे द्वारा लगाए गए पेड़ हमें हमारे या हमारे बच्चों के बर्थडे की भी याद दिला सकते हैं और हमारी शादी की याद को भी ताज़ा रख सकते हैं। जबकि दूसरे मौज मस्ती के ख़र्चीले आयोजनों को हम आसानी से भुला देते हैं।
भले ही हम अन्य आयोजन भी करें परन्तु इन अवसरों को वृक्षारोपण के लिए ज़रूर निर्धारित करना चाहिए।
वाहनों का प्रयोग ज़रूरत पड़ने पर ही करना चाहिए। आसपास के फ़ासले पैदल या साइकिल से तय करना स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है और प्रदूषण नियंत्रण में भी इसका एक अहम योगदान है। कुल मिलकर हम कह सकते हैं कि यदि हम स्वयं प्रदूषण के कारणों व इसके समाधान के प्रति पूरी तरह जागरूक नहीं हुए तो यह जान लेवा प्रदूषण न केवल हमारी हर सांस पर मौत की इबारत लिखता रहेगा बल्कि हमारी आने वाली नस्लों के लिए भी हमारी ही और से दी गई तबाही व बर्बादी की 'सौगात' साबित होगा।
तनवीर जाफ़री