नई दिल्ली, 12 जून। दिल्ली प्रदेश नेशनल पैंथर्स पार्टी कार्यालय में पैंथर्स पदाधिकारियों द्वारा अमर शहीद महाभारत रत्न रामप्रसाद ‘बिस्मिल‘ के 123वें जन्मदिन पर पुष्पांजलि दी गई।
राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून, 1897 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ।
बिस्मिल भारत के महान क्रान्तिकारी, अग्रणी स्वतन्त्रता सेनानी व उच्च कोटि के कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार थे। उन्होंने हिन्दुस्तान की आजादी के लिये 19 दिसम्बर, 1927 को गोरखपुर में अश्फाकउल्लाह खां के साथ अपने प्राणों की आहुति दे दी।
11 वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया। उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला उससे उन्होंने हथियार खरीदे और उन हथियारों का उपयोग ब्रिटिश राज का विरोध करने के लिये किया। 11 पुस्तकें ही उनके जीवन काल में प्रकाशित हुईं और ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त की गयीं।
यह भी एक संयोग है कि बिस्मिल को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध की लखनऊ सेण्ट्रल जेल की 11 नम्बर बैरक में रखा गया था। इसी जेल में उनके दल के अन्य साथियों को एक साथ रखकर उन सभी पर ब्रिटिश राज के विरुद्ध साजिश रचने का ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया था।
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित वन्दे मातरम के बाद राम प्रसाद ‘बिस्मिल‘ की अमर रचना सरफरोशी की तमन्ना ही है, जिसे गाते हुए न जाने कितने देशभक्त फाँसी के तख्ते पर झूल गये।
मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे
बाकी न मैं रहूं, न मेरी आरजू रहे!
जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे,
तेरा ही जिक्र यार, तेरी जुस्तजू रहे!
फांसी के तख्ते पर खड़े होकर बिस्मिल ने कहा-
-मैं ब्रिटिश साम्राजय का पतन चाहता हूं-
फिर यह शेर पढ़ा-
अब न अहले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़!
एक मिट जाने की हसरत अब दिले बिस्मिल है!!
इस पुष्पांजलि सभा में उपस्थित राजीव जौली खोसला, अनिल शर्मा, संजय शर्मा, रश्मि दत्त, आदि उपस्थित थे।