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सेना वाली राष्ट्रवादिता के खिलाफ : यहूदीवाद और हिंदुत्व यहूदी धर्म और हिंदू धर्म के प्रतीक नहीं

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hastakshep
28 Jan 2018

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हमें यह समझना चाहिए कि यहूदीवाद और हिंदुत्व (Hindutva) यहूदी धर्म और हिंदू धर्म के प्रतीक नहीं हैं

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इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामीन नेतन्याहू ने 14 जनवरी से 19 जनवरी के बीच भारत की यात्रा की. इस साल भारत और इजरायल के बीच 1992 में शुरू हुए राजननियक संबंध के 25 साल पूरे हुए. इन संबंधों की शुरुआत सोवियत संघ के विघटन के साथ अंत हुए शीत युद्ध के परिप्रेक्ष्य में हुई थी. 2017 में 4 से 6 जुलाई के बीच भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इजरायल की यात्रा की थी. 2017 में बालफोर घोषणापत्र के 100 साल पूरे हुए. इस घोषणापत्र में उस समय जीत हासिल करने वाली अंग्रेज सरकार ने यहूदीवादियों के लिए फिलीस्तीन में अलग गृह राष्ट्र बनाने की बात कही थी. 14 मई, 1948 को इजरायल के गठन का 70 साल भी 2018 में पूरा हो रहा है. उस दौर में साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ लोगों का रुख कड़ा था. नेहरू के दौर में भारत यह मानता रहा कि फिलीस्तीन के लोगों के अधिकारिों को बुरी तरह से कुचलकर इजरायल का गठन हुआ है.

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यहूदीवाद को दो चीजों साम्राज्यवाद और नस्लभेद के लिए याद रखना चाहिए. इसने स्थानीय अरब लोगों को वहां से बाहर निकालने और उनके मानवाधिकारों के दमन का काम किया. इजरायल ने यह सब काम यहूदियों के रक्षार्थ करने का दावा किया लेकिन सच्चाई यह है कि यह मानवता के खिलाफ है और इसमें यहूदी भी शामिल हैं. इजरायल ने कभी भी फिलीस्तीन के लोगों को अपने बराबर नहीं माना. फिलीस्तीन का आजादी का संघर्ष इजरायल के साथ-साथ साम्राज्यवादी सोच से भी है. अमेरिका की मदद से और 1948, 1967 और 1973 के तीन युद्धों के जरिए इजरायल ने जॉर्डन नदी के पश्चिम के पूरे हिस्से पर कब्जा जमा लिया है. इसके अलावा इजरायल ने फिलीस्तीन के लोगों को अपनी ही जमीन पर आने-जाने से रोकने का काम किया है.

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नेहरू के बाद के भारतीय राजनीतिज्ञों का असली रंग 1991 में तब दिखा जब संयुक्त राष्ट्र में यहूदीवाद को नस्लवाद मानने वाले प्रस्ताव के खिलाफ भारत हो गया. जबकि 1970 के मध्य में ऐसे ही प्रस्ताव का समर्थन भारत ने किया था. पिछले 25 सालों में भारत का इजरायल से मूलतः सैन्य संबंध रहा है. इसमें हथियार खरीदना और आतंकवाद से बचाव के लिए उनकी सलाहकारी सेवाएं लेना शामिल हैं. भारत इजरायल के हथियारों का सबसे बड़ा बाजार है. आतंकवाद और सुरक्षा क्षेत्र की एक प्रमुख पत्रिका के मुताबिक भारतीय सुरक्षा बल और खुफिया अधिकारियों को कश्मीर में उसी तरह के तौर-तरीके अपनाने के लिए प्रशिक्षित किया गया है जिस तरह के तौर-तरीके इजरायली सुरक्षा बलों और मोसाद ने फिलीस्तीन के मामले में अपनाया है.

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हालांकि, नेतन्याहू के दौरे में किसी नए रक्षा समझौते की घोषणा नहीं हुई लेकिन साझा घोषणापत्र के जरिए भारत ने इजरायली कंपनियों को मेक इन इंडिया के तहत रक्षा क्षेत्र में निवेश के लिए आकर्षित करने की कोशिश की. भारतीय सेना स्वदेशी डिफेंस सिस्टम विकसित करने के बजाए इजरायल की रफैल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम खरीदने के लिए तैयार दिख रही है. ऐसे में इस बारे में दोनों देशों में कोई समझौता शीघ्र ही हो सकता है. केंद्र में हिंदुत्ववादी सरकार होने की वजह से दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र के संबंध लगातार बढ़ रहे हैं. दोनों मिलकर मध्यम दूरी के और जमीन से आसमान में हमला करने वाले मिसाइल बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं.

हिंदुत्ववादियों को हमेशा से यहूदीवादियों का सैन्य राष्ट्रवाद अच्छा लगता रहा है. अब दोनों देशों के आतंकवादरोधी व्यापक सहयोग समझौता हो गया है. ऐसे में देखना होगा कि क्या हिंदुत्ववादी सरकार कश्मीर में अधिक आक्रामक होगी?

जिस तरह से यहूदी धर्म से यहूदीवाद को अलग करके देखा जाता है उसी तरह से हिंदुत्व को भी हिंदू धर्म से अलग करके देखना होगा. हिंदू धर्म जहां आध्यात्मिक मोक्ष के लिए विभिन्न विश्वासों और विचारों का प्रतीक है तो हिंदूत्ववाद एक फासिस्ट सोच है जिसे नाजीवाद का भारतीय संस्करण कहा जा सकता है. जिस तरह से यहूदियों को यह कहने की जरूरत है कि यहूदीवाद उनकी नुमाइंदगी नहीं करता वैसे ही हिंदुओं को भी यह कहने की जरूरत है कि हिंदुत्ववाद उनका प्रतिनिधित्व नहीं करता. इस मामले में हिंदुओं, यहूदियों और मुस्लमानों सभी को मानवता और फिलीस्तीन के साथ-साथ कश्मीर के लोगों के मानवाधिकारों के साथ खड़ा होना होगा.

इकॉनोमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली वर्षः वर्षः 53, अंकः 03, 20 जनवरी, 2018

(Economic and Political Weekly)

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