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मोदीजी याद रखो इजरायल को एक यहूदी राष्ट्र बनाने के लिए हस्ताक्षर चीन ने किये थे

मोदीजी याद रखो इजरायल को एक यहूदी राष्ट्र बनाने के लिए हस्ताक्षर चीन ने किये थे। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रो. भीमसिंह ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इजरायल यात्रा पर चिंता व्यक्त करते हुए उनके नाम पत्र लिखा

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hastakshep
05 Jul 2017 एडिट 16 Oct 2023
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Benjamin Netanyahu

प्रधानमंत्री के इजरायल दौरे पर पैंथर्स सुप्रीमो ने चिंता व्यक्त करते हुए उनके नाम पत्र लिखा

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नई दिल्ली, 5 जुलाई 2017: नेशनल पैंथर्स पार्टी के मुख्य संरक्षक, भारत-फिलस्तीन लीगल एड कमेटी के चेयरमैन एवं वरिष्ठ अधिवक्ता प्रो. भीमसिंह ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इजरायल यात्रा पर चिंता व्यक्त करते हुए उनके नाम पत्र लिखा है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि फिलस्तीन के विभाजन के बाद अस्तित्व में आए इजरायल के, जिसे अमेरिका का समर्थन प्राप्त है, यात्रा के दौरान उन्हें अपनी प्रतिष्ठा को मानना चाहिए।

उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि प्रस्ताव सं. 181 तहत फिलस्तीन को विभाजित किया, बल्कि इजरायल का एक राज्य फिलस्तीन के विभाजन से बनाया गया था, जिसमें मुस्लिम, ईसाई और यहूदी की एक समन्वित संस्कृति थी, जिनमें से ज्यादातर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी से पलायन करके आये थे। इस प्रक्रिया में जियोनिस्ट लॉबी को सभी बड़ी शक्तियों द्वारा समर्थित किया गया था। संयुक्त राष्ट्र में 1948 में एक स्थायी सदस्य चीन के चियांग काई-शेक ने भी इजरायल को एक यहूदी राष्ट्र को बनाने के लिए हस्ताक्षर किये थे। उन्होंने कहा कि यह भी याद रखने वाली बात है कि भारत ने फिलस्तीन के विभाजन पर प्रस्ताव सं. 181 की जबरदस्त विरोध किया था और ईरान उन देशों में शामिल था जो फिलस्तीन के खिलाफ भारत के साथ था।

उन्होंने कहा कि 1967 में इजरायल ने पूरे फिलस्तीन पर हमला किया और फिलस्तीन पर कब्जा कर लिया। भारत और कई अन्य गुटनिरपेक्ष देशों ने इजरायली की इस आक्रामकता पर नाराजगी व्यक्त की थी। इस समय 1967 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव 424 पास किया, जिसमें सुरक्षा परिषद ने अपनी सहमति से प्रस्ताव में इजरायल को फिलस्तीन के कब्जाए क्षेत्रों को खाली करने के निर्देश दिए थे। उन्होंने कहा इजरायल ने प्रस्ताव 181/1948 का उल्लंघन करते हुए फिलस्तीन के एक तिहाई से ज्यादा क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। त्रासदी यह है कि इजराइल एक फिलिस्तीन का छोटा भाग संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यताप्राप्त है, जबकि संयुक्त राज्य अमरीका और अधिकांश संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों द्वारा फिलस्तीन की मूल राज्य को मान्यता नहीं मिली है। यह स्वाभाविक है कि फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता नहीं दी गई है जो संयुक्त राष्ट्र की चार दीवारों के भीतर बंद है।

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पैंथर्स सुप्रीमो ने आगे पत्र में लिखा है कि इजरायल ने संयुक्त राष्ट्र के साथ सुरक्षा परिषद के सभी प्रस्तावों का उल्लंघन किया है, जिसका भारत ने 1948 से 2015 तक समर्थन किया है। भारत ने फिलस्तीन की अगुवाई में उम्मीदों और इच्छाओं को अनदेखा करके अपने प्रधानमंत्री को इजरायल भेजने के बारे में कभी सोचा ही नहीं था। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी इजरायल के दौरे पर हैं, जो देश के 51 मुस्लिम देशों की मर्जी के खिलाफ अस्तित्व में आया था, जिनमें उस समय सुरक्षा परिषद का सदस्य भारत भी शामिल था।

उन्होंने कहा कि दुनिया के आधे से अधिक देशों, संयुक्त राष्ट्र महासभा के सदस्य सहमत हैं कि फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के पूर्ण सदस्य के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए और इजराइल को 1948 से आज तक शीघ्र सुरक्षा परिषद द्वारा पारित संयुक्त राष्ट्र के सभी प्रस्तावों को लागू करने का आदेश दिया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि विश्वशांति, मानवता सम्मान और गौरव के साथ जीवित रहे। यह माननीय प्रधानमंत्री को मेरी आत्मीय अपील है कि दुनिया का आधा हिस्सा न्याय प्रदान करने के पक्ष में है फिलस्तीन के लोगों और उनके राज्य, फिलस्तीन के लिए इजराइल को बिना किसी हिचकिचाहट के बारे में बताया जाना चाहिए कि वह (इजराइल) अनुच्छेद 242 और 338 के प्रत्येक खंड को लागू करना चाहिए। इजरायल ने फिलस्तीनियों की छतों पर अपनी सेना को अपने नियंत्रण से खाली करना होगा जो कि इजरायल की सेना द्वारा बनाए गए आतंक के तहत रह रहे हैं 1948 फिलस्तीन के नागरिकों को गरिमा और सम्मान के साथ रहने का अधिकार होना चाहिए क्योंकि फिलिस्तीन के नागरिक राज्य के साथ पूर्ण संप्रभुता के साथ जी सकें। बेशक, संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 118 के अनुसार, पूर्व यरूशलम फिलस्तीन राज्य की राजधानी होगी। फिलस्तीनियों ने अपने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपने राज्य का संचालन करने के लिए काम करने के लिए है। इजराइली वर्दी में एक भी सैनिक फिलस्तीन की चार दीवारों के भीतर नहीं देखा जाना चाहिए। यही वह संदेश है जो भारत के प्रधानमंत्री को किसी भी झिझक के भीतर इजराइल को अवश्य देना चाहिए। इतिहास भारतीय प्रधानमंत्री की इजराइल की पहली यात्रा देख रहा है।

 

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