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सहिष्णुता अरब वसंत का वज्रनिर्घोष!
बाकीर आपरेशन ब्लू स्टार! या बंगाल की राजनीति की वैदिकी हिंसा, जो हिंसा न भवति।
#Controversy Promo के धर्म अधर्म अपकर्म में काहे को फंसे हो भइया, सबसे बड़ा रुपइया
सहिष्णुता अबाध पूंजी प्रवाह की। सहिष्णुता एफडीआई, सहिष्णुता बेरोजगारी, भुखमरी मंहगाई.मंहगाई की अखंड बा। संपूर्ण निजीकरण, संपूर्ण विनिवेश की सहिष्णुता ह। जहरीला हवा पानी, सहिष्णुता खुली लूट, बेदखली की। फिरभी असहिष्णुता पर बवंडर?काहे भइया?
#ম্লেচ্ছ ব্যাটা #PK# AAmir Khan# পাদিও না সহিষ্ণতার অখন্ড স্বর্গে, বিশুদ্ধ পন্জিকার নির্ঘন্ট লঙ্ঘিবে কোন হালার পো হালা!
बोलते ही आंधियां और समुंदर में हलाहल, हम नहीं हैं शिव कि पी सकें यह जहर!
जैसे बंगाल में अनंत #राजनीतिकहिंसा #वंश वर्चस्व के लिए, उसी तरह बाकीर #देश #महाभारत। बूझो तो बूझो वरना आपस में कर लो #नूराकुश्ती। कर्मफल में मौत जिसकी मरेगा वहींच, जो मारेगा वहीं तो #देवता और #ईश्वर है, बाकीर #महिषासुर #वध्य!
पलाश विश्वास
सबसे पहिले हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी का यक्ष प्रश्नः
TaraChandra Tripathi
शिकायत व्यक्तिगत रूप से न मोदी से है न भा.ज.पा से. शिकायत केवल इस बात से है कि इतने प्रभावशाली पद होने के बावजूद हमारे मोदी जी देश के सौहार्द को बिगाड़्ने में लगे अपने दल के नौताड़ों को फटकार क्यों नहीं लगा रहे हैं?
दरअसल आज सुबो-सुबो मैंने तय किया था कि विशुद्ध हिंदुत्व के इस राष्ट्रीय मुहूर्त पर बंगाल के सहिष्णु और धर्मनिरपेक्ष, निरंकुश वंशवर्चस्व के अनंत केसरिया भावभूमि को पूर्वी बंगाल की भाषा में सोबोधित करूं। लिख भी दिया होता लेकिन कंप्यूटर पर बैठने से पहिले सविता बाबू का अंलघ्य आदेश कि मुदिखाना जाओ, और जितने मेंढक हों वहां छलांगा मार रहे शून्य मुद्रास्फीति और चढ़ते शेयर बाजार की घनघोर विकास दर के मुकाबले, पकड कै ले आओ।
सिर्फ हेडिंगो लगा रहा हूं ताकि सनद रहे। क्योंकि मूदिखाना से लौटकर गुरुजी के इस यक्ष प्रश्न के चक्रव्यूह में फंसा हूं।
चक्रव्यूह में फंसने की हालत में राष्ट्रभाषा हिंदी का अनुशीलन बचाव खातिरे रामवाण क्योंकि बजरंगी हिंदी के अलावा ज्ञान विज्ञान की अंग्रेजी या देशज बहुजन समाज की भाखा समझे नाहीं और अपनी जान माल की खातिर उन्हें आत्मरक्षा के लिए बताना जरूरी है कि हम हर्गिज उनके हिंदू धर्म के खिलाफ नइखे अछूत शरणार्थी, विभाजन के शिकार हूं, फिर भी हमउ हिंदी बानी। हिंदू जो होवै, कमसकम हिंदू को तो नहीं मारै. चाहे म्लेच्छ मारे हजार लाख।
मौका लगेगा तो तान विस्तार करुंगा रेयाज के बाद। स्थाई भाव एकच। एकच रक्त। भाखा हर दु कदम पर बदले हो जइसन हर चेहरा का धर्म अलग जाति अलग भाखा अलग सूटबूट मौगा मौगी अलग। देश एकच। रक्त एकच। जिनेटिक्स वही भारत तीर्थ का।
गनीमत है कि मुहल्ले में जाने का आदेश हुआ है।
फिलहाल बंगाल में मूसलाधार राजनीतिक हिंसा मध्ये सत्ता समीकरण उबल रहे हैं और यहींच हम सहिष्णुता, धर्मनिरपेक्षता, प्रगतिशीलता और धर्म जाति के गृहयुद्ध का जायजा ले रहे हैं और आतंक के खिलाफ घोषित युद्ध की तपिश भी खूब महसूस रहे हैं।
इस्लामोफोबिया बहार है। खाड़ी युद्ध से पहले यह आमदनी।
वैसे बंगाल में सुधार आंदोलन के तमामो मसीहा ब्रह्मसमाजी थे, जो हिंदुत्व के लिए म्लेच्छ थे और तब भी समझा यहा जा रहा था कि नवजागरण में बहुविवाह निषेध, बाल विवाह निषेध, सती प्रथा निषेध, विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा वगैरह-वगैरह अंग्रेजी हुकूमत की गहरी साजिश है हिंदू धर्म के सर्वनाश के लिए।
इसीलिए ब्रहम समाज में शामिल पीराली ब्राह्मण रवींद्र अछूत माने गये और मंदिरों में उनका प्रवेश निषिद्ध रहा।
दलित आत्मकथा गीतांजलि।
जिसमें फिर भारत का जिनेटिक्स, भारत तीर्थ।
इन मसीहा वृंद में दो का अंत बहुत बुरा हुआ।
पहिले राजा राममोहन राय, जो संस्कृति के अलावा हिंदी उर्दू फारसी और अंग्रेजी के विद्वान तो थे ही, साथ ही अपनी दलीलों के लिए जगत प्रसिद्ध थे। उन्हें दिल्ली के बादशाह ने लंदन में महारानी के दरबार में अपना वकील बनाकर भेजा।
लंदन में राजासाहेब का खर्च पानी फटेहाल बादशाहत से उठाया नहीं गया। राम को खलनायक बनाकर रावण और मेघनाथ को महानायक बनाकर मेघनाथ वध महाकाव्य रचने वाले म्लेच्छ माइकेल मधुसूदन दत्त (Michael Madhusudan Dutt) की मदद जिनने की, उन्हीं ईश्वर चंद्र अंत तक राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) की मदद करते रहे। लेकिन राजा विदेश भूमि पर अपने कर्मफल के मारे बीमार असहाय़ अकेले मरे।
देश के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाले पचासेक साल की दहलीज पर भी ग्रांडस्लैम जीतने वाले लिएंडर पेज और हाकी में ओलपिंक गोल्ड जीतने वाले उनके बाप उन्हीं मधुसूदन के वंशज हैं, जिनकी जड़ें फिर वहीं मेघनाद वध काव्य (Meghnad Badh Kavya) है।
अब आशंका है कि उनके खिलाफ भी जिहाद होगा। टीपू सुल्तान के बाद किसका किसका नंबर है, कौन जाने। सानिया मिर्जा भी देश के लिए खेलती हैं तो वे मुसलमान की बेटी और बहू हैं और इसलिए हिंदुत्व के लिए खतरनाक। वैसे ही देश के लिए खेलने वाले ईसाई मधुसूदन के वंशज ईसाई हैं। तो राम ही जाने कि किसकी क्या मर्जी।
कौन जाने कि अगला नंबर किसका है। गान्ही बुड्ढा 30 जनवरी, 1948 में मार दिये गये।
आउर शास्त्र सम्मत पंचतत्व में विलीन भी हुई रहे।
उन्हें जब रोज-रोज मारने के लिए गोडसे भगवान का अवतार है तो किसी की भी जान माल की खैर नहीं है। यही सहिष्णुता बहार ह।
#Controversy Promo के धर्म अधर्म अपकर्म में काहे को फंसे हो भइया, सबसे बड़ा रुपइया
सहिष्णुता अबाध पूंजी प्रवाह की। सहिष्णुता एफडीआई, सहिष्णुता बेरोजगारी, भुखमरी मंहगाई, मंहगाई की अखंड बा। संपूर्ण निजीकरण, संपूर्ण विनिवेश की सहिष्णुता ह। जहरीला हवा पानी, सहिष्णुता खुली लूट, बेदखली की। फिरभी असहिष्णुता पर बवंडर?काहे भइया?
#ম্লেচ্ছ ব্যাটা #PK# AAmir Khan# পাদিও না সহিষ্ণতার অখন্ড স্বর্গে, বিশুদ্ধ পন্জিকার নির্ঘন্ট লঙ্ঘিবে কোন হালার পো হালা!
बोलते ही आंधियां और समुंदर में हलाहल, हम नहीं हैं शिव कि पी सकें यह जहर!
जैसे बंगाल में अनंत #राजनीतिक हिंसा #वंश वर्चस्व के लिए, उसी तरह बाकीर# देश# महाभारत। बूझो तो बूझो वरना आपस में कर लो #नूरा कुश्ती। कर्मफल में मौत जिसकी मरेगा वहींच, जो मारेगा वहीं तो #देवता और #ईश्वर है, बाकीर #महिषासुर#वध्य!
यहींच भारतवर्ष की मौजूदा सहिष्णुता है और इस देश के लाखों लाख किसानों, मजदूरों, खुदरा कारोबारियों और यहां तक कि अडाणी अंबानी साम्राज्य के लिए भरत बने खड़ाउ इंडिया इंकारपोरेशन, बुड़बक फिक्की, बुड़बक सीआईआई की तरह बेचारे पनसारे, दाभोलकर, कलबर्गी, वगैरह वगैरह ने हो न हो खुदकशी की है, जैसे खुदकशी पर फिलहाल आमिर खान म्लेच्छ आमादा हैं।
वे जिंदा है, मंत्री संतरी के सामने अपने एक्सप्रेस के समारोह में मीडिया के मुखमुखी असहिष्णुता पर बोल रहे हैं तो समझ लीजिये कि सब कुछ ठीकठाक है। कानून का विशुध राज है। मनुस्मृति सुरक्षित शासन, अर्थव्यवस्था और सिनेमा सही सलामत है।
उनके पक्ष विपक्ष में बोलने वाले अपने अपने धंधे के मुताबिको बोल रहे हैं और बालीवुड दोफाड़ हजारों करोड़ का सिनेमाई प्रोमो है।
बाकी संविधान का किसी ने कुछ उखाड़ा नहीं है।
राजकाज बिजनेस फ्रेंडली है या फिर आतंक के खिलाफ युद्ध है।
तुम ससुरे आतंकवादी हो जाओगे और फिर नागरिक मनवाधिकार पर्यावरण पादोगे, यह हिंदूराष्ट्र, हिंदुत्व और भापत के नागरिकों के साथ-साथ अबाध पूंजी, संपूर्ण निजीकरण, संपूर्ण विनिवेश और विकास के खिलाफ गहरी साजिश है।
तुम ससुरे राष्ट्रद्रोही, आतंकवादी, उग्रवादी, माओवादी वगैरह-वगैरह आखेरे महिषासुर। तुम्हारा वध होगा।
इस वध के खिलाफ जो भी बोले, उस पाकिस्तान भेज दिया जायेगा और संत वाणी है कि इसी तरह जनसंख्या घट जायेगी भारत की। खुल्ला खेल। जनसंख्या घटाने का एजंडा, समझे नाहीं बुड़बक ?
खाड़ी युद्ध से पहले और बाद में अरब वसंत का वज्रनिर्घोष है यह इसी तरह जनसंख्या घट जायेगी भारत की। खुल्ला खेल।
जनसंख्या घटाने का एजंडा, समझे नाहीं बुड़बक?
नवजागरण का नेतृत्व करने के लिए ईश्वर चंद्र का भी कोलकाता के हिंदू समाज ने लगातार लगातार विरोध किया।
ईश्वर चंद्र के घर पर तब के बजरंगियों और शिवसैनिकों ने धावा बोला। बबर जंग प्रदर्शन हुई रहे। तबहुं सोशम मीडिया तमामो कीर्तनिया रहे, का का स्वांग रचे।
राह चलते उनकी भी ऐसी की तैसी हुई रही। मीडिया खिलाफो रहे।
यहां तक कि संस्कृत कालेज में विशुद्ध ब्राह्मणों की भर्ती के एकाधिपात्य को तोड़ते हुए जब उनने बहिष्कृत म्लेच्छ समझी जाने वाली एक ब्राह्मण विधवा की संतान को संस्कृत कालेज में दाखिला दिया उसके अध्यक्ष के विशेषाधिकार के तहत तो बवंडर ऐसा हुआ कि पुणे का फिल्म संस्थान जैसा हाल हुआ ईश्वरचंद्र का वहींच हाल रहा क्योंकि जमींदारियों के वारिसान ने तब हिंदू कालेज की स्थापना कर दी ईश्वर चंद्र और राममोहन के नवजागरण के खिलाफ, जो बाद में कोलकाता विश्वविद्यालय बना।
Raja Rammohun Roy and Ishwar Chandra Vidyasagar
राजा राममोहन राय और ईश्वरचंद्र विद्यासागर के पापकर्म की वजह से हिंदुत्व अमोघ जन्मजात रंगभेदी जाति के अभिशाप के बावजूद लोकतांत्रिक और आधुनिक धर्म के रूप में स्थापित हुआ और स्वामी विवेकानंद सीना ठोंककर शिकागो की धर्मसभा में सनातन धर्म की महानता लोगों को समझा पाये।
उन विवेकानंद ने भी समाजिक न्याय के स्वर को हिंदुत्व के दर्शन के भीतर ही भीतर स्वर दिया और सामाजिक न्याय की गुहार लगाते हुए वैदिकी तंत्र मंत्र अनुष्ठान और मूर्ति पूजा के बदले नर को ही नारायण कहा और सामाजिक न्याय की गुहार ज्योतिबा फूले और हरिचांद ठाकुर के तेवर में लगाते हुए, उनने जो कहा कि अगला जमाना शूद्रों को होगा, तो उन्हें भी कर्मफल भोगना पड़ा और किस हाल में उनकी मृत्यु हुई, वह चैतन्य महाप्रभू की मृत्यु और नेताजी के अंतर्धान से कम बड़ी पहेली नहीं है।
बंगाल के अछूतों, बौद्ध धर्म के अनुयायियों को और आदिवासियों को इस्लाम के समानता के आकर्षण से धर्मांतरण की सुनामी से बचाने के लिए जो वैष्णव धर्म का प्रचार प्रसार प्रेम दर्शन के स्थाई भाव से संगीतबद्ध तरीके से जिनने किया, उन चैतन्यमहाप्रभू का पुण्यफल यह हुआ कि वे पुरी के मंदिर में जयजगन्नाथ में समाहित हो गये।
संत तुकाराम का भी यही हाल हुआ और गुरु गोविंद सिंह को हिंदुत्व की रक्षा का जो पुरस्कार मिला, इसका विवरण गुरु ग्रंथ साहेब में देख लें। बाकीर सिख धर्म को हिंदुत्व का रक्षक धर्म कहने वालों ने सिखों के चौदह गुरुओं के किये धरे की जो कीमत चुकायी, वह अस्सी का दशक है।
हम हिंदू उस पुण्यकर्म के लिए वैसे ही शर्मिंदा नहीं है, जैस हम बाबरी विध्वंस, गुजरात नरसंहार और सिखों का नरसंहार हिंदू राष्ट्र के लिए अनिवार्य मानते रहे हैं। गान्ही, कलबुर्गी, पानसारे, दाभोलकर जैसे महिषासुर को जो रोवै, उन्हें दुर्गोत्सव का का हक बनता है। समझे कि नाही?बाकीर आपरेशन ब्लू स्टार!
कमल हसन जो कह रहे थे कि असहिष्णुता भारत विभाजन के समय से है और वह गलत भी नहीं बोल रहे थे। बजरंगी शिवसैनिक हिंदुत्व के रक्षक युग-युग से करते रहे हैं।
जिस मुदिखाना आज सुबह हम तमामो उछलते मेंढकों की खोज में गये रहे, वहां एक वैष्णवी हरे राम हरे कृष्ण का कीर्तन करते हुए भीख मांगने चली आयीं। तो हमारे मूदी बाबू जो प्रकांड मुंहफंट हैं, और जिनकी जुबान पर लगाम उसी तरह नहीं है, जैसे देश में हिंदुत्व के राजकाज चलाने वाले दिल्ली के मूदीबाबू की नहीं है।
मजे की बात है कि हमारे मूदी बाबू कट्टर भाजपाई हैं और उनका पूरा कुनबा भाजपाई है। साथ ही वे दीदी के घनघोर समर्थक हैं। उनका फार्मूला है कि दिल्ली में मूदीखाना सही सलामत रहे कि हेइया हो, धान संभले कि ना संभले, रक्त बीज हो तो भी भला और रक्तनदियां हो तो और भला, लेकिन बंगाल में दीदी का राजकाज जारी रहना चाहिए।
वहींच हमारे मूदी बाबू धड़ाक से बोल दिहिस, राम नाम, कृष्ण नाम का जाप बंद करो! बंद करो यह अखंड जाप!
वहींच हमारे मूदी बाबू धड़ाक से बोल दिहिस, जयश्री राम कहकै भीख काहे मांगते हो?
वहींच हमारे मूदी बाबू धड़ाक से बोल दिहिस, कारोबर करना हो तो सीधे आम कारोबारी की तरह करो, धर्म को काहे फंसाते हैं?
वहींच हमारे मूदी बाबू धड़ाक से बोल दिहिस, सारे आफत की जड ये जयश्री राम है, रावण, मेघनाद, बलि सारे वीरों को मार दिया!
फिर उनका अचूक हथियार, माइकेल का मेघनाद काव्य पढ़ो।
बेचारी वैष्णवी का जवाब देती, बिना भीख लिय़े भाग खड़ी हुई।
नोट्स - Michael Madhusudan Dutt in Hindi
Michael Madhusudan Dutt, or Michael Madhusudan Dutta was a popular 19th-century Bengali poet and dramatist. Michael Madhusudan Dutt was a pioneer of Bengali drama.
His famous work Meghnad Badh Kavya, is a tragic epic. It consists of nine cantos and is exceptional in Bengali literature both in terms of style and content.