नयी शिक्षा नीति के प्रारूप पर हिंदी विवि में दो दिवसीय राष्ट्रीय संवाद कार्यक्रम का समापन…. two-day National Dialogue Program in Hindi University on the draft of New Education Policy
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देश भर के विद्वानों ने नयी शिक्षा नीति पर किया विमर्श (Discussions on new education policy)
वर्धा, 22 जुलाई 2019: नयी शिक्षा नीति के प्रारूप के भाषा विषयक प्रावधानों (Language-related provisions of the new education policy format) पर रचनात्मक सुझाव हेतु बीती 16 और 17 जुलाई को आयोजित राष्ट्रीय संवाद कार्यक्रम का समापन महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय (Mahatma Gandhi International Hindi University) के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल की अध्यक्षता में किया गया।
विश्वविद्यालय के हिंदी शिक्षण अधिगम केंद्र (Hindi teaching learning center) की ओर से आयोजित राष्ट्रीय संवाद कार्यक्रम के समापन पर बुधवार, 17 जुलाई को महादेवी वर्मा सभागार में देश भर से आए विद्वानों ने अपनी बात रखी।
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इस अवसर पर बाबासाहब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ के कुलाधिपति डॉ. प्रकाश बरतूनिया, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली के सदस्य प्रो. किरन हजारिका, हिमाचल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री, प्रो. उमाशंकर उपाध्याय, कार्यकारी कुलसचिव प्रो. कृष्ण कुमार सिंह, भाषा विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्ल, साहित्य विद्यापीठ की अधिष्ठाता प्रो. प्रीति सागर और अन्य विद्वान प्रमुखता से उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन हिंदी शिक्षण अधिगम केंद्र के संयुक्त निदेशक एवं संवाद कार्यक्रम के संयोजक प्रो. अवधेश कुमार ने किया तथा आभार कार्यकारी कुलसचिव प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने माना।
Education in native language is essential for originality
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चर्चा में अपने विचार रखते हुए प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि मौलिकता के लिए मातृभाषा में शिक्षा को आवश्यक बताया और कहा कि भाषा शिक्षा यह शिक्षा नीति का आत्मा है। ज्ञान-विज्ञान अपनी भाषा में लाने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं को महत्व देना आवश्यक है।
पूर्व कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र का कहना था कि त्रि-भाषा सूत्र के अंतर्गत हिंदी, हिंदीतर और विदेशी भाषाओं को शामिल करना चाहिए।
डॉ. बरतूनिया ने कहा कि शिक्षा नीति के मसौदे पर भारत के सभी विश्वविद्यालयों में चर्चाएं हो रही हैं। इसमें कोई वर्ग छूट न जाए और सभी के विचार, सुझाव सम्मिलित हों इसका ध्यान रखा जाए। सभी भारतीय भाषाओं के लिए एक लिपि की बात उन्होंने कही।
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प्रो. हजारिका का कहना था कि आने वाले समय में मातृभाषा में ज्ञान-विज्ञान, तकनीकी का विकास संभव है। पूर्वोत्तर के लिए इस नीति के अंतर्गत सुनहरा अवसर है।
दो दिवसीय संवाद कार्यक्रम में चर्चाओं के आधार पर संस्तुतियां तैयार की गयी है जो मांगे गए सुझावों के अंतर्गत भारत सरकार को भेजे जाएंगे। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, विभागाध्यक्ष और अन्य अध्यापक प्रमुखता से उपस्थित थे।