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मोदी सरकार का कश्मीर में विदेशियों को आमंत्रित करना भारत की एकता के लिए खतरनाक
जायनवादी नार्वेजियन पूर्व प्रधानमंत्री की कश्मीरी नेताओं से मुलाकात पर उठे सवाल
पैंथर्स सुप्रीमो ने नार्वे के पूर्व प्रधानमंत्री को कश्मीर में कुछ नेताओं से बात करने पर किया विरोध
Norwegian former Prime Minister's meeting with Kashmiri leaders
नई दिल्ली, 26 नवंबर। जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के मुख्य संरक्षक एवं कानूनविद् प्रो. भीम सिंह ने जम्मू-कश्मीर की विस्फोटक स्थिति पर कई किताबें लिखी हैं और जम्मू-कश्मीर में विदेशी प्रायोजित संकट को हल करने के लिए कई प्रस्तावों की पेशकश भी की है, जिसमें एक बार फिर से उत्तर भारत (कश्मीर) में आग को भड़काने की नवीनतम बिगड़ती स्थिति का जिक्र है। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि कैसे भारत संघ ने कुछ नाराज कश्मीरी नेताओं की तथाकथित वार्ता शुरू करने के लिए जियोवादी प्रायोजित एजेंट पूर्व नार्वेजियन प्रधानमंत्री केजेल मैग्ने बोंडेविक को कश्मीर में जाकर एक ही समूह के लोगों को मिलने की आजादी है।
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकार किया जाता रहा है कि जम्मू-कश्मीर का विलय ब्रिटिश संसद के अधिनियम के अनुसार वहां के महाराजा हरिसिंह ने अक्टूबर 1947 में किया था। उन्होंने पूछा क्या कारण है कि 575 रियासतों को 26 नवम्बर, 1949 में भारत संघ में जोड़ दिया गया और इसे जोड़ने वाली भारत सरकार थी। उन्होंने प्रश्न किया कि जम्मू-कश्मीर को भारत संघ में बाकी 575 रियासतों के साथ क्यों नहीं जोड़ा गया। इस प्रश्न का उत्तर भारतीय संसद को देना होगा। इसका उत्तर ना ही पाकिस्तान दे सकता है और ना ही जम्मू-कश्मीर के लोग।
पैंथर्स सुप्रीमो ने कहा कि जम्मू-कश्मीर राज्य के लद्दाख, कश्मीर घाटी व जम्मू प्रदेश तीन क्षेत्र हैं, जबकि विदेशी एजेंसियां केवल कश्मीर घाटी को एक निश्चित उद्देश्य से उकसा रही हैं ताकि सीआईए एक उद्देश्य के साथ चीन पर नजर रखने पर अमेरिकी सैन्य केंद्र की स्थापना में सफल हो सके ।
पैंथर्स सुप्रीमो ने आश्चर्य प्रकट किया कि भारत सरकार ने कुछ कश्मीरी नेताओं के एक समूह के साथ ही बातचीत शुरू करने के लिए श्री बोंडेविक को किसलिए अनुमति दी है। लोगों का यह समूह कौन है? क्या कश्मीर जम्मू-कश्मीर का हिस्सा नहीं है? क्या जम्मू-कश्मीर भारत संघ का हिस्सा नहीं है? उन्होंने भारत सरकार और नेताओं से इन प्रश्नों के उत्तर मांगे। उन्होंने प़क्ष और विपक्ष के सभी नेताओं से इन प्रश्नों के उत्तर भारतवर्ष के लोगों को ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व को देने पर भी जोर दिया। क्या समाज के किसी विशेष वर्ग से संबंधित विदेशी नेता को मिलने के लिए नहीं कहा गया? केवल कश्मीर के एक नाराज समूह के नेताओं से मिलने के लिए कहा गया है। जम्मू प्रदेश और लद्दाख क्षेत्र में क्यों नहीं?
उन्होंने भारतीय संसद को याद दिलाया कि अतीत में भारतीय नेतृत्व ने इस तरह की गलतियां की है, जिन गलतियों के परिणाम आज उपलब्ध हैं। भारतीय संसद तय करे कि देश के बाकी हिस्सों के साथ जम्मू-कश्मीर के लोगों का रिश्ता क्या है? जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया है तो क्या हिमाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, सिक्किम और अन्य कई अन्य राज्यों के लोगों को विशेष दर्जा प्राप्त नहीं है? क्या बैंगलोर से एक संत श्रीनगर में कश्मीरी नेताओं के साथ तथाकथित नॉर्वे से एक विदेशी नेता को कश्मीर नाराज नेताओं से बात कराएंगे या देखरेख करेंगे? प्रश्न यह है कि भारतीय नेतृत्व, भारत की संसद और भारत के जनप्रतिनिधियों की इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जा सकता? जिस तरह कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने कश्मीर के जानेमाने नेता शेष मोहम्मद अब्दुल्ला को स्वयं और अपने साथियों के साथ बातचीत करके मना लिया था और उसके बाद डा. मनमोहनसिंह ने भी कई बार कश्मीर जाकर सभी नाराज कश्मीरी नेताओं सहित बाकी दलों के प्रतिनिधियों को एक ही मंच में लाकर खड़ा किया था।
उन्होंने इस स्थिति पर सभी राजनीतिक नेतृत्वों को चेताया है। उन्होंने घोषणा की कि केंद्र सरकार का यह कदम सीआईए नेटवर्क के अवांछित तत्वों को उकसाने के लिए और कश्मीर घाटी में विदेशियों को आमंत्रित करना राष्ट्रीय एकीकरण व भारत की एकता के लिए खतरनाक है।
पैंथर्स नेता ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को लद्दाख, कश्मीर घाटी व जम्मू प्रदेश के नेतृत्व की बैठक क्यों नहीं करनी चाहिए, ताकि उन्हें श्रीमती इंदिरा गांधी, डा. मनमोहन सिंह इत्यादि की तरह जम्मू-कश्मीर के सभी पक्ष के लोगों को संवाद में शामिल किया जा सके। यहूदी ऑस्ट्रेलियाई जज ओवन डिक्सन ने एक षडयंत्र के तहत 1951 में संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधि के रूप में कश्मीर को जम्मू और लद्दाख से और फिर से भारत से अलग करने का साजिश रची थी। यही कारण था कि तत्कालीन प्रधान पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उस समय के जम्मू-कश्मीर के वजीर-ए-आजम शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को बर्खास्त करके जेल में डाल दिया।
प्रो. भीम सिंह ने वर्तमान भाजपा नेतृत्व को 1947 में जम्मू-कश्मीर का जलता हुए इतिहास को अध्ययन करने की सलाह दी। भारत सरकार और राष्ट्रीय एकता परिषद को जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के सभी पक्षों के नेताओं से बात करने पर जोर दिया है। यह मामला नार्वे या लंदन या न्यूयार्क से हल नहीं होगा।
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