Advertisment

आने वाले समय में ऊर्ध्वाधर खेती ही जल संरक्षण व पर्यावरण संरक्षण का एक मात्र उपाय होगा

author-image
hastakshep
23 Mar 2019
New Update

आने वाले समय में ऊर्ध्वाधर खेती ही जल संरक्षण व पर्यावरण संरक्षण का एक मात्र उपाय होगा

Advertisment

एमिटी विश्वविद्यालय द्वारा ऊर्ध्वाधर खेती पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एनएएससी कांप्लेक्स में हुआ कार्यक्रम

नई दिल्ली, 18 अक्तूबर। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक एवं कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. त्रिलोचन महापात्र ने कहा है कि आने वाले समय में कम हो रही जल की उपलब्धता एक गंभीर समस्या बन जाएगी और ऊर्ध्वाधर खेती ही जल संरक्षण का एक मात्र उपाय होगा।

Advertisment

डॉ. महापात्र यहाँ ऊर्ध्वाधर खेती के महत्व एवं उसके क्रियान्वयन में आ रही चुनौतियों की जानकारी प्रदान करने हेतु और ऊर्ध्वाधर खेती के क्षेत्र में शोध एवं नवोन्मेष को बढ़ावा देने के लिए एमिटी विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से ऊर्ध्वाधर खेती पर पूसा रोड स्थित आईसीएआर के एनएएससी कांप्लेक्स के सभागार में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।

इस कार्यशाला में देश के विभिन्नि अकादमिक संस्थानों उद्यमों एवं कंपनियों से वैज्ञानिकों, शोधार्थियों ने हिस्सा लिया था।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक एवं कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. त्रिलोचन महापात्र ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय ग्रामों में ऊर्ध्वाधर खेती का अभ्यास पांरपरिक रूप में बहुत पहले से किया जा रहा है जब कच्चे मकानों की छतों पर विभिन्न प्रकार की सब्जियों एवं फलों की बेल चढ़ाई जाती थी और उनका उपयोग किया जाता था, लेकिन उसको वैज्ञानिक पद्धति द्वारा उपयोग में नहीं लाया गया जिससे वो प्रक्रिया समाप्त हो गई।

Advertisment
ऊर्ध्वाधर खेती के लिए वैज्ञानिक पद्धति

डॉ. महापात्र ने कहा कि वर्तमान समय में कृषि की व्यावसायिक प्रकृति के अनुसार अगर उत्पादकता और लाभांश को बढ़ाना है तो ऊर्ध्वाधर खेती के लिए वैज्ञानिक पद्धति को अपनाना होगा।

उन्होंने शोधार्थियों एवं वैज्ञानिकों को सलाह देते हुए कहा कि ऊर्ध्वाधर खेती के सभी पहलुओं को अपने शोध में स्थान दे और ऊर्ध्वाधर खेती के क्षेत्र में आ रही समस्याओं के तकनीकी निवारण को खोजें। उन्होंने कहा कि कौन-कौन सी फसलों का उपयोग किया जा सकता है इसका विश्लेषण करें और उसका लाभ ग्रामीण क्षेत्रों को किस प्रकार मिल सकता है उस पर भी विचार करें।

Advertisment

डॉ. महापात्र ने ऊर्ध्वाधर खेती सहित खाद्यान्न की गुणवत्ता, पर्यावरण की क्षति और भूमि की कमी पर अपने विचार रखे।

भविष्य में बढ़ रही जनसंख्या के लिए खाद्यान्न की उपलब्धता की स्थायी व्यवस्था भी है ऊर्ध्वाधर खेती

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (हॉर्टीकल्चर सांइस) डॉ. ए के सिंह ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि ऊर्ध्वाधर खेती केवल व्यापारिक उद्यम का विकास ही नहीं बल्कि भविष्य में बढ़ रही जनसंख्या के लिए खाद्यन्न की उपलब्धता की स्थायी व्यवस्था भी है। एक अनुमान के अनुसार सन 2050 तक देश की 62 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में निवास करेगी जिनके लिए खाद्यन्न की व्यवस्था एक चुनौती होगी और समस्या का हल ऊर्ध्वाधर खेती द्वारा किया जा सकता है। हमारी भूमिका ऊर्ध्वाधर खेती के क्षेत्र में आ रहे चुनौतियों एवं समस्याओं के निवारण की होगी।

Advertisment

एमिटी फांउडेशन फॉर सांइस टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन एलांयसेस के महानिदेशक डॉ. राजीव शर्मा ने  कहा कि कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य ऊर्ध्वाधर खेती के संर्दभ में शोध एवं नवोन्मेष को बढ़ावा देना है जिससे कृषि के क्षेत्र में अन्न उपलब्धता, भूमि एवं जल की कमी, खाद्यान्न की गुणवत्ता, कौशल की कमी आदि पर आधारित मुद्दों पर चर्चा करके उनका स्थायी हल प्राप्त किया जाए।

2024 तक 13 बिलियन डॉलर के ऊपर हो जाएगा ऊर्ध्वाधर खेती का बाजार

एमिटी फूड एंड एग्रीकल्चर फांउडेशन के महानिदेशक डॉ. नूतन कौशिक ने ‘‘ऊर्ध्वाधर खेती स्थिति, संभावनाएं और चुनौतियां’’ पर संबोधित करते हुए कहा कि ऊर्ध्वाधर खेती का महत्व वार्षिक खाद्य उत्पादन, खाद्य के उत्पादन की मौसम से सुरक्षा, ऑरगेनिक फसलों का वृहद् स्तर पर उत्पादन, स्थायी शहरी विकास आदि पर आधारित है। ऊर्ध्वाधर खेती का बाजार का आकार सन 2024 तक 13 बिलियन डॉलर के ऊपर हो जाएगा।

Advertisment

डॉ. कौशिक ने कहा कि बढ़ रही शहरी जनंसख्या एवं घट रही ग्रामीण जनसंख्या से प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ मांग एवं आपूर्ति के मध्य के रिक्त स्थान को भर सकता है। ऊर्ध्वाधर खेती ही समस्या का आदर्श समाधान है किंतु उस पर शोध की आवश्यकता है।

शोध के क्षेत्र को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि ऊर्ध्वाधर खेती के लिए विविध फसल, शहरी क्षेत्र में कृषि कार्य करने वाले कृषकों को कौशल प्रशिक्षण, पोषक तत्वों का आकलन, वृहद् स्तर पर उत्पादन, ऊर्ध्वाधर खेती में हो रहे उत्पादन के दौरान हुए कार्बन उत्सर्जन, उपलब्ध आसान कृषि की तकनीक, उत्पादन को कीड़ों से बचाव एवं उपलब्ध बाजार आदि पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि बड़े उद्यम समूह, किसानों के साथ मिलकर दोनों के लाभ हेतु इस दिशा में प्रयास कर सकते हैं।

भारत में स्थायी कृषि प्रकिया का भविष्य है ऊर्ध्वाधर खेती
Advertisment

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अतिरिक्त महानिदेशक ( हॉर्टीकल्चर सांइस - प्रथम) डॉ. टी जानकीराम ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि ऊर्ध्वाधर खेती, भारत में स्थायी कृषि प्रकिया का भविष्य है।

उन्होंने बताया कि ऊर्ध्वाधर खेती को चीन एवं अमेरिका द्वारा बहुत पहले ही प्रारंभ कर लिया गया था और यह पाया गया कि ऊर्ध्वाधर खेती, जल की खपत को 98 प्रतिशत एवं फर्टिलाइजर की खपत को 60 प्रतिशत कम करती है। इसके अतिरिक्त इससे उत्पादन में वृद्धि, विटामिन एवं मिनिरल की गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी भी देखी गई है।

डॉ. जानकीराम ने कहा कि संस्थानों को वर्तमान स्थिति को समझकर भारतीय कृषि प्रक्रिया के विकास हेतु ऊर्ध्वाधर खेती को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कार्यशाला ऊर्ध्वाधर खेती की क्षेत्र में जानकारी बढ़ाने के साथ इस क्षेत्र में मिलकर कार्य करने पर विचार करने को बढ़ावा देगा।

इस अवसर पर अतिथियों द्वारा कार्यशाला पर आधारित पुस्तक का विमोचन भी किया गया। तकनीक सत्र के अंर्तगत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अतिरक्त महानिदेशक, इंजिनियरिंग डिविजन के डॉ. के के सिंह, डॉ. आश्वत आदि ने अपने विचार रखे।

कृपया हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करें

Topics - National Workshop on Vertical Farming, NASC Complex, ICAR, Pusa, New Delhi, Amity University, Indian agricultural research council, 

Advertisment
सदस्यता लें