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NEERI launches India's first air pollution web fund
नई दिल्ली, 6 नवम्बर, 2019 : भारत में पिछले कुछ वर्षों के दौरान वायु प्रदूषण (air pollution) जहां राजनीतिक और आम बहस का विषय बन चुका है, वहीं यह गलतफहमी भी पैठ बना चुकी है कि इस विषय पर होने वाला अनुसंधान काफी सुस्त और शुरुआती दौर में है। इस मुगालते को दूर करने के लिये काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च - Council of Scientific and Industrial Research (सीएसआईआर)-नेशनल एनवॉयरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट - National Environmental Engineering Research Institute (नीरी) ने भारत का पहला वेब रिपॉजिटरी - Web repository (कोष) शुरू किया है जिसमें पिछले 60 वर्षों के दौरान देश में वायु की गुणवत्ता को लेकर किये गये अध्ययनों (Studies on air quality in the country) को दस्तावेजी रूप में पेश किया गया है। इंडियन एयर क्वालिटी इंटरैक्टिव रिपोजीटरी या इंडएयर ने इंटरनेट युग से पहले (1950-1999) के दौर की करीब 700 स्कैन्ड सामग्रियों और 1215 शोध लेखों, 170 रिपोर्टों और केस स्टडीज,100 केसेज और 2000 से ज्यादा स्टैच्यूज को संजोया है, ताकि देश में वायु प्रदूषण सम्बन्धी अनुसंधान और इससे सम्बन्धित कानूनों के इतिहास की जानकारी मुहैया करायी जा सके। यह वायु प्रदूषण को लेकर बनाया गया दुनिया का पहला कोष है।
नीरी के निदेशक डॉक्टर राकेश कुमार ने कहा
‘‘हालांकि वायु प्रदूषण दुनिया में सबसे व्यापक रूप से चर्चा में आये विषयों में से है लेकिन जहां तक आंकड़ों या इतिहास का सवाल है तो भारत में इनके बारे में जानकारी रखने वालों की तादाद बहुत कम है। एक आम धारणा यह है कि इस समस्या से निपटने के लिये ज्यादा कुछ नहीं किया जा रहा है। हमने इंडएयर की शुरुआत इस इरादे के साथ की है कि देश में वायु प्रदूषण को लेकर स्थापित किये गये अहम मील के पत्थरों का दस्तावेजीकरण करके उन्हें आम लोगों को मुहैया कराया जाए। हमें उम्मीद है कि इससे न सिर्फ प्रबुद्ध वर्ग के लोगों को यह मुद्दा बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी, बल्कि नीति निर्धारक लोग भी ऐसे कानून बनाएंगे जिनसे विकास को बढ़ावा मिल सके।’’
जैसा कि बाकी परियोजनाओं में बड़े प्रयासों की जरूरत होती है, वैसे ही इंडएयर को अमली जामा पहनाने के लिये 22 लोगों को 11 महीने तक मेहनत करनी पड़ी। इस दुरूह काम में देश भर में फैले विभिन्न संस्थानों में संजोकर रखी गयी सामग्री को हासिल करना, इंटरनेट के दौर से पहले की उपलब्ध अध्ययन रिपोर्ट एकत्र करना, वेबसाइट तैयार करना, इतिहास और परियोजना के दायरे को समझने के लिए भारत भर के विशेषज्ञों का साक्षात्कार लेना आदि शामिल हैं।
इस काम में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, कम्युनिकेशन एण्ड इन्फॉर्मेशन रिसोर्सेज (एनआईएससीएआईआर), भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (बीएआरसी) और नेशनल आर्काइव्ज ऑफ इण्डिया (एनएआई) ने इंटरनेट से पहले के दौर की सम्बन्धित सामग्री उपलब्ध कराकर बहुत मदद की। इसके अलावा द एनर्जी रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी), पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने भी नीरी के साथ साझीदारी निभायी।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की संयुक्त सचिव निधि खरे ने कहा,
“सरकार ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कई पहल की है, हालांकि, नीति निर्माताओं, नियामकों, वैज्ञानिकों / शिक्षाविदों का सामूहिक प्रयास समय की जरूरत है और सार्वजनिक भागीदारी उच्च वायु प्रदूषण के प्रकरणों को नियंत्रित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।”
Website to know the causes of air pollution
सीपीसीबी के अध्यक्ष एस पी एस परिहार ने बुधवार को नयी दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में इंडएयर का शुभारम्भ किया।
इस मौके पर उन्होंने कहा
‘‘इस वेबसाइट से हमें वायु प्रदूषण के कारणों को गहराई से जानने और पूर्व में ऐसी समस्याओं से निपटने के लिये उठाये गये कदमों के बारे में जानकारी विकसित करने में मदद मिलेगी। साथ ही यह वैज्ञानिक बिरादरी के लिये अपने कार्यों को साझा करने और विचारों का आदान-प्रदान करने का भी अच्छा माध्यम हो सकती है। नीरी के वैज्ञानिकों को इस बात का श्रेय जाता है कि वे इस समय भारत के शहरों, कस्बों और ग्रामीण इलाकों के सामने खड़ी पर्यावरणीय चुनौतियों को रेखांकित करने में सफल रहे। चाहे वह गंदे पानी का प्रबन्धन हो, ठोस कचरे का निस्तारण हो या फिर वायु प्रदूषण की समस्या के समाधान की बात हो, इन वैज्ञानिकों के अध्ययनों ने इस समय मुंह खोले खड़ी समस्याओं की गम्भीरता को न सिर्फ जाहिर करने बल्कि उनके समाधान की राह पर रोशनी डालने में भी बहुत बड़ी मदद की है।’’
Air pollution in India was identified as a subject in the year 1905.
इंडएयर उस कहानी को बयान करती है जब भारत में वायु प्रदूषण को वर्ष 1905 में एक विषय के तौर पर पहचान लिया गया था। उस वक्त बंगाल स्मोकिंग न्यूसेंस एक्ट (Bengal smoking nuisance act) बना था। उसके बाद के कुछ दशकों में भी वायु प्रदूषण को लेकर कई कानून बने।
1970 के दशक में देश के नीति निर्धारकों और अनुसंधानकर्ताओं के जहन में यह साफ हुआ कि यह वैज्ञानिक अनुसंधान का मुद्दा है।
वर्ष 1970 में भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (बीएआरसी), सेंट्रल पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीपीएचईआरआई) और नेशनल प्रोडक्टिविटी काउंसिल (एनपीसी) को वायु प्रदूषण पर नजर रखने वाले उपकरण (Air pollution monitoring equipment) तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया। इससे पहले, डस्ट चार्ट और रिंगलमन चार्ट का जमाना था। इनका इस्तेमाल चीजें जलाने से उठने वाले धुएं का अध्ययन करके प्रदूषण का स्तर तय करने में किया जाता था।
भारत, जो कि समस्याओं के समाधान के लिये अक्सर पश्चिमी देशों की तरफ देखता है, मगर इंडएयर से जाहिर होता है कि वायु प्रदूषण के खतरों पर खुले जहन से विचार-विमर्श का सिलसिला 70 के दशक से ही शुरू हो गया था। वहीं, 50 के दशक में भी भारत में विभिन्न प्रमुख शोधकर्ताओं ने इस मुद्दे पर अध्ययन किये हैं।
वर्ष 1954 में अपने अध्ययनों में मौसम विज्ञान कार्यालय के वैज्ञानिक एस सी रॉय ने सूखाग्रस्त क्षेत्रों में इस समस्या को दूर करने के लिये क्लाउड सीडिंग के बारे में विस्तार से बताया।
इसके अलावा बम्बई (अब मुम्बई), दिल्ली, कलकत्ता (अब कोलकाता) तथा कानपुर में वायु की गुणवत्ता को लेकर राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान संस्थान नागपुर के पी के येन्नावर, एस एन दीक्षित, वी एल पम्पट्टीवर, वी एल दवे और जे एम आसीवाला ने भी अल्पकालिक अध्ययन किये थे।
इसी दौरान बीएआरसी के पी के जुत्शी ने ‘पर्सपेक्टिव ऑन करेंट एयर पॉल्यूशन प्रॉब्लम्स’ नामक दस्तावेज तैयार किया ताकि वायु प्रदूषण के स्वभाव, प्रभावों और समस्याओं के बारे में समझ और दिलचस्पी पैदा हो। साथ ही देश में वायु प्रदूषण के गम्भीर नतीजों से निपटने के लिये रणनीति तैयार करने में मदद मिल सके।इस वक्त सीपीसीबी के पास करीब 700 वायु गुणवत्ता निगरानी केन्द्र और 100 से ज्यादा कंटीनुअस एयर क्वालिटी मॉनीटरिंग स्टेशन हैं।
पहला वेब रीपॉजीटरी (कोष) “इंडएयर” का लिंक: http://www.indair-neeri.res.in ।
क्या है नीरी
CSIR-NEERI : India's pioneering research institute in the field of environment science and engineering as a part of CSIR under the aegis of MoST
नेशनल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) नागपुर की स्थापना वर्ष 1958 में सेंट्रल पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट (सीपीएचइआरआई) के तौर पर हुई थी। उस वक्त पर्यावरण सम्बन्धी चिंताएं सिर्फ मानव स्वास्थ्य तक ही सीमित थीं। इसमें पानी की आपूर्ति/सीवेज निस्तारण/संचारी रोगों और कुछ हद तक औद्योगिक प्रदूषण और पेशे से सम्बन्धित बीमारियों पर ही जोर दिया गया था।
इन समस्याओं से निपटने के लिये रासायनिक और जैविक समाधान सामान्य, मगर चुनौतीपूर्ण थे। हालांकि पर्यावरण प्रदूषण के प्रति जागरूकता का दायरा 1970 के दशक में धीरे-धीरे क्षेत्रीय से वैश्विक स्तर पर पहुंचना शुरू हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने वर्ष 1974 में सीपीएचइआरआई को नीरी के तौर पर नया कलेवर दिया। नीरी पर्यावरण विज्ञान तथा इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अनुसंधान और नये आविष्कारों के प्रति समर्पित है। साथ ही वह उद्योगों, सरकार तथा आम जनता द्वारा प्रदूषण के सिलसिले में खड़ी की जाने वाली समस्याओं के समाधान निकालने के लिये भी ठोस काम कर रहा है।
नीरी की चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता और मुम्बई में जोनल लैबोरेटरी हैं। नीरी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन आता है।
क्या है सीएसआईआर
सितम्बर 1942 में केन्द्र सरकार द्वारा एक स्वायत्त संस्था के रूप में स्थापित किये गये सीएसआईआर ने देश के सबसे बड़े अनुसंधान एवं विकास संगठन के तौर पर अपनी पहचान बनायी है। वर्ष 2013 में यह 38 प्रयोगशालाओं/संस्थाओं, 39 आउटरीच केन्द्रों, 3 इनोवेशन सेंटरों और 5 इकाइयों का संचालन करता था। इसमें 3987 वैज्ञानिकों और 6454 तकनीकी तथा सहयोगी कर्मियों सहित 14000 से ज्यादा का सामूहिक स्टाफ है। हालांकि इसके वित्तपोषण की मुख्य जिम्मेदारी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के कंधों पर है लेकिन यह सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत एक स्वायत्त संस्था के तौर पर काम करता है।
सीएसआईआर की अनुसंधान एवं विकास सम्बन्धी गतिविधियों में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग, ढांचागत अभियांत्रिकी, महासागर विज्ञान, लाइफ साइंसेज, धातु विज्ञान, रसायन, खनन, भोजन, पेट्रोलियम, चमड़ा और पर्यावरण विज्ञान शामिल हैं।
Neeri launches India's first air pollution web repository