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देश नशे में है .. अफीम की खेती ही फूलेगी फलेगी...तमाशा ख़त्म हुआ ..चलो बजाओ...ताली...

यूँ तो मुझे .....
खुद छूना था उसे ...
छू ..भी लेती ....
पर क्या करूँ ....

महीनों से चल रहा मेला उखड़ने लगा..

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खर्चे-वर्चे, हिसाब-विसाब, नफ़े-नुक़सान के कुछ क़िस्से

कौन सा घाट किसके हिस्से...

अब बस यही फ़ैसला होगा...

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बंदर बाट होगी

काट छाँट होगी...

बस कुछ दिन और चलेगा...

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पान की दुकानों पर बातें...

लोगों की आपस में चंद मुलाक़ातें...

उसके बाद सब सब कुछ भूल जायेंगे..

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गली-गली के मुहाने लगे..

चुनावी चेहरों के पोस्टर धूल खायेंगे...

डुगडुगियाँ थक गयीं...

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वापस झोले में जाने को है...

खूब जुटा मजमा ..

खूब बजी बीन...

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बीन पर पूँछ के सहारे खड़े खड़े ..

कुछ साँपों के क़द अचानक से बढ़ गये

अब वो पिटारों में नहीं समायेंगे

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देश पर नीले दंश पड़ेंगे, तब मदारी भी नज़र ना आयेंगे ..

गुदड़ी से मैले कुचैले ..

झोले...

वही पुराने मुद्दों के मंत्र... .

क्या ख़ाक प्रजातंत्र....

भांड मिरासियों की तरह गाता बजाता इक शोर ..

गले में घंटियां टाँगे कुछ ढोर...

शहर गाँव चाल ..चौपाल खूब ..

हके...

सबने भांजी अपनी अपनी लाठी....

बन्दर बन्दरियों ने भी मिट्टी में लोट-लोट कर खायी गुलाटी

...कई रंगों ने दीवारों का मुँह साना ..

नौरंगी नार सा ..

सजा शहर पहना नित नया बाना....

खूब हुयी दिलजोई...

खूब दिल बहला ..

चलो उठो वापस घरों को जाओ ..

तुम्हें हमेशा की तरह राशन की क़तारों में खड़े होना है...

वहीं धूप सिंका तन...

वहीं रोटियों का रोना है...

कौन क्यूँ जीता...कौन क्यूँ हारा...

इससे क्या लेना देना ..तुम्हारा.....

राजनीति अब पतंग उड़ाने जैसा है

बाज़ियाँ लगती हैं....

जीत हार के सट्टे...

कुछ पैसे वाले हट्टे कट्टे लोग इक खेल खेलते हैं...

अपने-अपने फ़ायदे की रोटियाँ बेलते हैं...

राष्ट्र, राष्ट्रवाद सबका डब्बा गोल..

चुप जा कविता और मत बोल....

वोट देना भी अब पीछा छुड़ाने जैसा है..

जीतेगा वही जिसके पास पैसा है ..

जिधर की लहर हो...उधर बह लो...

इस कीचड़ भरे...

दलदल में नैतिक मूल्यों की नाव ना चलेगी...

देश नशे में है .. अफीम की खेती ही फूलेगी फलेगी...

तमाशा ख़त्म हुआ ..

चलो बजाओ...ताली...

तोते उड़ गये सारे...

अब तुम्हारे दोनों हाथ है ख़ाली...

जुटो अपने अपने धंधे पानी में ..

क्योंकि तुम्हारी कहानी में ..

कभी कोई नया मोड़ नहीं आने वाला...

चूँकि ..तुम जनता हो ..

तुम्हारी समस्याओं का एक चेहरा नहीं होता...

इसलिये तो कभी तुम्हारे सर सेहरा नहीं होता...

डॉ. कविता अरोरा

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