अब हमारे बच्चे 'यदि आप प्रधानमंत्री होते?' पर निबंध लिखने से ज्यादा रचनात्मक निबंध 'यदि आप विजय माल्या या नीरव मोदी होते?' पर लिख रहे हैं
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5000 करोड़ कुछ होते हैं मोदी जी!
यदुवंश प्रणय
मैं जब यह लिख रहा हूँ तो मेरे जैसा अदना से सा विश्वविद्यालय का संविदा (एडहॉक) अध्यापक अपने वेतन के लिए टकटकी लगाया हुआ है। लगातार अपना अस्तित्व बचाए रहने की जद्दोजहद कर रहा है। ऐसे ढेर सारे कार्य करने पड़ते हैं जो मेरे अध्यापकीय कामों से अलग हैं, लेकिन करना पड़ता है।
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मैं जब यह लिख रहा हूँ तो निश्चित ही कालाहांडी याद आ रहा है। झारखंड के सुदूर अंचल के आदिवासी याद आ रहे हैं जिनका जीवन स्तर लगातार घट रहा है। मुझे 2 दिन पहले गोरखपुर विश्वविद्यालय का वो दलित शोधार्थी याद आ रहा है जो फांसी लगा लिया। तमिलनाडु, मध्यप्रदेश सहित देश के किसान, बेरोजगारी से थककर खत्म होता युवा भी याद आ रहा है।
यह मीडिया के लिए एक खबर हो सकती है पर मेरे जैसे लोगों के लिए यह लगातार क्षोभ पहुंचाने की घटना है। मुझे यह नहीं समझ आता कि यह आपके लिए क्या है और आप इस घटना को कैसे लेते हैं? एक के बाद एक घटनाएं शंशय तो पैदा करती ही हैं। यह संशय आप पर नहीं बल्कि खुद पर कि भविष्य में जिंदा रहने के कौन से तरीके को अपनाना होगा।
एक आम आदमी बने रहना लगातार खुद के आदमियत को खत्म करते जा रहा है। सही में कभी-कभी मन करता है कि बर्बर, क्रूर या बेईमान हो जाऊं। कम से कम मेरी पीढ़ी के सामने तो यही उदाहरण बन रहे हैं।
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आपकी तमाम योजनाओं में कौशल, तकनीकी और मेहनत की बात हो रही है, लेकिन मेरे सामने केवल इन भागने वालों के उदाहरण हैं। मुझे तो नहीं पता कि 5000 करोड़ कितना होता है लेकिन मुझे यकीन है कि आपको तो पता ही होगा। शायद आप इस हानि को ज्यादा महसूस कर पा रहे होंगे। लेकिन लगातार घटनाएं आप के ऊपर शंका करने के लिए विवश की थी।
मैं कायदे से जोड़ भी नहीं पा रहा हूँ कि विदेशी हमको कितना लूट के ले गए, शायद ज्यादा लूटे होंगे। तब हम वर्तमान के आधार पर बहुत कमजोर थे। लेकिन अब भारत 'विकास' कर रहा है, सशक्त है फिर भी ऐसा क्यों।
सोचिए इस 5000 करोड़ से क्या हो सकता था। गोरखपुर के वो बच्चे न मरते, विदर्भ के किसान न मरते, लोगों के लिए शिक्षा सस्ती हो जाती, आपको दो करोड़ रोजगार देने में कोई दिक्कत न होती, मेरे गांव में अस्पताल बन जाता, सड़के बन जातीं और भी न जाने क्या क्या...
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यह 5000 करोड़ लेकर भागने वाला केवल पैसा लेकर नहीं भागा है बल्कि हमारी अस्मिता लेकर भागा है। शायद आप कुछ सोच पा रहे होंगे? इतने पैसे देश के लिए कुछ होते हैं और जब आप देश के प्रति दावा रखते हैं तो सोचना ही चाहिए आपको।
चलते-चलते एक बात और... अब हमारे बच्चे 'यदि आप प्रधानमंत्री होते?' पर निबंध लिखने से ज्यादा रचनात्मक निबंध 'यदि आप विजय माल्या या नीरव मोदी होते?' पर लिख रहे हैं। सोचिए...