संघ-मोदी बेहूदा तर्क दे रहे हैं कि पटेल किसी दल की थाती नहीं हैं, जब स्वाधीनता संग्राम चल रहा था तो संघ कहाँ सोया हुआ था ?
मोदी, संघ और पटेल
पीएम मोदी को गांधी की हत्या से पहले वाला पटेल पसंद है। उस समय सरदार वल्लभ भाई पटेल की मुसलमानों के प्रति जो मनोदशा थी,वह पसंद है।
पटेल का दंगों के समय मुसलमानों के प्रति सही रवैया नहीं था। अब्दुल कलाम आजाद ने जो उस समय मंत्री थे अपने संस्मरणों में उसका ज़िक्र किया है।
विभाजन के बाद दिल्ली में संघ मुसलमानों को नेस्तनाबूद करने पर आमादा था। पटेल उस समय एकदम संघ के मूक दर्शक बने हुए थे। उस समय प्रचार कराया गया कि मुस्लिम मुहल्लों में भयंकर हथियार पाए गए हैं और यह पटेल के इशारों पर प्रक्रिया गया। यह भी कहा गया कि अगर हिन्दुओं और सिखों ने पहले हमला न किया होता तो मुसलमानों ने उन्हें साफ़ कर दिया होता। पुलिस ने कुछ हथियार करोलबाग और सब्जी मंडी से बरामद किए थे। सरदार पटेल के हुक्म से वे सभी हथियार सरकारी भवन में लाए गए और उस कमरे के सामने रखे गए जो मंत्रिमंडल की मीटिंग के लिए तय था। जब मंत्रिमंडल के सब सदस्य इकट्ठा हो गए तो सरदार पटेल ने प्रस्ताव किया कि पहले इन हथियारों को देख लिया जाये। मंत्रियों ने वहाँ जाकर देखा।
मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने लिखा है –
"वहाँ जाने पर हमने मेज पर रसोईघर की दर्जनों जंग लगी छुरियां देखीं जिनमें बहुतों की मूठ नदारद थी। हमने लोहे की खूंटियां देखीं जो पुराने घरों की चहारदीवारियों में पाई गईं थी और देखे कास्ट आयरन के पानी के कुछ पाइप। सरदार पटेल के अनुसार ये वे हथियार थे जिन्हें दिल्ली के मुसलमानों ने हिन्दुओं और सिखों को खत्म करने के लिए इकट्ठा किया था। लार्ड माउंटबेटन ने एक दो छुरियां उठाईं और मुस्कराकर बोले : जिन्होंने यह सामान इकट्ठा किया है अगर वे यह सोचते हैं कि दिल्ली शहर पर इनसे कब्जा किया जा सकता है तो मुझे लगता है कि उन्हें फौजी चालों का अद्भुत ज्ञान है।"
अब पटेल का दूसरा पहलू देखें-
संघ परिवार के लोग और मोदी बेहूदा तर्क दे रहे हैं कि पटेल किसी दल की थाती नहीं हैं वे हमारे स्वाधीनता संग्राम के नायक हैं और वे सबके हैं।
इन भले मानुषों से कोई पूछे कि जब स्वाधीनता संग्राम चल रहा था तो संघ कहाँ सोया हुआ था ?
जब देश को जगाने और संघर्ष करने की जरूरत थी तब संघ हिन्दुओं को जगाने में लगा था और साम्प्रदायिक एजेण्डे के लिए काम कर रहा था।
कम से कम संघ परिवार के नेताओं के मुख कमल से भारत का स्वाधीनता संग्राम शब्द सुनने में अटपटा लगता है। जब जंग थी तब वे भागे हुए थे अब स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों के वारिस क्यों होना चाहते हैं ? यह असल में संघ परिवार की नकली सेनानी बनने की वर्चुअल कोशिश है और स्वाधीनता संग्राम से संघ को जोड़ने की भ्रष्ट कोशिश है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश से कहा, मोदी सुनें
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश से जो कहा है उस पर कम से कम मोदी और संघ परिवार जरूर ध्यान दे – "यह हर एक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह यह अनुभव करे की उसका देश स्वतंत्र है और उसकी स्वतंत्रता की रक्षा करना उसका कर्तव्य है. हर एक भारतीय को अब यह भूल जाना चाहिए कि वह एक राजपूत है, एक सिख या जाट है. उसे यह याद होना चाहिए कि वह एक भारतीय है और उसे इस देश में हर अधिकार है पर कुछ जिम्मेदारियां भी हैं। "
क्या संघ हिन्दुत्व और हिन्दू राष्ट्रवाद को भूलने को तैयार है ?
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आरएसएस के तत्कालीन सर संघ चालक गोलवलकर को 19 सितम्बर 1948 को एक पत्र लिखा।
पटेल ने लिखा-" हिन्दुओं का संगठन करना, उनकी सहायता करना एक बात है पर उनकी मुसीबतों का बदला निहत्थी व लाचार औरतों,बच्चों व आदमियों से लेना दूसरी बात है। … इनकी सारी तकरीरें साम्प्रदायिक विष से भरी थीं। हिन्दुओं में जोश पैदा करना व उनकी रक्षा करने के लिए यह आवश्यक नहीं था कि ऐसा जहर फैलाया जाए। उस जहर का फल अंत में यही हुआ कि गाँधीजी की अमूल्य जान की कुर्बानी देश को सहनी पड़ी … उनकी मौत पर आरएसएस ने जो हर्ष प्रकट किया और मिठाई बाँटी, उससे यह विरोध भी बढ़ गया और सरकार के लिए इस हालत में आरएसएस के खिलाफ कार्रवाई करना जरूरी हो गया। "
क्या मोदी आज संघ की इस शर्मनाक हरकत पर माफी मांगेंगे और संघ से कहेंगे कि वह पलटकर अपने कारनामों के लिए जवाब दे ?
पटेल ने 18जुलाई 1948 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी को पत्र लिखा-
"आरएसएस और हिन्दू महासभा की बात को लें,गाँधीजी की हत्या का मामला अदालत में विचाराधीन है और मुझे इन दोनों संगठनों की भागीदारी के बारे में कुछ नहीं कहना चाहिए, लेकिन हमें मिली रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती हैं कि इन दोनों संस्थाओं का, खासकर आरएसएस की गतिविधियों के फलस्वरूप देश में ऐसा माहौल बना कि ऐसा बर्बर काण्ड संभव हो सका। मेरे दिमाग़ में कोई सन्देह नहीं है कि हिन्दू महासभा का अतिवादी भाग षड़यंत्र में शामिल था।"
अंत में,पटेल जब मरे तो उनके बैंक खाते में मात्र 345 रुपये जमा थे। वे मूर्तिपूजा और व्यक्ति पूजा के सख्त विरोधी थे। वे विचारों और कर्म से धर्मनिरपेक्ष थे।
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