मप्र- छत्तीसगढ़ : मायावती ने कांग्रेस से अलग जाने का फैसला किया है, जबकि उसकी यूपी में ही जमीन खिसक चुकी है
उप्र : 2017 में मायावती ने भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभाई
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले थे। उसके पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा को 5, कांग्रेस को 3 और बसपा को 0 सीटें मिलीं। पूरा विपक्ष भाजपा के राजनीतिक समीकरण के सामने धराशायी था।
इस बीच प्रेस क्लब में यूपी भाजपा के एक प्रवक्ता और तत्कालीन प्रदेश उपाध्यक्ष से मुलाकात हुई। कांग्रेस और सपा का समझौता हो चुका था।
भाजपा नेता ने मुझसे पूछा कि यूपी चुनाव के बारे में आपका क्या आकलन है। आपको मैं पढ़ता रहता हूँ और एक दशक पुराना मित्र होने की वजह से आपकी क्रिटिकल समीक्षा का कायल हूँ।
मैंने उनसे कहा कि फील्ड में नहीं हूँ, इसलिए बहुत ज्यादा जमीनी जानकारी नहीं है। आप यह बताएं कि नोटबन्दी के बारे में आपकी क्या राय है?
उन्होंने कहा कि लोगों को परेशानी है, लाइन लगाना पड़ रहा है। तमाम लोगों का काला धन डूब गया।
मेरा सवाल यह था कि आप बिजनेसमैन हैं, आपका कितना डूबा?
वह बहुत जोर से ठठाकर हंसे और बोले कि हम लोग तो गरीब आदमी हैं, हमारे पास कहां पैसा है जो डूबेगा! कोई दूसरा दे दे, उसे भी नहीं डूबने देंगे।
मेरा अगला सवाल यह था कि आम पब्लिक का क्या रिएक्शन है नोटबन्दी पर?
उन्होंने कहा कि लोग थोड़े परेशान तो हैं,लेकिन यह खुशी है कि अमीरों का काला धन फिनिश हो गया।
वह ब्राह्मण हैं, सीधे सीधे जाति पर नहीं आ रहे थे। मैंने सीधे पूछा कि ओबीसी और एससी वोटर्स की क्या प्रतिक्रिया है, खासकर जो सपा बसपा को वोट देते हैं?
फिर वह बहुत जोर से हंसे और बोले, "मोदी ने उनको बहुत बड़ी खुशी दे दी है। अगर किसी ठाकुर बाभन के यहां कोई बच्चा अखबार जला दे रहा है तो वो उसका धुआं देखकर खुश हैं कि बाऊ सहेबवा की नोट आज फुंक गईं।"
मैंने कहा कि टिकट लेने की कवायद में लग जाइए, भाजपा एकतरफा जीत रही है,कोई उसको रोक नहीं पाएगा।
उन्होंने आश्चर्य में कहा कि ऐसा क्यों?
मैने कहा,
"इस देश की आम जनता का इतना शोषण हुआ है कि अमिताभ जब फ़िल्म में किसी सेठ,किसी ठाकुर की लड़की को लेकर भागता है,उसे पीटता है तो जनता खुशी में ताली बजाती है,उसे लगताहै कि उसका नायक मिल गया और अमिताभ को महानायक बना देती है। नरेंद्र मोदी ने लोगों को वही खुशी दे दी है।"
यूपी विधानसभा चुनाव के पहले सपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी। चार साल का यादवी आतंक था, और कोई आम नागरिक किसी यादव सरनेम वाले व्यक्ति के खिलाफ थाने में एफआईआर सामान्यतः नहीं लिखवा पाता था। यादव तबका इतना सम्पन्न तो नहीं कि वह अपर कास्ट को टक्कर दे सके, ओबीसी ही उसके शिकार थे।
कई चुनाव से यही फ्लोटिंग ओबीसी कभी सपा, कभी बसपा को आजमाता रहा था यूपी में। उसे विकल्प की तलाश थी।
मुस्लिम वोट मतलब कन्फ्यूजन वोट
कांग्रेस ने शुरुआत में खटिया यात्रा निकाली, तब तक कन्फ्यूजन था। मुस्लिम वोट को हम लोग बातचीत में कन्फ्यूजन वोट कहते हैं। वो बेचारा कई चुनाव से भाजपा को रोकने का ठेका ले रखा है जिससे भाजपा रुक नहीं पाती। जब कांग्रेस सपा के साथ आई तो यह साफ हो गया कि कन्फ्यूजन वोट बसपा से गया। वह सपा कांग्रेस गठजोड़ को वोट करेगा।
ऐसे में भाजपा ने मौके का जबरदस्त लाभ उठाया। सपा से जो ओबीसी वोट नाराज था, उसको भाजपा ने खूब टिकट बांटे। उनके सामने अपना विकल्प रखा कि सपा को अब बसपा नहीं, भाजपा ही हरा सकती है।लोकसभा में जीती 73 सीटें भाजपा के पक्ष में इसकी गवाही भी दे रही थीं। सपा से नाराज ओबीसी वोटर्स ने भाजपा को ही सुरक्षित विकल्प समझा। विधानसभा चुनाव का परिणाम आया तो 1989 के बाद सबसे ज्यादा कुर्मी विधायक चुने जाने का रिकॉर्ड 2017 में बना। इससे समझा जा सकता है कि भाजपा ने किस तरह सपा और बसपा के पैर के नीचे से जमीन खींची थी।
मायावती ने इस जीत में अहम भूमिका निभाई। बसपा को जहां अपना ओबीसी वोट जोड़ना चाहिए था, उसने मुस्लिम और ब्राह्मण समीकरण पर भरोसा किया। सुरक्षित एससी सीटों के अलावा ज्यादातर सीटें ब्राह्मण और मुस्लिम को बांट डाली।
कांग्रेस से जुड़े एक मित्र बताते हैं कि पार्टी ने सबसे पहले बसपा से गठजोड़ की कवायद की थी। करीब हर स्वतंत्र समीक्षक को लगता था कि अगर कांग्रेस बसपा का गठजोड़ होता है तो मुस्लिम वोट इस गठजोड़ की ओर आ जाएगा और सपा को हराने की इच्छा रखने वालों को विकल्प के रूप में एक गठजोड़ मिल जाएगा।
कांग्रेस से जुड़े एक व्यक्ति बताते हैं,
"राहुल गांधी से मैंने यह सवाल किया कि पार्टी ने बसपा से समझौता क्यों नहीं किया तो राहुल ने बताया कि कांग्रेस के दो प्रतिनिधि बसपा अध्यक्ष से बात करने गए थे। मायावती ने उन्हें इस कदर डांटकर भगाया था कि वो जब मेरे सामने आए तो ऐसा लगा कि अभी रो देंगे। उसके बाद पार्टी ने सपा से समझौता किया था।"
मिलकर आए तो सबसे पहले उन्होंने मुझे फोन किया। मायावती के ड्रेस, बॉडी लैंग्वेज, बात के लहजे का बखान किया और कहा कि वह ओवर कॉन्फिडेंट हैं कि बसपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आ रही है। मायावती ने उनसे कहा कि अंतिम चरण है, काम करो, पार्टी जीत रही है।
मैंने इस सूचना के बाद बसपा के फेवर में खुलकर लिखा। याद है कि वह लिखने के बाद बनारस के एक साथी, जो मिर्जापुर आजमगढ़, बनारस सहित 10-12 जिले घूमकर आए थे, मुझे मैसेज किया, "थोड़ा टोन डाउन करिए, पूर्वी यूपी में बसपा फिनिश होने जा रही है। उसे एक भी सीट नहीं मिलेगा।"
मैंने पूछा कि सपा जीत रही है क्या तो उन्होंने कहा कि सपा दूसरा स्थान मेंटेन रखेगी, बसपा साफ हो रही है!
अभी 3 राज्यों में चुनाव होने को हैं। इसके परिणाम एक हद तक 2019 लोकसभा चुनाव की इबारत लिखने जा रहे हैं।
इस बीच मायावती ने कांग्रेस से अलग जाने का फैसला किया है, जबकि उसकी यूपी में ही जमीन खिसक चुकी है।
हालांकि छत्तीसगढ़ के कुछ हद तक सटीक विश्लेषक अनिल मिश्र का मानना है कि बसपा का काँग्रेस गठजोड़ से बाहर जाना कांग्रेस को लाभ पहुंचा सकता है। उसकी वजह बताते हुए अनिल कहते हैं कि शेड्यूल्ड कॉस्ट बहुल इलाके में अभी भाजपा जीतती है, अगर उसका एससी वोट कट गया तो वह कांग्रेस के लिए फायदेमंद होगा।
अनिल की समीक्षा इस हिसाब से भी सही लगती है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में इस समय कांग्रेस बड़ी महीनी से ओबीसी पॉलिटिक्स खेल रही है।
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत पूरी तरह ओबीसी हैं। वहीं मध्यप्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया परिवार को आधा अधूरा ओबीसी माना जाता है। मराठा सरदार शिवाजी को कुनबी कहा जाता है और नार्थ के हिंदी बेल्ट में तमाम कुर्मियो के घर मे उसी तरह शिवाजी की फोटो पाई जाती है जैसे शेड्यूल्ड कॉस्ट परिवारों के पास अम्बेडकर की।
कांग्रेस का फार्मूला कितना कारगर होगा, यह देखने वाली बात होगी। लेकिन अभी फिलहाल बसपा कौन सी राजनीति कर रही है, यह समझ से परे है।
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