मैं भी नक्सल तू भी नक्सल
(सलमान हैदर, 2016 की कविता मैं भी काफिर से प्रेरित)
मैं भी नक्सल तू भी नक्सल
मातादीन की भूख भी नक्सल
मज़दूरों की मेहनत नक्सल
ये भी नक्सल वो भी नक्सल
रॉय भी और मन्दिर भी नक्सल
किसानों के खेत भी नक्सल
मुर्दों का मातम भी नक्सल
हवा, पानी, रात भी नक्सल
सुबह की खुशबू भी नक्सल
जेएनयू का पढ़ना भी नक्सल
दलितों का खाना भी नक्सल
मुद्गल की आवाज़ भी नक्सल
लाल रंग की छाप भी नक्सल
स्कर्ट पैंट और कैप भी नक्सल
दवा मंगाओ तो भी नक्सल
लिंचिंग का विरोध भी नक्सल
बच्चों की ऑक्सीजन नक्सल
माँऔं की चीज़ें भी नक्सल
ख्वाबों की लाश भी नक्सल
मस्जिद का मुल्ला भी नक्सल
पादरी का चोला भी नक्सल
कश्मीरी तो हैं ही नक्सल
अब तो मुल्क में सिर्फ हैं नक्सल
औरत की लाज भी नक्सल
इंक्लाब का मतलब नक्सल
कविता और शायर भी नक्सल
आईन के सब मतवाले नक्सल
जम्हूरियत के ये प्यारे नक्सल
सरकारी कुछ नौकर नक्सल
अपने तेरे मेरे नक्सल
इतनी सी बस बात है प्यारों
मैं भी नक्सल तू भी नक्सल
(एम्स, नई दिल्ली)
ज़रा हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करें
<iframe width="672" height="378" src="https://www.youtube.com/embed/Uw-CqsW3RAQ" frameborder="0" allow="autoplay; encrypted-media" allowfullscreen></iframe>