फिल्मअभिनेता प्रकाश राज एक अच्छे अभिनेता हैं जिन्होंने विभिन्न भाषाओं में कई फिल्मों में अभिनय किया है। उन्होंने अच्छाई और बुराई का प्रतिनिधित्व करने वाले विभिन्न पात्रों को चित्रित किया है। उनकी प्रतिभा के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कार और साथ ही अन्य पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
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कोई अभिनेता किसी फिल्म में एक किरदार प्रस्तुत कर सकता है, लेकिन उस व्यक्ति की कुछ निश्चित सामाजिक चेतना हो सकती है। गौरी लंकेश की हत्या के जवाब में प्रकाश राज ने राष्ट्रीय पुरस्कारों को ठुकराकर यह साबित कर दिया है। गौरी लंकेश की हत्या पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी से उन्हें धक्का लगा और उन्होंने इस पर इस तरह प्रतिक्रिया देने का फैसला किया। एक कलाकार के लिए किसी सम्मान को लौटाना आसान नहीं है। और एक राष्ट्र नेता के लिए भी किसी कलाकार से ऐसा सम्मान वापिस लेना, जो सरकार द्वारा दिया गया हो, आसान नहीं है।
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प्रकाश राज को संघ परिवार से सभी तरह की धमकियां मिलीं। उससे फ़र्क नहीं पड़ता। फ़र्क यह पड़ता है कि हमारे प्रधानमंत्री को विभिन्न कारणों से अस्सी से ज्यादा कलाकारों, फिल्मनिर्माताओं,लेखकों और यहां तक कि सैनिकों ने भी सम्मान लौटा दिए। और मुझे विश्वास है कि प्रधानमंत्री पद का वर्तमान कार्यकाल पूरा करने से पहले यह आंकड़ा 100 से अधिक होगा।
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यदि यह आंकड़ा एक शतक को पार करता है तो यह हम सबके लिए एक राष्ट्रीय गौरव का मामला हो सकता है। यह कार्टून श्रंखला उस समय तैयार की गई थी जब यह आंकड़ा सिर्फ 60 था। हम सबको शतक के लिए इंतज़ार करना चाहिए।
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जब पुरस्कार वापसी पर बहस शुरू हुई, तो यह मैंने नवंबर 2015 में लिखा था:
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ऐसे कुछ लोग हैं जो सांस्कृतिक व्यक्तियों द्वारा विरोध स्वरूप अपने पुरस्कार भारत सरकार को लौटाने की निन्दा रहे हैं। लेकिन मैं इसे एक राजनीतिक वक्तव्य की तरह देखता हूँ। जब राज्य किसी कलाकार को पुरस्कार देता है तो इसका मतलब 4 चीजें होती है -
कलाकार की रचनात्मकता / सामाजिक चिंताओं को जनता द्वारा व्यापक मान्यता प्राप्त है,
कलाकार को मीडिया में और अधिक पहचाना जाएगा जो उसे अपने काम और साथ ही सामाजिक कार्यों को इस तरह के माध्यम से प्रस्तुत करने में मदद करेगा और इसमें वृद्धि करेगा।
यह कलाकारों के बीच एक प्राकृतिक प्रतिस्पर्धा भी पैदा करता है जो अपने आप में प्रतिस्पर्धा करके राज्य को कलाकारों, लेखकों और फिल्म निर्माताओं के समुदाय को कंट्रोल करने और 'बांटों और राज करो' की नीति को मजबूत करता है।
पुरस्कार प्राप्त करना राज्य के सामने एक कलाकार के झुकने की छवि का भी प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन जब कलाकारों, लेखकों और फिल्म निर्माताओं की एक श्रृंखला सरकार द्वारा दिए गए अपने पुरस्कारों को लौटाती है, तो वे 'शासन से ऊपर' ही खड़े होते हैं और आज यह भारत में यही हुआ है। भाजपा के सिर्फ 18 महीनों शासन के विरोध में बारह नेशनल अवार्ड्स, चार पद्म भूषण पुरस्कार और 40 साहित्य अकादमी पुरस्कार नरेंद्र मोदी सरकार को लौटाए गए। यह आधुनिक भारत के पूरे इतिहास में कभी नहीं हुआ है।
मैं भारत के उन सभी सांस्कृतिक व्यक्तित्वों की सराहना करता हूं, जिन्होंने मोदी के शासन में सांप्रदायिक फासीवादियों द्वारा शुरू की गई गहन सामाजिक और राजनीतिक संकट की इस घड़ी में इस बहादुराना और साहसी कदम उठाए हैं। अपने इस वृहद् विश्लेषण में इस घटना को हमें इस देश की जनता द्वारा सामना किए जा रहे राजनीतिक उथलपुथल पर एक सांस्कृतिक वक्तव्य के रूप में देखना होगा। यह नरेंद्र मोदी सरकार के नैतिक पतन का सूचक भी है। अब नरेंद्र मोदी को तय करना है - `To Be or Not to Be!’
के.पी.शशि एक फिल्म निर्माता, लेखक, एक्टिविस्ट व कार्टूनिस्ट हैं।