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युद्धक घृणा के खिलाफ रंगभेदी शास्त्रीयता तोड़कर बॉब डिलान के रंगकर्म को साहित्य का नोबेल पुरस्कार

हृदयेश बिना जोखिम की जोखिम भरी यात्रा : आत्मुग्धताओं और कुण्ठाओं का पुलिन्दा

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Nobel Prize in Literature for Bob Dylan's Theater for Breaking Apartheid Classicism Against War Hate

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अमेरिकी बाउल गायक गीतकार बॉब डिलन के रंगकर्म को साहित्य का नोबेल पुरस्कार (American Bowl singer-songwriter Bob Dylan won the Nobel Prize for Literature)

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रवींद्र की गीताजंलि के बाद संगीतबद्ध लोकसंस्कृति और विविधता बहुलता को मिले इस नोबेल से विश्वव्यापी अभूतपूर्व हिंसा और अविराम युद्धक घृणा के खिलाफ रंगभेदी शास्त्रीयता तोड़कर भारत की विविधता और बहुलता की ही जीत (India's victory for diversity and plurality) यह...

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बाउल कवि के रंगकर्म (Baul Poet) को नोबेल पुरस्कार से हम इप्टा आंदोलन (IPTA movement) को नये सिरे से पुनर्जीवित कर सकें तो इस दुस्समय में आम जनता के सुख दुःख, उसके रोजमर्रे की जिंदगी और जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता के हक हरकूक की लड़ाई के प्रति हम अपनी प्रतिबद्धता साबित कर सकते हैं।

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पलाश विश्वास

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नोबेल पुरस्कारों की नींव में बिछी बारुदी सुरंगों की वजह से, युद्धबाजों और मुक्तबाजारियों को नोबेल शांति पुरस्कार और अर्थशास्त्र के लिए नोबेल मान्यता की वजह से, आस्कर में रंगभेदी श्वेत वर्चस्व की वजह से निजी तौर पर किसी नोबेलिये के महिमामंडन मैं करता नहीं हूं।

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इस बार अमेरिकी बाउल कवि अत्यंत लोकप्रिय गायक गीतकार बॉब डिलान को साहित्य का नोबेल पुरस्कार (Bob Dylan nobel prize) मिला है।

गायक बॉब डिलन को इससे पहले उनके गीतों के रंगकर्म के लिए आस्कर मिल चुका है।

महान नाटककार जार्ज बर्नार्ड शा के बाद वे शायद पहले रंगकर्मी हैं, जिन्हें आस्कर और नोबेल पुरस्कार दोनों मिले हैं।

वियतनाम युद्ध और आसमान से तेजाब वर्षा को एकसाथ जोड़ते हुए कोलकाता और वियतनाम में गटर में कवि और कविता की मौत पर उन्होंने लिखाः

I heard the song of a poet who died in the Gutter!

दक्षिण एशिया में गहराते युद्धोन्माद के खिलाफ वियतनाम युद्धविरोधी या तेल युद्ध के खिलाफ अमेरिका में हुए संस्कृतिकर्मियों के किसी आंदोलन बारे में हमें सोचने तक की आजादी नहीं है, जाहिर है इस दुस्समय में ब्राह्मण धर्म के फासिज्म के पुनरूत्थान के मुकाबले सिंधु सभ्यता, वैदिकी साहित्य और बुद्धमय भारत की निरंतरता के सिलसिले में बाउल आंदोलन की यह वैश्विक मान्यता रवींद्र को नोबेल पुरस्कार की तरह भारत में भी विविधता और बहुलता की संस्कृति और रचनाधर्मिता की विधाओं को नये सिरे से पुनर्जीवित करेगी, इसी दृष्टि के साथ यह आलेख है।

रवींद्रनाथ ने गीतों और नाटकों के अलावा सभी विधाओं में लिखा है, लेकिन उन्हें पुरस्कार उनके बाउल गीतों के लिए ही मिला तो अमेरिकी बाउल कवि बॉब डिलान का लेखन तो सिरे से उपन्यास, कविता या किसी अन्य परंपरागत विधा में नहीं आता है, जिसके लिए अब तक यह पुरस्कार दिया जाता रहा है।

बंगाल के बाउलों को अमेरिका ले जाकर इन्हीं  बॉब डिलोन ने साल भर उनके साथ मंच साझा किया है अमेरिका के कोने कोने में और उनके नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के बाद बंगाल के सबसे बुजुर्ग और प्रतिष्ठित बाउल कवि और गायक पूर्णचंद्र बाउल ने बाउल गायकों के साथ बॉब डिलोन की उस साझे चूल्हे का संस्मरण बांग्ला दैनिक आनंद बाजार के पाठकों के साथ शेयर किया है।

बॉब डिलोन पूर्णचंद्र बाउल के छोटे बेटे की शादी के मौके पर बंगाल आये थे।

साठ के दशक से बांग्ला कविता में अमेरिकी युद्धविरोधी संगीत का गहरा असर रहा है।

इसी सिलसिले में सुनील गंगोपाध्याय जैसे कवियों की अमेरिकी कवि ऐलेन जींसबर्ग से दोस्ती हुई और वियतनाम युद्ध के खिलाफ बंगाल में भी भारी आंदोलन हुआ है। जिसका असर भारत में साहित्य की विभिन्न विधाओं में होने वाले आंदोलनों पर होता रहा है।

भारत में वियतनाम या खाड़ी युद्ध के खिलाफ आंदोलन होते हैं, जिनका सीधा संबंध भारत के शासक तबके के हितों से न था।

अमेरिका में युद्धविरोधी आंदोलन लेकिन राष्ट्र के सैन्यकरण, पागल दौड़ के उपभोक्तावाद और स्त्री उत्पीड़न के खिलाफ हुआ है जो सीधे तौर पर अमेरिकी राष्ट्र के साम्राज्यवाद के खिलाफ और अमेरिकी राष्ट्रपतियों के युद्धोन्माद और अमेरिकी युद्धक अर्थ व्यवस्था और राजनीति के खिलाफ रहा है।

इस युद्धविरोधी बाउल विमर्श का प्रतिनिधित्व जैसे ऐलेन जींसवर्ग के नेतृत्व में अमेरिकी संस्कृतिकर्मियों ने साठ के दशक में किया, वह सिलसिला करीब पांच दशकों से बॉब डिलान करते आ रहे हैं और बाउल दर्शन उनके रंगकर्म की अंतरात्मा है, जो एकमुश्त सिंधु सभ्यता, वैदिकी साहित्य और बुद्धमय भारत की विविधता और बहुलता की संगीतबद्धता है।

नोबेल कमिटी के मुताबिक अमेरिकी संगीत परंपरा में पठनीय गीत रचने के लिए बॉब डिलान को यह पुरस्कार दिया जा रहा है और इस सिलसिले में यूनानी महाकवि होमर और नाटककार सोफोक्लीज के पठनीय साहित्य के रंगकर्म का उल्लेख किया गया है। लेकिन गौर से देखें तो यह पुरस्कार भारत में लालन फकीर के आध्यात्म, देहतत्व और दर्शन,बाउल आंदोलन की परंपरा में रवींद्र काव्यधारा की,और उससे भी ज्यादा डोनाल्ड ट्रंप जैसे फासिस्ट के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने की प्रबल संभावना के खिलाफ भारत की बुद्धमय विविधता बहुलता की सिंधु सभ्यता के लिए इस बार का यह नोबेल पुरस्कार है।

हालांकि यह पुरस्कार औपचारिक तौर पर आंग्ल अमेरिकी साहित्य के लिए दिया गया है तो संगीतबद्ध गीतों को पुरस्कार का औचित्य सिद्ध करने के लिए साहित्य के परफरमैंच यानी रंगकर्म की पठनीयता और पाठ पर इतना जोर दिया गया है।

इसके मद्देनजर भारतीय रंगकर्म में साहित्य और बाकी कला माध्यमों, विधाओं के समावेश की प्रासंगिकता फिर साबित होती है, जिसे ऋत्विक घटक के कोमल गांधार के मुताबिक, गायक देवव्रत विश्वास के अवरुद्ध संगीत के मुताबिक, सोमनाथ होड़ और चित्तोप्रसाद की पेंटिंग बजरिये भुखमरी की रिपोर्टिंग के मुताबिक और भारतीय सिनेमा में लोक संस्कृति की गण नाट्य परंपराओं के मुताबिक कहा जा सकता है कि वाम आत्मघाती जनविमुख सत्ता राजनीति ने मार देने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है।

फिर भी जनप्रतिबद्धता के मोर्चे पर लोकसंस्कृति की जमीन पर इप्टा आंदोलन जारी है, उसकी विविध बहुल भारतीयता पर फासिज्म का प्रहार इसीलिए इतना तेज होता जा रहा है।

बाउल कवि के रंगकर्म को नोबेल पुरस्कार से हम इप्टा आंदोलन को नये सिरे से पुनर्जीवित कर सकें तो इस दुस्समय में आम जनता के सुख दुःख, उसके रोजमर्रे की जिंदगी और जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता के हक हकूक की लड़ाई के प्रति हम अपनी प्रतिबद्धता साबित कर सकते हैं।

  गौरतलब है कि अब तक साहित्य में सबसे अधिक नोबेल पुरस्कार जीतने वाले अंग्रेजी के लेखक (27) रहे हैं। उसके बाद फ्रेंच (14) और तीसरे नंबर पर (13) जर्मन हैं।

गौरतलब है कि अफ्रीकी साहित्यकार न्गुगी वा थ्योंगो इस बार इस पुरस्कार के जबरदस्त दावेदार थे।

उनकी कृति का अनुवाद आंनदस्वरुप वर्मा ने मूल अफ्रीकी भाषा में अफ्रीकी साहित्य और विद्वता का भविष्य शीर्षक से किया है।

इस अश्वेत अफ्रीकी साहित्यकार के लिए दरअसल हमें साहित्य के लिए इस बार के नोबेल पुरस्कार का इंतजार था। इसके विपरीत, अमेरिकी बाउल गायक गीतकार बॉब डिलान को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला रवींद्र की गीतांजलि को पुरस्कार की याद दिलाते हुए तो बंगाल की सिंधु सभ्यता और संस्कृति की बुद्धमय विविधता और बहुलता को विश्वव्यापी इन युद्ध परिस्थितियों के मद्देनजर यह सर्वोच्च मान्यता की प्रासंगिकता से मुझे कोई संदेह नहीं।

खास तौर पर वियतनाम युद्ध के खिलाफ अमेरिकी युवा पीढियों में जो वैकल्पिक लोक संस्कृति की विद्रोही धारा है, बॉब डिलोन उसके पचास साल से निरंतर प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और संजोग से वे न सिर्फ बाउल हैं, बल्कि भारत के बाउल गीतकारों गायकों से उनका नाभि नाल का संबंध भी दशकों पुराना है।

अभी हाल में “हस्तक्षेप” और अन्यत्र आपने गीतगोविंदम, महाकवि जयदेव और चैतन्य महाप्रभु के वैष्णव और बाउल आंदोलन में सिंधु सभ्यता और बुद्धमयबंगाल की निरंतरता पर मेरा आलेख पढ़ा होगा। वेव पर यह लंबा आलेख था, जो सही मायने में शोध निबंध होना चाहिए था, लेकिन उस तरह लिखने का मेरे पास कोई अवसर नहीं है। क्योंकि मुझे कहीं प्रकाशित होने की उम्मीद न होने की वजह से मैं सीधे जनता को संबोधित करता हूं।

दरअसल बाउल और सिंधु सभ्यता, वैदिकी साहित्य से लेकर यूनानी शास्त्रीय साहित्य तक साहित्य रंगकर्म से बहुत गहराई तक जुड़ा रहा है। जिसकी सर्वोत्तम अभिव्यक्ति भारत में इप्टा के आंदोलन में होती रही है, जिसमें सभी माध्यम और विधायें रंगकर्म में एकाकार है।

रंगकर्म यानी अभिव्यक्ति की तमाम दीवारों को लोकसंस्कृति के समुंदरी सैलाब से ढहाने के लिए आम जनता के मुखातिब होकर सामाजिक यथार्थ को सीधे संबोधित करना है। इसलिए रवींद्र की गीताजंलि के बाद संगीतबद्ध लोकसंस्कृति और विविधता बहुलता को मिले इस नोबेल से विश्वव्यापी अभूतपूर्व हिंसा और अविराम युद्धक घृणा के खिलाफ रंगभेदी शास्त्रीयता तोड़कर भारत की विविधता और बहुलता की ही जीत है यह।

इसे गहराई से समझने की जरुरत है।समझेंगे तो हम नया रंगकर्म सिरज सकेंगे।

कविता और गीतों के रंगकर्म की यह परंपरा विशुद्ध भारतीय है।

भारतीय काव्यधारा की विरासत भी यूनानी काव्यधारा की तरह हमारी गौरवशाली रंगकर्म परंपरा है। इसे हम जितनी जल्दी समझें, हम आम जनता के उतने नजदीक होंगे।

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