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अनिवासी भारतीयों की पत्नियां जिस तरह की घरेलू शोषण की शिकार हैं उससे बचाव के लिए भारत सरकार और उनकी मेजबान सरकार दोनों को सजग होना पड़ेगा
अनिवासी भारतीय महिलाओं को अपने देश से काफी दूर एक अजनबी संस्कृति में घरेलू शोषण का सामना करना नया नहीं है. वे वहां अपने परिवार से काफी दूर हैं. यह मुद्दा हाल के सालों में और गंभीर है. भारत से बाहर जाने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है और इसके साथ ही ऐसे मामले भी बढ़ रहे हैं.
बीते दिनों विदेश मंत्रालय ने एक आंकड़ा जारी करके यह बताया कि हर आठ घंटे में एक अनिवासी महिला का अपने घर भारत में यह फोन आता है कि उसे घरेलू हिंसा से बचा लिया जाए. इसका मतलब यह हुआ कि हर रोज ऐसे तीन मामले आते हैं. जनवरी, 2015 से नवंबर, 2017 के बीच विदेश मंत्रालय को ही ऐसी 3,328 शिकायतें मिली हैं. वास्तविक आंकड़ा इससे काफी अधिक हो सकता है क्योंकि बहुत सारे लोग औपचारिक तौर पर ऐसी शिकायतें नहीं करते और परिवार के स्तर पर इसे सुलझाने की कोशिशें करते हैं.
एनआरआई दुल्हनें अलग-अलग पृष्ठभूमि की हैं. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक सबसे अधिक शिकायतें पंजाब, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात में दर्ज की जाती हैं.
इन सभी राज्यों में ठगी और शोषण की शिकार महिलाओं द्वारा दर्ज कराई गई शिकायतों की लंबी फेहरिस्त है. इन शिकायतों में शादी के बाद छोड़ जाने, पहले से शादीशुदा होने के बावजूद फिर से शादी करने, पति की नौकरी और कमाई से संबंधित गलत जानकारी देने, दहेज के लिए उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और गलत दस्तावेजों के आधार पर दिए जाने वाले तलाक जैसी शिकायतें शामिल हैं. ये शिकायतें आम तौर पर अमेरिका, ब्रिटेन और पश्चिम एशियाई देशों से आती हैं. शिकायत करने वाली महिलाएं विभिन्न शैक्षणिक पृष्ठभूमि की हैं. इनमें अनपढ़ से लेकर इंजीनियरिंग और कंप्यूटर विज्ञान में स्नात्तक महिलाएं शामिल हैं.
अमेरिका में एच4 वीजा धारक पत्नियों की शिकायतें सबसे अधिक होती हैं. इसका मतलब यह हुआ कि ये महिलाएं अपने एच1बी वीजा धारक पति पर आर्थिक तौर पर निर्भर होती हैं. इन महिलाओं को काम करने की आजादी नहीं थी. 2015 में ओबामा प्रशासन ने उन्हें वर्क परमिट के लिए आवेदन करने की सुविधा दी. लेकिन अभी अमेरिका में जो माहौल है, उसमें वर्क परमिट मिलना मुश्किल हो गया है.
इस समस्या की कई सामाजिक-आर्थिक वजहें हैं लेकिन दो वजहें प्रमुख हैं.
पहली बात तो यह कि अभिभावक बेटियों की शादी के लिए बेहद चिंतित रहते हैं. पढ़ी-लिखी और आर्थिक तौर पर स्वतंत्र बेटियों के लिए भी अभिभावक यह सोचते हैं कि अगर उसने शादी नहीं की तो इससे समाज में उनकी छवि खराब होगी. दूसरी समस्या यह है कि लोगों को शादी या किसी अन्य तरीके से विदेश जाना उज्जवल भविष्य की चाबी लगती है. महिलाओं को शादी ज्यादा अच्छा विकल्प लगता है. इस वजह से अभिभावक एनआरआई वर की तलाश में लग जाते हैं. दूसरी सामाजिक-सांस्कृतिक वजहें भी हैं. वर पक्ष के नाराज होने के भय से उससी जुड़ी जानकारियों की पड़ताल ठीक से नहीं की जाती. भारतीय समाज में यह सोच अब तक हावी है कि पत्नी की भूमिका घर चलाने और वर के मां-बाप और परिवार की सेवा करने तक सीमित है. कई मामलों में महिलाओं को यह लगा है कि वे जीवनसाथी नहीं बल्कि सस्ती घरेलू नौकरानी बन गई हैं. उन देशों में ये सेवाएं बेहद महंगी हैं.
भारत में एनआरआई को बहुत बड़ी चीज माना जाता है. वहां से आने वाले पैसे से न सिर्फ उनके परिवारों का भला होता है बल्कि अर्थव्यवस्था को भी इससे फायदा मिलता है.
भारत के 1.56 करोड़ लोग दूसरे देशों में रहते हैं. मौजूदा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार एनआरआई समुदाय को अपने साथ जोड़ने की कोशिश में लगी रहती है.
भारत सरकार को शिकायतों का इंतजार करने के बजाए इस मामले में और सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए. पंजाब सरकार ने ऐसी शिकायतों के लिए अलग पुलिस स्टेशन बना रखे हैं. अभी भारत की कानून व्यवस्था एजेंसियों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि जिस पर आरोप लगा है, उसे भारत लाना बेहद मुश्किल है. ऐसे में उस पर जरूरी कानूनी कार्रवाई नहीं हो पाती. मौजूदा सरकार द्वारा गठित एक समिति ने सिफारिश की है कि जिन एनआरई पर घरेलू हिंसा का आरोप साबित हो जाता है उनका पासपोर्ट रद्द किया जाना चाहिए, प्रत्यर्पण संधि के तहत घरेलू हिंसा को शामिल करना चाहिए और पीड़ितों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता बढ़ानी चाहिए. इसने यह भी कहा है कि जब तक केंद्र सरकार इस विषय पर कानून नहीं बनाती तब तक राज्य सरकारों को हर एनआरआई की शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य तौर पर कराना चाहिए और रजिस्ट्रेशन फॉर्म में वर से संबंधित सभी जरूरी जानकारियां दर्ज होनी चाहिए. इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर पर एक शिकायत तंत्र भी स्थापित किया जाना चाहिए.
यह एक ऐसा मसला है जिसे यहां बताए गए मुद्दों से अलग रखकर नहीं देखा जा सकता. सरकार और सभी एजेंसियों को इससे निपटने के लिए कई स्तर पर रणनीति तैयार करनी होगी. भारतीय महिलाओं को न सिर्फ इस तरह के शोषण से बचाया जाना चाहिए बल्कि उन्हें सम्मान से जीने का अधिकार मिलना चाहिए ताकि वे समाज के विकास में अपनी भूमिका निभा सकें.
इकॉनोमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली वर्षः 53, अंकः 06, 10 फरवरी, 2018
(Economic and Political Weekly, )
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