/hastakshep-prod/media/post_banners/NlGf0FjITvEJLGln5qdd.jpg)
रेगिस्तान का शेर उमर मुख्तार जिसने मुसोलिनी को नाकों चने चबवा दिए
साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ने वाला एक महान क्रांतिकारी योद्धा - ओमर मुखतार
साम्राज्यवाद जिस समय भारत मे 23 मार्च 1931 को 3 बहादुर योद्धाओं को फांसी चढ़ा रहा था, उसी साल 16 सितम्बर 1931 को साम्राज्यवादी ताकतें लीबिया में लीबिया के 73 साल के महान योद्धा उमर मुख्तयार को फांसी चढ़ा रही थीं।
ये उन सभी योद्धाओं को साम्राज्यवाद के खिलाफ मानवता के लिए, अपनी जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए लुटेरो के खिलाफ युद्ध लड़ने का इनाम था।
हमको आज 73 साल के उस महान योद्धा के बारे में जानना जरूरी है, जिसने नाजीवाद के खिलाफ 20 साल सहस्त्र संघर्ष किया। एक गुरिल्ला वार किया। बड़ी ही बहादुरी से अपनी जनता के लिए लड़ते हुए शहीद हुआ। साम्राज्यवादी ताकतें जिनके पास आधुनिक हथियार, टैंक, तोप, प्रशिक्षित सेना थी लेकिन फिर भी इतिहास गवाह है कि ये सब होते हुए भी साम्राज्यवाद को पूरे विश्व मे सहस्त्र संघर्ष में आम जनता जो देशी हथियारों से लड़ रही थी, से मुँह की खानी पड़ी है। पूरे विश्व में साम्राज्यवाद ने छल-कपट से लड़ाइयां जीती है। हम उमर मुख्तयार पर आते हैं।
उमर मुख्तार
जब यूरोप के साम्राज्यवादी मुल्कों ने एशिया और अफ्रीका के मुल्को को गुलाम बनाने के लिए अपनी आधुनिक सेनाये वहाँ भेजी तो उनकी इस लूट के खिलाफ साधारण से दिखने वाले आम इंसान, योद्धा के रूप में सामने आए, जिन्होंने अपने लोगो के सामने मजबूती से लड़ने की मिशाल पेश की, अन्याय के खिलाफ उनको एकजुट किया वही साम्राज्यवादीयों के सामने वो चैलेंज पेश किया कि खुद साम्राज्यवादियों ने उनकी बहादुरी के सामने घुटने टेक दिये। इन्ही योद्धाओं में एक महान बहादुर योद्धा थे लीबिया के मुख़्तार - ओमर मुख़्तार
ओमर मुख़्तार का जन्म 1859 ईसवी में हुआ और वे एक स्कूल के अध्यापक थे। 1895 ईसवी में वे सूडान चले गये उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध मेहदी सूडानी के आंदोलन में भाग लिया परंतु इस आंदोलन की विफलता के पश्चात् वे पुन: लीबिया लौट गये।
1911 में इटली ने उस्मानी शासन से युद्ध करके लीबिया को अपने नियंत्रण में ले लिया उमर मुख्तार ने लीबियाई कबीलों के योद्धाओं की सहायता से इटली के साम्राज्यवादियों के विरुद्ध सशस्त्र आंदोलन आरंभ किया और उन्हें भारी क्षति पहुँचाई ...
इंक़लाबी ओमर मुख़तार को 16 सितम्बर 1931 को 20 साल के जद्दोजेहद के बाद इटली की फ़ौज फांसी पर चढ़ा देती है।
* एक वाक़या
उमर मुख़तार के साथियो ने इटली के दो सिपाहियों को पकड़ा और उन्हे क़त्ल करने की कोशिश करने लगे तभी ओमर मुख़तार ने उन्हे रोकते हुए कहा :- हम बंदियों को नही मारते ..!
इस पर गुरिल्ला लड़ाकों ने कहा - वो तो बंदियों को मारते हैं।
इसके बाद ओमर मुख़तार ने जो जवाब दिया वो काबिले तारीख़ है
ओमर मुख़तार ने कहा - वो जानवर हैं लेकिन हम नहीं
ये वाक्य क्रांतिकारियों की दिशा बताता है कि हम जानवर नही जो खून बहाते फिरें हम क्रांतिकारी है हम खुद के अस्तित्व को बचाने के लिए लड़ रहे हैं। हमने हथियार आत्मरक्षा में उठाया है, क्योंकि दुश्मन भी हथियार से लैस है और वहशी जानवर बना हुआ है। ये पूरे विश्व के क्रांतिकारियों की दिशा है।
सन 1929 में इटली जब लीबिया पर अपना कब्ज़ा करने की लगातार कोशिश कर रहा था तब लीबिया के बागियों का सरदार ओमर मुख़्तार इटली की सेना को नाकों तले चने चबवा रहा था। मुसोलिनी को एक ही साल में चार जनरल बदलने पड़े। अंत में हार मान कर मुसोलिनी को अपने सबसे क्रूर सिपाही जनरल ग्राज़ानी को लीबिया भेजना पड़ा। ओमर मुख़्तार और उसके सिपाहियों ने जनरल ग्राज़ानी को भी बेहद परेशान कर दिया।
जनरल ग्राज़ानी की तोपों और आधुनिक हथियारों से लैस सेना को घोड़े पर सवार उमर मुख़्तार व उनके साथी खदेड़ देते। वे दिन में लीबिया के शहरों पर कब्ज़ा करते और रात होते-होते ओमर मुख्तार उन शहरों को आज़ाद करवा देता।
ओमर मुख़्तार इटली की सेना पर लगातार हावी पड़ रहा था और नए जनरल की गले ही हड्डी बन चुका था। अंततः जनरल ग्राज़ानी ने एक चाल चली। उसने अपने एक सिपाही को उमर मुख्तार से लीबिया में अमन कायम करने और समझौता करने के लिए बात करने को भेजा।
उमर मुख्तार और जनरल की तरफ से भेजे गए सिपाही की बात होती है. उमर अपनी मांगे सिपाही के सामने रखते हैं. सिपाही चुपचाप उन्हें अपनी डायरी में नोट करता जाता.
सारी मांगे नोट करने के बाद सिपाही उमर मुख्तार को बताता है कि ये सारी मांगे इटली भेजी जाएंगी और मुसोलिनी के सामने पेश की जाएंगी। इटली से जवाब वापस आते ही आपको सूचित कर दिया जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया में समय लगेगा जिसके चलते ओमर मुख़्तार को इंतज़ार करने को कहा गया।
उमर मुख्तार इंतज़ार करते हैं। इटली की सेना पर वे अपने सारे हमले रोक देते हैं। मगर इटली से जवाब आने की बजाए आते है? खतरनाक हथियार, बम और टैंक - जिससे शहर के शहर तबाह किए जा सकें। समय समझौते के लिए नहीं हथियार मंगाने के लिए माँगा गया था। कपटी ग्राज़ानी अपनी चाल में सफल होते हैं। नए हथियारों से लीबिया के कई शहर पूरी तरह से तबाह कर दिए जाते हैं।
ओमर मुख्तार सिर्फ लड़ना जानता है दिमाग चलाना नहीं
नाजी कर्नल एक जगह कहता है कि आज ओमर मुखतार को मार गिराएंगे। पहले पुल कब्जे में लेंगे टैंक, मशीनगन से हमला करेंगे। दूसरा अफसर कहता है कि मैं हैरान हूं कि बागियों ने पुल क्यों नही उड़ाया।
कर्नल बोलता है कि ओमर मुख्तार सिर्फ लड़ना जानता है दिमाग चलाना नही जानता है। वो आप लोगो की तरह कोई मिलेट्री स्कूल में नही गया था। सभी हंसते है।
ये ही सेना की बेवकूफी उन सब को मौत के मुँह में धकेल देती है क्योकि ओमर का जो गुरिल्ला वार का अनुभव था वो बड़ी से बड़ी सेना को भी घुटने पर ले आये।
मैदान-ए-जंग में ओमर मुख़्तार दो साल तक टिके रहे औऱ इटली की फ़ौज के साथ हुई एक झड़प में घायल हुए।
मैं अपने फांसी लगाने वाले से ज़्यादा जीऊंगा
उमर मुख़्तार को 11 सितम्बर 1931 को जनरल ग्राज़ानी की फ़ौज ने गिरफ़्तार कर लिया। 15 सितम्बर 1931 को हाथों में, पैरों में, गले में हथकड़ी जकड़ उमर मुख़्तार को जनरल ग्राज़ानी के सामने पेश किया गया। 73 साल के इस महान बुजर्ग योद्धा से जनरल ग्राज़ानी ने कहा "तुम अपने लोगों को हथियार डालने को कहो"।
ठीक पीर अली ख़ान की तरह इसका जवाब ओमर मुख़्तार ने बड़ी बहादुरी से दिया और कहा "हम हथियार नही डालेंगे, हम जीतेंगे या मरेंगे और ये जंग जारी रहेगी। तुम्हें हमारी अगली पीढ़ी से लड़ना होगा औऱ उसके बाद अगली से...
और जहां तक मेरा सवाल है मैं अपने फांसी लगाने वाले से ज़्यादा जीऊंगा ..
और उमर मुख़्तार की गिरफ़्तारी से जंग नहीं रुकने वाली ...
जनरल ग्राज़ानी ने फिर पुछा "तुम मुझसे अपने जान की भीख क्यों नही मांगते? शायद मै ये दे दूं...
उमर मुख़्तार ने कहा "मैने तुमसे ज़िन्दगी की कोई भीख ऩही मांगी। दुनिया वालों से ये न कह देना कि तुमसे इस कमरे की तनहाई में मैंने ज़िन्दगी की भीख मांगी।"
इसके बाद उमर मुख़्तार उठे और ख़ामोशी के साथ कमरे से बाहर निकल गए।
इसके बाद 16 सितम्बर सन 1931 को इटली के साम्राज्यवाद के विरुद्ध लीबिया राष्ट्र के संघर्ष के नेता ओमर मुख़्तार को उनके ही लोगो के सामने फांसी दे दी गयी। जिस निडरता से उमर मुखतार फांसी के फंदे की तरफ बढ़ता है। ये सिर्फ एक मजबूत वैचारिकता से लैस कोई महान योद्धा ही कर सकता है। ओमर की फांसी के बाद लीबिया के आम जनमानस में जो रोष और आंखों में पानी था वैसा ही ठीक हाल नाजी सेना के बहुत से सैनिकों और अफसरों का भी था।
नाजी सेना को लगा था कि ओमर मुखतार को मारने से युद्ध रुक जाएगा। लेकिन ओमर तो पहले ही कहते थे कि ये युद्ध हमारी आजादी तक चलेगा, मेरे मरने से ये युद्ध बन्द होने वाला नही है, मेरे बाद मेरी आने वाली पीढ़िया ये लड़ाई लड़ेगी उसके बाद उससे अगली पीढ़ी लड़ेगी।
आज पूरे विश्व मे ये ही तो लड़ाई चल रही है। उमर मुख्तार के बाद की दूसरी-तीसरी पीढ़ियां लीबिया, सीरिया, फिलस्तीन से लेकर पूरे विश्व में साम्राज्यवाद की लूट के खिलाफ मजबूती से लड़ रही हैं।
भारत मे भी साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने का अपना लम्बा इतिहास रहा है। उसी इतिहास को आगे बढ़ाते हुए भारत मे भी तेभागा, तेलंगाना, नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ गुरिल्ला वार मजबूती से जड़े जमाये है, जिसका साम्राज्यवाद और उसकी पिट्ठू लुटेरी सत्ता के खिलाफ लड़ने का एक शानदार इतिहास है। भारत में भी कितने ही महान योद्धाओं ने जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए अपनी शहादतें दी हैं। भारत में भी कितने ही क्रांतिकारी योद्धाओं को धोखे से बातचीत के लिए बुलाकर सत्ता ने निर्ममता से उनका कत्ल किया है।
ये युद्ध जारी है और रहेगा तब तक जब तक इंसान का इंसान शोषण बन्द नही करता, जब तक ये साम्राज्यवादी लूट बन्द नही होती जब तक ये लड़ाई जारी रहेगी।
उदय चे UDay Che
(लेख के बीच का कुछ हिस्सा FB से भी लिया गया है।)
Umar al-Mukhṫār Muḥammad bin Farḥāṫ al-Manifī ( Omar Al-Mukhtar )known among the Colonial Italians as Matari of the Mnifa, was the leader of Native Resistance in Eastern Libya under the Senussids, against the Italian colonization of Libya. Omar was also a prominent figure of the Senussi Movement, and he is considered the National Hero of Libya and a symbol of resistance in the Berber world and Islamic Worlds.