/hastakshep-prod/media/post_banners/g9kyimAzQO9GAJPFBS8m.jpg)
लोकसभा चुनाव अंतिम चरण (Lok Sabha election last phase) में है। जहां एनडीए फिर से सरकार बनने के प्रति आश्वस्त दिखाई दे रहा है वहीं विपक्ष ने फिर से मोदी सरकार (Modi government) न बनने देने के लिए कमर कस ली है। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी (UPA chairperson Sonia Gandhi) के विश्वसनीय और राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल विपक्ष की लामबंदी के लिए लग गये हैं। मोदी सरकार के कार्यकाल और चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाषाशैली (Narendra Modi's language style) को देखा जाए तो यदि फिर से मोदी देश के प्रधानमंत्री बनते हैं तो देश में अराजकता का माहौल बनना तय है। उनका पहला काम भूमि अधिग्रहण और श्रम कानून में संशोधन करना होगा। इसका प्रयास वह पहले भी कर चुके हैं। इन्हीं दोनों कानूनों में संशोधन करने के लिए उन्होंने विदेशी निवेशकों को अपने यहां आमंत्रित किया था पर राज्यसभा में बहुमत न होने की वजह से वह अपनी इस योजना में सफल नहीं हो पाये।
दरअसल चतुर सुजान मोदी एक तीर से दो शिकार करना चाहते हैं। एक ओर तो वे विदेशी निवेश कराकर रोजगार के नाम पर वाहवाही लूटना चाहते हैं वहीं तो दूसरी ओर सस्ती जमीन और सस्ता श्रम दिलाकर पूंजीपतियों को सेट करना चाहते हैं। निवेश के नाम पर उन्हें अडानी और अंबानी जैसे पूंजीपतियों का चुनावी कर्जा भी तो उतारना है। उसे वह सस्ती जमीन और सस्ता श्रम दिलवाकर चुकाएंगे।
अपने को फकीर कहने वाले मोदी ने बड़ी चालाकी से पूंजीपतियों के पक्ष में माहौल बनाना शुरू कर दिया है। उन्होंने अपने भक्तों से यह चर्चा करानी शुरू करा दी है कि सरकारी कार्यालयों में मोदी 10-10 घंटे काम ले रहे हैं। ये लोग कहते घूम रहे हैं कि छुट्टी से कर्मचारियों में हरामखोरी बढ़ती है। इन सब बातों का असर निजी संस्थाओं में पड़ना तय है। वैसे तो निजी संस्थाओं में आज की तारीख में भी कर्मचारियों का जमकर शोषण हो रहा है। पर आगे तो मजदूरों को बंधुआ बनाने की पूरी आशंका है।
भले ही मोदी सरकार में बेराजगारी ने रिकार्ड तोड़ दिये हों। बड़े स्तर पर लोगों का रोजगार छिना गया हो पर मोदी सरकार के फिर से आने की कामना भी अधिकतार लोग नौकरीपेशा लोग ही कर रहे हैं।
इसका बड़ा कारण है कि मोदी के भ्रष्टाचार खत्म करने, पूंजीपतियों पर शिकंजा कसने, घोटालेबाजों को जेल भेजने के मोदी के प्रोपगेंडे में ये लोग आ रहे हैं। इन लोगों को यह समझना चाहिए कि यदि एनडीए की सरकार बनती है तो ये सब घोटालेबाज मोदी सरकार को मजबूती देने के लिए एनडीए में बैठे दिखाई देंगे।
यह पूंजीपतियों को किसानों की जमीन दिलवाने का ही षड्यंत्र है कि मोदी समर्थकों का एक बड़ा तबका किसानों को नाकारा ठहराने में लगा है। किसानों को खेती में घाटे लाने की बात कर ये लोग खेती को भी उद्योग के क्षेत्र में लाने का षड्यंत्र रच रहे हैं।
इन लोगों का कहना है कि देखना व्यापारी इसी जमीन से कैसे मुनाफा कमाकर देते हैं। मतलब किसान को उसी के ही खेत में बंधुआ बनाने की तैयारी है। चाहे फसल कितनी भी खाद डालकर तैयार की गई हो। कितने लोग इससे बीमार हों पर सरकार को तो बस मुनाफा चाहिए।
भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन कर शिक्षा और चिकित्सा के नाम पर पूंजीपतियों को किसानों की बेशकीमती जमीन को दिलवाने की योजना है। मतलब यदि भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन होता है तो भूमि अधिग्रहण करने में 70 फीसद किसानों की सहमति होना जरूरी नहीं होगा। सरकार जहां चाहेगा जिसकी चाहेगी जमीन अधिग्रहण कर लेगी। मुआवजा भी सरकार अपनी मर्जी से देगी।
यह सब तैयारी पूंजीपतियों से मिलकर चल रही है। इसकी के नाम पर पूंजीपति मोदी के चुनावी प्रचार में फंडिंग कर रहे हैं। जगजाहिर है कि भाजपा पूंजीपतियों की पार्टी है। इस पार्टी में अधिकतर नेता धंधेबाज हैं तो स्वभाविक है कि इन लोगों को सस्ती जमीन और सस्ता श्रम चाहिए। जो इन्हें सबसे अधिक भाजपा ही उन्हें उपलब्ध करा सकती है। वैसे भी मोदी स्वभाव से व्यापारी हैं और उन्होंने यह खुलेमंच से स्वीकार भी किया है।
यह बात भी जगजाहिर है कि व्यापारी अपना मुनाफा देखता है उसे देश और समाज से कोई मतलब नहीं होता। जैसा कि ईस्ट इंडिया कंपनी करती थी।
हिन्दू राष्ट्र बनाने पर आमादा आरएसएस ऐसे एजेंडे लागू कराएगा कि देश में जाति और धर्म नाम पर माहौल खराब होने का पूरा अंदेशा है। जिसकी शुरुआत मोदी सरकार बनने के बाद ही शुरू हो चुकी थी। मुस्लिमों के नाम पर बने शहरों को तो बदलने की शुरुआत इन लोगों ने शुरू कर दी ही थी। अब मस्जिदों की जगह मंदिरों की शुरुआत होने भी शुरू हो जाएगी। धर्मस्थलों को छेड़ने के परिणाम क्या होंगे। बताने की जरूरत नहीं है।
वैसे भी आरएसएस का हिन्दू राष्ट्र बनाने का एजेंडा तो इसी तरह से ही लागू होगा। जितना लोकतंत्र और संविधान कमजोर होगा उतना ही आरएसएस को अपना एजेंडा लागू करने का मौका मिलेगा। मोदी समर्थकों का धर्मनिरपेक्ष लोगों को पाकिस्तान जाने के लिए कहना भी इस रणनीति का हिस्सा है। वैसे भी ये लोग बंटवारे के बाद मुस्लिमों को भारत में रहने देने के लिए महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराते रहते हैं। जो लोग समाज में भाईचारे और जोड़ने की बात करते हैं उन्हें देशद्रोही कहना शुरू कर दिया है।
देश में इतनी मॉब लिंचिंग की वारदातें हुईं पर प्रधानमंत्री ने इस बारे में न कोई ट्वीट किया और न ही कभी उन्होंने देश में भाईचारे के लिए प्रयास किया। अब तो अमरीका की प्रसिद्ध पत्रिका टाइम ने भी मोदी को 'डिवाइडर चीफ' लिख दिया है।
इन लोगों की यह रणनीति है कि लोग धर्मनिरेक्षता को छोड़कर हिन्दू होने का राग अलापने लगें। वह भी भाजपा का सत्ता में रहने के लिए और पूंजपीति देश के संशाधनों के मजे लूटते रहें। राजतंत्र की तरह इन लोगों को सस्ते मजदूर और सस्ती जमीन मिल जाए। जब चाहा किसी की भी जमीन हथिया ली जाए। जब चाहा किसी को भी मार दिया। किसी को भी उठा लिया। वही जमीदारों वाला रहन शहन और रुतबा लाने के लिए ये लो आतुर हैं। मतलब राजतंत्र।
जनसंघ से निकले लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी ने सोशलिस्टों के साथ मिलकर कांग्रेस के खिलाफ संघर्ष किया था तो उनके अंदर गरीब तबके के लिए एक पीड़ा थी। सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, राजनाथ सिंह एक सभ्य तरीके से राजनीति करते आये हैं। तो उनके अंदर शालीनता है। अमित शाह और नरेंद्र मोदी ने तो गुजरात में गुंडई के बल पर राज किया है। लालू प्रसाद, मुलायम सिंह यादव, प्रकाश सिंह बादल और ओम प्रकाश चौटाला को मिलाकर इतनी बदमाशी नहीं होगी कि जितनी अमित शाह और नरेन्द्र मोदी में है।
वैसे विपक्ष में बैठे दल कांग्रेस, सपा, बसपा, रालोद, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी कोई जमीनी एजेंडे नहीं उठा रहे हैं। इन नेता भी संघर्ष छोड़ सत्ता के पीछे भाग रहे हैं। ये इन दलों की शुरुआत संघर्ष से हुई है तो कहीं न कहीं इनके एजेंडे में कमजोर लोगों के लिए स्पेस है। इन दलों की नीतियों में किसान, मजदूर, रोजगार पर काम करने की बातें हैं। तो ये दल कितने भी भटकेंगे नीतियों के सामने विवश होकर उन्हें कुछ न कुछ काम जमीनी करने ही होंगे।
भाजपा तो विशुद्ध रूप से हिन्दू-मूस्लिम एजेंडे को लेकर ही बनी है। चाहे अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मामला हो, जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने का मामला हो या फिर हिन्दुत्व का। ये सब मुद्दे भावनात्मक हैं। और भाजपा की राजनीति इन मुद्दों पर घूमती रही है।
चरण सिंह राजपूत