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मैं जब कश्मीर (Kashmir) गया तो वहां एकदम शान्ति थी। इस शान्ति को देखकर ही मैंने जाने का मन बनाया, लेकिन मन में यह समझ काम कर रही थी कि मोदी सरकार कश्मीर को शांत नहीं रहने देगी। मोदी सरकार की आदत है शांति को अशांति में तब्दील करो, सामान्य स्थिति को अ-सामान्य स्थिति में रूपान्तरित करो। इस बुनियादी समझ के आधार पर विगत पांच साल से यह सरकार काम कर रही है। मोदी सरकार की इस चारित्रिक विशेषता (Characteristic feature of Modi government) को नजरअंदाज करके कोई बहस संभव नहीं है। आम जनता के जीवन में शांति से इनका तीन-तेरह का रिश्ता है।
मोदी के केन्द्र में सत्ता में आने के पहले जेएनयू शांत था, लेकिन उसकी शांति भंग हो चुकी है। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-भाजपा की जब सरकार बनी थी तब यह राज्य शांत था, लेकिन अब अशांत है, स्थिति लगातार बदतर हुई है और अब भारत के नक्शे से राज्य के रूप में जम्मू-कश्मीर का अस्तित्व ही खत्म कर दिया गया है। विधानसभा चुनावों के बाद जहां पर भी विपक्ष की सरकार बनी, उसे अस्थिर करके, खरीद-फरोख्त करके धराशायी किया गया।
कहने का आशय यह कि मोदी सरकार का मूल मंत्र है अशांति फैलाओ, बहुसंख्यकवाद का प्रचार करो। बहुसंख्यकवाद है तो देश है, जो बहुसंख्यकवाद को माने वह मोदी का लाड़ला है, जो बहुसंख्यकवाद के दायरे के बाहर नाचे-गाए उसे रंगे-बिरंगे तरीकों से बदनाम करो।
राजनीति में बहुसंख्यकवाद और प्रशासनिक स्तर पर अस्थिरता और अशांति, यही दो मंत्र हैं जिनके सहारे जय हो मोदी ! जय हो मोदी! का कान फोडू प्रचार अभियान चल रहा है, चूंकि समूचे कम्युनिकेशन का आधार बहुसंख्यकवादी परिप्रेक्ष्य को बना दिया है, इसलिए साधारण जनता में भाजपा-आरएसएस अब एक कॉमनसेंस की जगह बना चुके हैं।
अब आरएसएस-भाजपा की बातें बिना तर्क के सीधे-सीधे आम लोगों के एक बड़े हिस्से के गले उतारी जा रही हैं।
भाजपा –आरएसएस को अब साम्प्रदायिकता के आधार पर जनता से अलग-थलग करना संभव नहीं है। बहुसंख्यकवाद के जरिए तमाम किस्म के कॉमनसेंस, मोदी के महावीरता की गप्पों, फेक न्यूज, अंधविश्वासों, संविधान विरोधी मान्यताओं-धारणाओं और पुराण कथाओं की दैनंदिन खुराक ने भारत में नए किस्म के तथ्यहीन, सत्यहीन मोदीविमर्श को जन्म दिया है। नया जम्मू-कश्मीर इसी मोदी विमर्श की देन है।
मोदी विमर्श के धारा 370 हटाने (Article 370 removal) के साथ शुरू किए गए विमर्श की कई रूढ़ियां हैं, पहली, कश्मीर आजाद हो गया, दूसरी, कश्मीरी गरीब हैं, तीसरी, कश्मीर की लड़कियों के हितों की रक्षा की गयी है, चौथी, मुसलमानों को औकात बता दी गयी है।
इन रूढ़ियों को बहुसंख्यकवाद के कॉमनसेंस के फ्रेम में रखकर प्रचारित किया जा रहा है। सब कुछ बहुसंख्यकवादी फीलिंग के तौर पर सर्कुलेट हो रहा है। यह नए किस्म का राजनीतिक आस्वाद है। इसमें वे लोग भी लपेटे में आ गए हैं जो कल तक मोदी का विरोध कर रहे थे।
उल्लेखनीय है मोदी विमर्श पर कश्मीरी लोग विश्वास कम करते हैं, बाकी देश में भाजपा-आरएसएस के अनुयायी जो कि बहुसंख्यकवादी हैं, वे अधिक विश्वास करते हैं।
भाजपा-आरएसएस – पीएम मोदी को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने राजनीति को राजनीति के शिखर से उतारकर कॉमनसेंस के शिखर पर बिठा दिया है।
फिलहाल बहुसंख्यकवादी कॉमनसेंस में राजनीतिक शूरवीरता और जनता कह रही है, ये ही कम्युनिकेशन पैटर्न हैं। इस परिप्रेक्ष्य में देखेंगे तो पीएम मोदी महाशूरवीर, अमित शाह उनसे भी बड़े शूरवीर नजर आएंगे।
#कश्मीर
जगदीश्वर चतुर्वेदी