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जब मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित किया गया (Masood Azhar was declared a global terrorist) तो लोगों के मन में यह सवाल था कि लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Elections 2019) के बीच अचानक यह बड़ा फैसला आ गया, जो चीन लगातार विरोध कर रहा था कैसे मान गया। पाकिस्तान ने विरोध क्यों नहीं किया। अमेरिका कैसे भारत पर इतना दरियादिल हो गया।
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित शुभाजीत रॉय की खबर (News of Shubhajit Roy published in Indian Express) यह मामला खुलकर सामने आ रहा है। पूरे प्रकरण से लग रहा है कि वादों में चारों ओर घिर चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब देखा कि अब राम मंदिर, हिन्दुत्व जैसे प्रभावी भावनात्मक मुद्दे भी चुनाव में काम नहीं आने जा रहे हैं तो उन्होंने आतंकवाद को पाकिस्तान से जोड़कर इस मुद्दे अपनी गोटी बिछाई। क्योंकि मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने का मामला लंबे समय से चल रहा था। इसलिए उन्हें इस मामले में चुनाव प्रभावित होता दिखा।
यह जगजाहिर हो चुका है कि पाकिस्तान ने मसूद अजहर को शरण दे रखी है। आतंकवाद के मुद्दे पर हमारे देश के लोग पाकिस्तान से नफरत करते हैं। क्योंकि मसूद अजहर कई आतंकी हमलों की जिम्मेदारी ले चुका था कि इसलिए उसके वैश्विक आतंकी घोषित होने पर चुनाव में फायदा हा सकता था। यह खेल मोदी ने बड़ी चालाकी से खेला। प्रधानमंत्री मोदी ने मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कराने के लिए न केवल चीन की बात मानी बल्कि पाकिस्तान की शर्तों को भी सिर माथे लिया। इतना ही नहीं अमरीका के दबाव में लंबे समय से सच्चे साथी की भूमिका निभा रहे ईरान से भी नाता तोड़ लिया। अब भारत ईरान से तेल पर छूट नहीं मिलेगी।
ऐसी जानकारी मिल रही है कि अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के 10 दिन पहले यह तय हो गया था। चीन को पहले ही मनाया जा चुका था। मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कराने के लिए कूटनीतिक प्रयासों का बड़ा हिस्सा न्यूयार्क में हुआ। छह देशों के अधिकारी इसमें शामिल बताये जा रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि जो चीन मसूद अजहर के वैश्विक आतंकी बनने में रोड़ा बना हुआ था तो वही चीन अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित करने की कवायद का बड़ा हिस्सा बनता है।
बताया जा रहा है कि भारत के कहने पर चीनी वार्ताकार पाकिस्तान पहुंचता है। पाकिस्तान इस मामले में अपनी शर्तें रखता है जो भारत को बताई जाती है। इन शर्तों में मुख्य रूप से दोनों देशों का तनाव कम करने, संबंध सुधारने, पुलवामा आतंकी हमले को अज़हर से न जोड़ने और कश्मीर में हिंसा न होने देने की बात प्रमुखता से होती हैं। अधिकारी स्तर पर हुई बातचीत में भारत पाकिस्तान की इन शर्तों को मानने से इनकार कर देता है।
चीन प्रधानमंत्री मोदी की बेचैनी को समझ लेता है। और मौके का फायदा उठाते हुए अपनी तरफ से बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट (Belt and road project) का समर्थन करने की शर्त उसमें जोड़ देता है। यह वही शर्त होती है जिसका 2017 में भारत ने कड़ा विरोध किया था। उस समय भारत का तर्क था कि पाकिस्तान और चीन के बीच जो गलियारा बन रहा है वह इसी बेल्ड एंड रोड का हिस्सा है। यह प्रोजेक्ट भारत की भौगोलिक संप्रभुता में दखल देता है। इसकी वजह यह थी कि यह पाक अधिकृत कश्मीर से गुज़रता है। शुरुआत में भारत ने इस शर्त को भी मानने से इनकार कर दिया।
बताया जा रहा है कि क्योंकि चीन मोदी की दोबारा से सत्ता में आने की लालसा समझ रहा था तो वह इस शर्तं पर अड़ गया।
बात चल ही रही थी कि आपरेशन बालाकोट हो जाता है। पाकिस्तान भी जवाबी कार्रवाई करता है। यह बात का ही असर था कि विंग कमांडर अभिनंदन को ससम्मान वापस कर दिया जाता है।
मतलब मोदी ने पाकिस्तान की एक महत्वपूर्ण शर्त दोनों देशों के बीच तनाव कम होने की मान ली थी। भारत ने पहले मसूद अज़हर के खिलाफ प्रस्ताव पुलवामा के कारण ही बढ़ाया था।
अप्रैल के बीच में बेल्ड एंड रोड प्रोजेक्ट को लेकर बातचीत हो ही रही थी कि अमरीका ने चीन पर जल्द फैसला लेने का दबाव बना दिया। अमेरिका का कहना था कि यदि वह नहीं माना तो इस पर संयुक्त राष्ट्र में खुला मतदान होगा। चीन इसके लिए तैयार नहीं था।
यह मोदी की किसी भी कीमत पर अजहर मसूद वैश्विक आतंकी घोषित कराकर चुनाव जीतने की रणनीति ही थी कि इसके लिए तैयार हो गया कि वह चीन के बेल्ट एंड रोड के बारे में कुछ नहीं बोलेगा पर अपनी स्थिति से समझौता नहीं करेगा।
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इधर पाकिस्तान ने भी मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित होने पर एतराज़ न जताने के संकेत दे दिये। चीन और पाकिस्तान का मानना था कि अज़हर पर प्रतिबंध से पाकिस्तान की स्थिति आतंकवाद मामले में बेहतर ही होगी। इससे यह संदेश जाएगा कि पाकिस्तान आतंकवाद से लड़ने के लिए गंभीर पहल कर रहा है। यही सब कारण था कि पाकिस्तान ने मसूद अज़हर के खाते सीज़ किये।
मोदी का यह सब समझौता ही था कि 22 अप्रैल को अमरीका ने घोषणा कर दी कि भारत को ईरान से तेल आयात की छूट मिली हुई थी, वह 2 मई के बाद वापस ले ली जाएगी।
यह मोदी का मसूद अजहर मामले में को लेकर अमरीका से समझौता ही था कि भारत ने विरोध नहीं किया। भारत ने अमेरिका के दबाव में ईरान का साथ न देने की बात स्वीकार कर ली। इससे देश का कितना नुकसान हुआ इसका अंदाजा इसी बात लगाया जा सकता है कि यह ईरान ही था जो भारत को उसकी मुद्रा में तेल देता था। मतलब मोदी सरकार आतंकवाद के मुद्दे पर चुनाव जीतने के लिए देश का यह बड़ा नुकसान करने से भी नहीं चूके।
अमरीका का इस मामले में तर्क बताया जा रहा है कि जब वह आतंक के मसले पर भारत की मदद कर रहा है तो बदले में भारत ईरान पर प्रतिबंध की नीति पर उसे सहयोग करे।
बताया जा रहा है कि 22 अप्रैल को विदेश सचिव विजय गोखले बीजिंग भेजा गया। दोनों देशों के बीच डील हुई और मसूद अज़हर से पुलवामा हमले को अलग कर दिया गया।
इन सब बातों से स्पष्ट होता है कि मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी तो घोषित किया गया। इसलिए नहीं कि उसने पुलवामा में आतंकी हमला किया था। इसलिए कि उसके संबंध अल-क़ायदा और तालिबान से रहे हैं।
इस पूरे प्रकरण से समझ में आ जाता है कि मोदी सत्ता के लिए जनता की भावनाओं से किस बेकद्री से खेल रहे हैं।
चरण सिंह राजपूत