कहने को तो देश में लोकतंत्र है (There is democracy in the country), पर जो व्यक्ति सत्ता पर काबिज है वह अपने आप को राजतंत्र के किसी बादशाह से कम नहीं समझा रहा है। जनता से चुने गये जनप्रतिनिधियों द्वारा चुना गया यह बादशाह बेगैरत भी इतना कि देश कितना भी गर्त में चला जाए, जिम्मेदार लोगों द्वारा कितना भी प्रयास देश में फैली अराजकता की ओर दिलाया जा पर इसके कान पर जूं तक नहीं रेंगती। इतना ही नहीं कि यदि देश में हो रही हिंसा के खिलाफ कोई पत्र भी लिख दे तो इसके समर्थक उस पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करा देते हैं। समर्थक भी ऐसे जो लोकतंत्र की रक्षा के लिए बनाए गए तंत्र से संबंधित हों। बादशाह में बेशर्मी इतनी कि एक ओर गांधी की 150वीं जयंती पर शांति का संदेश (Message of peace on Gandhi's 150th birth anniversary) देने का ढकोसला कर रहा है, दूसरी ओर शांति की बात करने वालों को देशद्रोही साबित कराने में लगा है। हां यह भी जमीनी हकीकत है कि इस व्यक्ति के इतने बेगैरत, तानाशह और निरंकुश बनने में जनता का बहुत बड़ा योगदान माना जा रहा है।
इस बादशाह की शह पर देश में गिने-चुने पूंजीपतियों द्वारा संसाधनों का दोहन किया जा रहा है। एक विशेष तबका जनता का हक मारकर अय्याशी करने में लगा है। देश की माली हालत के लिए पिछली सरकारों को जिम्मेदार ठहराकर अपने को क्लीन चिट देने का प्रयास हो रहा है। कीड़े-मकौड़े की जिंदगी जीने को मजबूर जनता गुलामों की तरह मुंह नीचा करके देश में चल रहे नंगे नाच को देख रही है। इतना ही नहीं एक बड़ा तबका बेशर्मों की तरह इस बेगैरत बादशाह की पैरवी करता नजर आ रहा है। कहीं-थोड़ा बहुत विरोध हो भी रहा है तो वह भी जाति और धर्म के नाम पर। इस बादशाह का नहीं बल्कि आपस में एक-दूसरे का।
देश के आजाद होने के बाद यह पहला विपक्ष है जो कहीं नहीं दिखाई दे रहा है। हां यदि सत्ता की मलाई चाटने की बात आ जाए तो विपक्ष में बैठे नेताओं में एक से बढ़कर एक सूरमा निकल कर बाहर आ जाते हैं। विपक्ष के कमजोर होने के पीछे देश में इनके भ्रष्ट होने का तर्क दिया जा रहा है। इसी तर्क के सत्ता का मजा लूटने वाले लोग इस बेगैरत बादशाह की पैरवी करने में लगे हैं। अंधभक्ति भी ऐसी कि यह बादशाह तो सत्ता के लिए विपक्ष के नेताओं पर शिकंजा कस रहा है पर देश का बड़ा तबका इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान समझ रहा है। ये लोग एक ऐसे नशे में घूम रहे हैं कि इन्हें कुछ नहीं दिखाई दे रहा है। इस बादशाह के पिछले कार्यकाल से भी इन लोगों ने कोई सबक नहीं लिया। यह बादशाह जिस प्रदेश में चुनाव आते हैं तो उस प्रदेश के दूसरे दलों के नेताओं पर शिंकजा कसना शुरू कर देता है। चुनाव जीतते ही काहें का भ्रष्टाचार, काहें का देश और काहें का समाज ?
उत्तर प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और अखिलेश यादव पर शिकंजा कसा गया और चुनाव जीतते ही मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। हां 2022 के विधानसभा चुनाव में देखना फिर से यह जिन्न बाहर निकल जाएगा। ऐसे ही अब हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव चल रहा है तो हरियाणा में चौटाला परिवार के साथ ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुलदीप विश्नोई के परिवार पर भी शिकंजा कसा गया है। महाराष्ट्र में शरद परिवार के परिवार पर शिंकजा कसा गया है। चुनाव जीतते ही भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहा अभियान खत्म हो जाएगा। इसी अभियान का डर दिखाकर विपक्ष के भ्रष्ट नेताओं को अपने में मिला लिया जा रहा है। भाजपा में आते ही यह नेता स्वच्छ छवि के हो जा रहे हैं। मतलब आप इस बादशाह के सामने समर्पण कर दो कितने भी कुकर्म करते घूमों। हां यदि अड़ गये तो आप भी लालू प्रसाद और आजम खां की श्रेणी में आ जाएंगे।
निश्चित रूप से सभी राजनीतिक दलों में एक से बढ़कर एक भ्रष्ट नेता (Corrupt leader) है पर इन पर शिकंजा देश और समाज के लिए नहीं बल्कि सत्ता के लिए कसा जा रहा है। मतलब भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान के नाम पर जनता का बेवकूफ बनाया जा रहा है। सत्ता भी ऐसी कि जनता कराहती रहे और एक विशेष तबका देश के संसाधनों का दोहन कर मौज मारता रहे।
यह वही देश है जिसमें अंग्रेजी शासन के खिलाफ क्रांति की मशालें जल गई थीं। देश के युवा देश और समाज के लिए माथे पर कफन बांधकर सड़कों पर निकल गये थे। निश्चित रूप से सत्ता के लिए ही विपक्ष में भी बैठे नेता भी इस बादशाह की तरह तरह जनता की भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं। देश की रक्षा के लिए गये तंत्र भी सत्ता की मलाई चाटने के आदी हो गये हैं। ऐसे में सारा भार जनता के कंधों पर है पर जनता है कि गुलामी से बाहर ही नहीं निकल रही है। इस व्यवस्था के बीच में जो लोग इस बादशाह से टकरा रहे हैं उनका साथ जनता भी नहीं दे रही है।
हां यह भी जमीनी सच्चाई है कि आंदोलनों ने जनता को जरूर निराश किया है पर यह भी जमीनी हकीकत है कि आंदोलनों से निकली पार्टियों में कितने भी भ्रष्ट नेता हो जाएं पर उसकी नीति ऐसी होती है कि कहीं न कहीं कमजोर आदमी को उस नीति का फायदा जरू मिल जाता है।
जेपी क्रांति से निकली जनता पार्टी में रहे नेता भले ही बिखर गये हों पर इन नेताओं ने शुरुआती दौर में जनता के लिए काफी काम किये। ऐसे ही अन्ना आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी कितनी भी भटक जाए पर उसकी नीति में गरीब आदमी है। यही वजह रही है कि देश में शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में उन्होंने काम कर देश में एक मिसाल पैदा की। आजादी की लड़ाई की विरासत संजोये कांग्रेस में कितना भी परिवारवादवाद और कितना भी भ्रष्टाचार हो जाए पर जनता का दबाव पड़ने पार्टी ने अच्छे काम काम भी किये हैं। मनमोहन सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून और खाद्य सुरक्षा कानून इसके बड़े उदाहरण हैं। क्षेत्रीय दलों में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में कितना भी भ्रष्टाचार रहा हो पर जमीनी स्तर पर भी काफी काम हुए हैं। मुलायम सिंह के पहले कार्यकाल और मायावती के कार्यकाल में कानून व्यवस्था का आज भी लोग हवाला देते हैं।
समाजवाद के प्रणेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि जिंदा कौमे पांच साल तक इंतजार नहीं करती हैं। यह आह्वान उन्होंने राजनीतिक दलों से नहीं बल्कि जनता से किया था। जब देश में विपक्ष कमजोर पड़ जाता है, लोकतंत्र के रक्षक भ्रष्ट हो जाते हैं तो एक जनता ही होती है जो देश और समाज के लिए खड़ी होती है। आज के दौर में जनता का यह हाल है कि अपनी आंखों के सामने ही सब कुछ लूटते देखते हुए भी मौन है। देश का युवा तो जैसे उसे किसी बात की कोई चिंता ही नहीं है। कहीं पर मर्डर करते हुए लाइव दिखाया जा रहा है तो कहीं पर आत्महत्या करते हुए और कहीं पर स्टंट करते हुए। सेटिंग व वेटिंग में अपना समय बर्बाद कर रहा है।
देश का यह बेगैरतम बादशाह एक दूसरे देश को हजारों करोड़ रुपये दे आता है ओैर अपने देश में किसी बड़ी आपदा के लिए रखा गया रिजर्व बैंक में रिजर्व पैसा भी निकाल लेता है। नोटबंदी के नाम पर, जीएसडी के नाम पर, ब्लैकमनी के नाम पर हजारों, लाखों करोड़ रुपये इस बादशाह ने जुटाये। कहां हैं कोई पूछने वाला नहीं ?
देश की सबसे बड़ी कंपनी एलआईसी को बर्बादी की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया। सरकार को सबसे अधिक राजस्व देना वाले रेलवे का पूरी तरह से निजीकरण कर दिया गया जा रहा है। इसकी शुरुआत 'तेजस' ट्रेन से हो चुकी है। जनता चुप है। सत्ता की शह पर अपने धंधे को चमकाने में लगे बाबा बहू-बेटियों की अस्मत लूट रहे हैं। चिमन्यानंद स्वामी प्रकरण ताजा उदाहरण है। आरोपी वातानुकूलित कमरे में रह रहा है और पीड़िता जेल की सलाखों के पीछे है। जनता चुप है। हां जनता में जाति और धर्म पर जरूर जोश आ जा रहा है।
जो लोग एक-दूसरे के दुख-दर्द में खड़े होते रहे हैं वे उनके ही खून के प्यासे हो जा रहे हैं। एक ओर चंद्रयान की बात की जा रही और दूसरी ओर देश को गाय-गोबर और अंधविश्वास की दुनिया में धकेला जा रहा है और जनता चुप है। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, आर्थिक मंदी, कानून व्यवस्था जैसे जमीनी मुद्दे को छोड़कर हिंदू-मुस्लिम, पाकिस्तान, गो हत्या, दिखावे का राष्ट्रवाद मुख्य मुद्दे बने हुए हैं।
देश में सब कुछ इस बेगैरत बादशाह के इशारे पर हो रहा है और देश का एक बड़ा तबका इस बादशाह को क्लीन चिट देकर इसे एक उद्धारक के रूप में देख रहा है। अपने आप मर रहे रहे पड़ोसी देश को सबक सिखाने के नाम पर देश को एक बड़े खतरे की ओर ले जाया जा रहा है और देश की गुलाम जनता इसे इस बेगैरत बादशाह की बहादुरी समझ रही है। अमेरिका जैसे दूसरी यूरोपीय देश जो हमारे देश का बिल्कुल भी हित नहीं चाहते हैं उन्हें मित्र बनाकर देश को गुमराह किया जा रहा है।
हर साल दो करोड़ रोजगार देने का दावा करने वाला, संसद को दाग मुक्त करने वाला, स्विस बैंक में पड़ी देश की ब्लैक मनी लाकर हर व्यक्ति के खाते में 15 लाख रुपये देने वाला यह बेगैरत बादशाह जनता के खून पसीने की कमाई पर विदेशी भ्रमण कर रहा है और जनता इसे देश का मान बढ़ाना समझ रही है। देश की जनता की अनदेखी कर विदेश में रह रहे स्वार्थी लोगों के बीच में जाकर सेल्फी लेने वाले इस बादशाह का असली चेहरा लोग नहीं देख पा रहे हैं। यह बेगैरत बादशाह देश के नौनिहालों का हक मारकर अपनी रुतबे में लगा दे रहा है और यही लोग इसके विदेशी भाषण पर खुश हो रहे हैं। इन्हें झूठे सपने दिखाकर इनका निवाला भी छीन ले रहा है और ये लोग किसी चमत्कार का इंतजार कर रहे हैं।
चरण सिंह राजपूत