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अमित शाह को गृहमंत्री बनाना ही मोदी का संघ का एजेंडा है

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hastakshep
01 Jun 2019
विद्या-भंजकों का प्रदर्शन; यह बंगाल की अस्मिता पर भाजपा का हमला है

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नई दिल्ली, 01 जून 2019. मोदी 2.0 सरकार में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को गृह मंत्री ( BJP President Amit Shah Home Minister ) बनाए जाने पर देश भर में प्रतिक्रियाओं का दौर जारी है। इसके तरह-तरह के निहितार्थ लगाए जा रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक समीक्षक चरण सिंह राजपूत अपनी निम्न समीक्षा में अमित शाह को गृहमंत्री बनाए जाने का अर्थ (Meaning of Amit Shah being a Home Minister) समझा रहे हैं।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने अमित शाह (Amit Shah) को गृहमंत्री (Home Minister) बनाकर साबित कर दिया कि अब वह खुलकर खेलने वाले हैं। देश में संघ के एजेंडे (RSS Agenda) को लागू करने के वह पूरे मूड में हैं। जेपी आंदोलन से निकले राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) में देश की राजनीति के प्रति काफी नैतिकता है वह कई मामलों में समाजवादी होने का प्रयास करते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने परिवारवाद और वंशवाद पर हमला बोलते हुए अपने को असली समाजवादी बोला भी था।

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राजनाथ सिंह मोदी के अपना एजेंडा लागू करने में रोड़ा बन सकते थे। इसलिए उन्होंने वह रोड़ा भी हटा दिया। पिछले कार्यकाल में भी मोदी ने राजनाथ सिंह की कई फाइलें वापस उन्हें उनकी अहमियत बताने का प्रयास किया था। अमित शाह का कैबिनेट में लेने का मतलब ही गृह मंत्री पद देना ही था। यह संभावना चुनाव होने के पहले से ही जताई जा रही थी।

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जनादेश राष्ट्रवाद पर नहीं हिंदूवाद पर ही मिला है

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The mandate is not on nationalism but on Hinduism

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भले ही मोदी राष्ट्रवाद पर जनादेश (Mandate on Nationalism) मिलने की बात कर रहे हों पर उनका मानना है कि उन्हें यह जनादेश हिंदूवाद पर ही मिला है। उन्होंने पाकिस्तान को लेकर जो टारगेट मुस्लिमों को किया है, उसमें उन्हें हिंदुओं का एकजुट होना दिखा। यही वजह थी कि मोदी की आईटी द्वारा मुस्लिम शासकों के हिंदुओं पर किए गए अत्याचारों के वीडियो सोशल मीडिया पर लगातार चल रहे थे। फिल्म पदमावती में हिंदुओं विशेषकर राजपूतों के विरोध को मोदी ने भांप लिया था। मोदी का संविधान के साथ ही डॉ. भीम राव अंबेडकर की तारीफ करना एक तरह से अल्पसंख्यकों और दलितों में को विश्वास में लेने का प्रयास था।

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मोदी चाहते हैं कि उनके एजेंडे को लोग खुशी-खुशी स्वीकार करें। यह सब इसलिए किया गया क्योंकि सबसे बड़ा अटैक वह संविधान और अंबेडकर की नीतियों पर ही करने वाले हैं।

आरएसएस से निकले मोदी जानते हैं कि जब तक संविधान और अंबेडकर की नीतियों को कमजोर नहीं किया जाएगा तब तक हिंदू राष्ट्र का रास्ता प्रसस्त नहीं होगा। इस बार वह अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, जम्मू-कश्मीर में धारा 370, समान नागरिकता और तीन तलाक जैसे मुद्दों पर पूरी तरह से आक्रामक होने के मूड में हैं। इस काम में उन्हें अमित शाह जैसे सारथी की जरूरत थी जो उन्होंने बना लिये।

वैसे भी अमित शाह ने चुनाव प्रचार में धारा 370 हटाने की बात चिल्ला-चिल्ला कर कही है। वैसे नरेन्द्र मोदी अपना एजेंडा सुप्रीम कोर्ट से लागू कराने का प्रयास करेंगे। यदि न्यायापालिका पर इसका विरोध हुआ तो उनकी मनमानी से इनकार नहीं किया जा सकता है।

गुजरात में हिंदू-मुस्लिम का खुला खेल खेल चुके मोदी जानते हैं कि इस खेल में संविधान और कानून की क्य-क्या पेचिदियां आती हैं। क्योंकि गुजरात में भी नरेन्द्र मोदी के सारथी की भूमिका अमित शाह ने निभाई थी इसलिए देश में अपना एजेंडा लागू करने के लिए उन्होंने फिर से अमित शाह को सरकार में भी अपना सारथी बना लिया।

अमित शाह की कमी उन्हें पिछले सरकार में अखरती दिखाई दी। सरकारी कार्याक्रमों में राजनाथ सिंह और अमित शाह बहुत कम दिखाई दिये। यह हाल तब था जब राजनाथ सिंह ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर रहते हुए मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने में भाजपा के तब के सबसे मजबूत नेता लाल कृष्ण आडवाणी से खुला बैर लिया था।

आरएसएस से तपकर निकले नरेंद्र मोदी को अपना एजेंडा लागू करने में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं चाहिए जो संविधान और कानून की दुहाई उनके सामने दे। क्योंकि अमित शाह खुद संविधान और कानून को कम तवज्जो देते हैं तो उनके कार्यों को पूरा करने में वह ही उन्हें सबसे अच्छे सहयोगी मानते हैं।

नरेन्द्र मोदी को थाली में सरकार सजाकर परोसने वाले विपक्ष में वैसे तो कोई दम नहीं पर मोदी के संविधान और कानून से छेड़छाड़ करने में देश में बवाल तो मचेगा। राजनीतिक दल नहीं करेंगे तो सोशल एक्टिविस्टों के साथ ही सामाजिक संगठन इसका खुला विरोध जरूर करेंगे। इससे निपटने के लिए उन्हें अमित शाह जैसा व्यक्ति ही दिखाई दे रहा था। चाहे 2014 का चुनाव हो या फिर 2019 का। अमित शाह ने साम-दाम-दंड भेद अपनाकर मोदी के पक्ष में चुनाव का माहौल बनाया है।

जिस मोदी के कार्यकाल में सबसे अधिक बेरोजगारी बढ़ी, मुस्लिमों व दलितों पर सबसे अधिक हमले हुए। नोटबंदी और जीएसटी मामले में सबसे अधिक लोग परेशान हुए।

विपक्ष से लेकर भाजपा और आरएसएस में भी मोदी के विरोध के बावजूद देश में ऐसा क्या हो गया कि मोदी के आतंकवाद मुद्दे पर  तत्काल पैदा किए गए राष्ट्रवाद पर लोग इतने पगला गए किए मोदी को पहले से भी ज्यादा प्रचंड बहुमत दे दिया। कहीं न कहीं तो गड़बड़ झाला हुआ लगता है।

ईवीएम मामलों में विभिन्न दलों के एजेंटों की  लगातार शिकायतें आ रही हैं कि उनके सामने जो वोटों की संख्या लिखी गई थी मतगणना में उससे अधिक वोट निकले हैं। यही सब वजह है कि देश में जगह-जगह पर ईवीएम को लेकर विरोध प्रदर्शन होने शुरू हो गए हैं।

इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिस अमित शाह को तड़ीपार किया गया हो एक जज की हत्या का आरोप लगा हो। जिसकी भाषा में शालीनता की जगह दबंगता हो। उस अमित शाह को देश को जोड़ने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री ने कानून व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी दे दी है।

अमित शाह ही चलाएंगे रक्षा मंत्रालय भी

जो लोग राजनाथ सिंह को रक्षा मंत्री पद मिलने पर संतुष्ट हो रहे हों वे समझ लें कि रक्षा मंत्रालय भी एक तरह से अमित शाह ही चलाएंगे। क्योंकि रक्षामंत्रालय के हर काम मे गृह मंत्रालय का हस्तक्षेप होता है। जिन राजनाथ सिंह का पद उनसे छीन लिया गया हो उन्हें हतोत्साहित करने के लि नरेंद्र मोदी और अमित शाह निश्चित रूप से उनके मंत्रालय में हस्तक्षेप करेंगे। आज की तारीख में राजनाथ सिंह उस स्थिति में नहीं है कि इस जोड़ी का विरोध कर सकें।

भले ही चुनाव प्रचार में लोगों को अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी समेत कई नेताओं का मोदी का फिर से प्रधानमंत्री बनने पर संविधान बदलने और 2024 के बाद चुनाव न होने की बात पर अजीब लग रहा होगा। पर नरेद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी चीन की तर्ज पर इस ओर पर भी काम कर सकती है। वैसे भी चुनाव में अधिक खर्च होने की बात कर एक तरह से चुनाव न होने की तो पैरवी शुरू की ही जा चुकी है।

वैसे देश का संविधान इतना मजबूत है कि देश में मोदी का संघ का एजेंडा लागू करना इतना आसान भी नहीं है। जिस तरह से देश का विपक्ष, बुद्धिजीवी, मीडिया और संवैधानिक संस्थाएं मोदी की कठपुतली बने हुए हैं। ऐसी स्थिति में देश में कुछ भी हो सकता है। वैसे भी मोदी ने कारोबार का लालच देकर अमरीका, चीन और रूस जैसे देशों को मैनेज कर रखा है।

चरण सिंह राजपूत

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