जातिवाद और साम्प्रदायिक चिंतन में कुछ अद्भुत साम्य
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आलोक वाजपेयी
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1. जातिवाद और सांप्रदायिक चिंतन दोनों को औपनिवेशिक इतिहास लेखन के द्वारा खाद पानी दी गई।
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2. जैसे साम्प्रदायिक चिंतन में सारी दुनिया की गतिविधियों, घटनाओं का केंद्र धर्म (साम्प्रदायिक व्याख्या वाला) मान लिया जाता है, उसी तरह जातिवादी चिंतन Racism में हर बात को जाति के चश्मे से समझने की कोशिश की जाती है।
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3. साम्प्रदायिक सोच में अपनी बदहाली का सारा ठीकरा दूसरे धर्म वालों पर डाला जाता है, वैसे ही जातिवादी तर्क में ब्राह्मण जाति पर सारी बुराइयों का जिम्मा डाला जाता है।
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4. दोनों सोचों में मनुष्य की जाति धर्म से इतर जा सकने की क्षमता या गुंजाइश को नकार दिया जाता है और माना जाता है कि अगर कोई ऐसा कर रहा तो ये उसकी साजिश है, समाज पर उसी जाति धर्म का कब्जा रखने के लिए।
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5 दोनों तरह की सोच वाले अक्सर व्यंग्यात्मक उपहास, व्यक्तिगत नामकरण, भड़काऊ और तिरस्कारपूर्ण अहंकार की तर्ज पर बोलते हैं।
6 ये दोनों सोचें जिस धर्म या बिरादरी की वकालत करती हैं उसी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं।
7 दोनों सोचों के फैलने से कुछ ठेकेदार उभरते हैं जो उस धर्म या जाति के spokesperson बनने की चेष्टा करते हैं।
(आलोक वाजपेयी इतिहासकार हैं)
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