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राजस्थान में निकाय प्रमुख के लिए सीधे लड़ने का विकल्प अब भी खुला हुआ है

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hastakshep
02 Nov 2019
राजस्थान में निकाय प्रमुख के लिए सीधे लड़ने का विकल्प अब भी खुला हुआ है

राजस्थान में निकाय प्रमुख के लिए सीधे लड़ने का विकल्प अब भी खुला हुआ है

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Controversy over election process of local body chiefs

जयपुर, 02 नवंबर 2019. निकाय प्रमुखों के चुनाव की प्रक्रिया को लेकर पिछले दिनों जिस प्रकार विवाद हुआ और जिस तरह से उसका पटाक्षेप हुआ, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने यूटर्न लिया है, जबकि हकीकत ये है कि सरकार अब भी अपने स्टैंड पर अब भी कायम है। इसको लेकर जारी अधिसूचना अब भी अस्तित्व में है, सिर्फ स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल की ओर से स्पष्टीकरण जारी हुआ है कि निर्वाचित पार्षदों में से ही निकाय प्रमुख चुना जाएगा, लेकिन विशेष परिस्थिति में बिना चुनाव लड़ा नागरिक भी निकाय प्रमुख के चुनाव में भाग ले सकेगा।

क्या थी निकाय प्रमुखों के चुनाव की अधिसूचना What was the notification for the election of local body heads

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असल में पूर्व में जारी अधिसूचना में जैसे ही यह एक नया प्रावधान रखा गया था कि पार्षद का चुनाव लड़े बिना भी कोई व्यक्ति निकाय प्रमुख का चुनाव लड़ सकेगा, उसका अर्थ ये निकाला गया कि सरकार की मंशा निकाय प्रमुख के पदों पर अनिर्वाचित व्यक्तियों को बैठाने की है और चुने हुए पार्षदों से कोई निकाय प्रमुख नहीं बन पाएगा, जबकि अधिसूचना में ऐसा कहीं नहीं कहा गया है। उसमें केवल अनिर्वाचित व्यक्ति के लिए रास्ता खोला गया है। अर्थ का अनर्थ निकला, इसका प्रमाण ये है कि मीडिया ने भी ऐसे नामों पर चर्चा शुरू कर दी कि कांग्रेस व भाजपा में कौन-कौन बिना चुनाव लड़े निकाय प्रमुख पद के दावेदार होंगे। पार्षद पद के दावेदार भी ये मान बैठे कि उनको तो मौका मिलेगा ही नहीं। इससे एक भ्रम ये भी फैला कि शहर से बाहर का व्यक्ति भी चुनाव लड़ सकेगा, जिसकी सफाई देते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने साफ कह दिया कि ऐसा कैसे हो सकता था, पार्षद ही बगावत कर देते।

कांग्रेस के अंदर से उठी थीं विरोध की आवाजें

यह बात सही है कि इस मुद्दे पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के साथ केबिनेट मंत्री रमेश मीणा व प्रताप सिंह खाचरियावास ने विरोध जताया था कि नई व्यवस्था अलोकतांत्रिक है। कांग्रेस में मतभिन्नता के चलते भाजपा को भी हमला बोलने का मौका मिल गया और उसने आंदोलन की रूपरेखा तक तय कर ली। अंतत: धारीवाल को स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा, जिसमें स्पष्ट किया गया कि आगामी निकाय चुनाव में जनता द्वारा चुने हुए पार्षदों में से ही मेयर-सभापति-अध्यक्ष का निर्वाचन होगा। केवल विशेष परिस्थिति में जब एससी, एसटी, ओबीसी, महिला वर्ग के मेयर-सभापति की आरक्षित सीट के लिए अगर किसी पार्टी विशेष का सदस्य नहीं जीत पाया तो राजनीतिक दल की प्रदेश इकाई को यह अधिकार होगा कि वह आरक्षित वर्ग के नेता को खड़ा कर सकेगी।

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अर्थात निकाय प्रमुख के निर्वाचन को लेकर राज्य सरकार की ओर से 16 अक्टूबर को जारी की गई अधिसूचना में कोई बदलाव नहीं किया गया। मौलिक बदलाव सिर्फ ये है कि पूर्व में सरकार ने निकाय प्रमुख का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से करने की घोषणा की थी, जिसे बदल कर अप्रत्यक्ष प्रणाली लागू की गई है। उसको लेकर धारीवाल का कहना है कि ऐसा इस कारण किया जा रहा है, क्योंकि भाजपा ने राष्ट्रवाद के नाम पर घृणा, हिंसा व भय का माहौल बनाया है, जबकि कांग्रेस सभी जाति व समुदाय में सद्भाव व भाईचारा बनाए रखना चाहती है।

धारीवाल ने एक तर्क और दिया है, जो कि दमदार है।

धारीवाल ने कहा है कि सरकार ने तो उलटे अच्छा कार्य किया है, वो यह कि उसने राजनीतिक दलों को यह अधिकार दिया है कि विशेष परिस्थिति में अगर जब एससी, एसटी, ओबीसी, महिला वर्ग के मेयर-सभापति की आरक्षित सीट के लिए अगर किसी पार्टी विशेष का सदस्य नहीं जीत पाता है तो दूसरी पार्टी के पार्षदों को तोड़ऩे के लिए खरीद फरोख्त करने की बजाय अपनी ही पार्टी के आरक्षित वर्ग के किसी व्यक्ति को चुनाव लड़ा दे और जनहित के काम बिना बाधा के कर सके।

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अब जरा इस मसले की बारीकी में जाएं।

यदि ये मान लिया जाए कि सरकार अनिर्वाचित को निकाय प्रमुख के रूप में थोपने की कोशिश में थी तो वह कोरी कल्पना है। वो इस प्रकार कि निकाय प्रमुख के चुनाव के दौरान यदि अनिर्वाचित व्यक्ति फार्म भरता तो निर्वाचित पार्षद ही बगावत कर देते।  वे अपनी ओर भी किसी पार्षद को चुनाव लड़वा देते, क्योंकि पार्षदों के चुनाव लड़ने पर रोक थोड़े ही थी।

एक बात और गौर करने लायक है, वो यह कि निकाय प्रमुख के चुनाव में जो नया प्रावधान लाया गया, वो कोई बिलकुल नया नहीं है। ऐसा तो प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री अथवा मंत्री पद को लेकर भी है। निर्वाचित सांसद व विधायक उनका निर्वाचन कर लेते हैं और बाद में छह माह में उन्हें किसी सांसद व विधायक से सीट खाली करवा कर चुनाव जीतना होता है। जहां तक निकाय प्रमुख का सवाल है, शायद उसमें इस स्थिति को स्पष्ट नहीं किया गया है, जो कि किया जाना चाहिए।

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कुल मिला कर ताजा स्थिति ये है कि पार्षद ही निकाय प्रमुख चुनेंगे, लेकिन विशेष परिस्थिति में अनिर्वाचित व्यक्ति के लिए रास्ता खुला रखा गया है। केवल सामंजस्य की कमी के चलते असमंजस उत्पन्न हुआ, था जिसका निस्तारण हो गया है।

जैसा कि नेरेटिव बना है कि सरकार ने विरोध के चलते यू टर्न लिया है, वैसा कुछ भी नहीं है। अधिसूचना अब भी कायम है।

  • तेजवानी गिरधर

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