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27 सितम्बर - महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय की पुण्य तिथि पर विशेष 27 September - Special article on the death anniversary of the great social reformer brahmo samaj founder, Raja Rammohan Roy
आज से लगभग 247 वर्ष पूर्व एक ऐसी महान तथा साहसिक हस्ती का जन्म हुआ था, जिन्होंने ईस्ट इंडिया कम्पनी की नौकरी छोड़कर देश को सामाजिक कुरीतियों से मुक्त कराने के लिए खुद को पूरी तरह झोंक दिया। इस महान हस्ती ने आजादी से पहले भारतीय समाज को सती प्रथा, बाल विवाह, बहुविवाह, जाति-प्रथा, अशिक्षा, पुरोहितवाद, पाखण्ड आदि से निजात दिलाई थी।
हम बात कर रहे हैं ‘राजा राममोहन राय’ की जिन्हें दुनिया ‘आधुनिक भारत के जनक’’ के नाम से जानती है। भारत में फैली सामाजिक तथा धार्मिक कुरीतियों (Social and religious evils spread in India) में अपने अटूट विश्वास तथा साहस के बलबूते सुधार लाने वाले राजा राममोहन राय का जन्म (Birth of Raja Ram Mohan Roy) 22 मई 1772 को बंगाल में एक समृद्ध ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
15 वर्ष की उम्र से उन्हें बंगाली, संस्कृत, अरबी तथा फारसी का ज्ञान हो गया था। उनका सारा जीवन दयनीय स्थिति में जी रही महिलाओं के हक के लिए संघर्ष करते हुए बीता। महिलाओं के प्रति उनके हृदय में एक अलग ही जगह थी।
राजा राममोहन राय को महिलाओं के प्रति दर्द उस वक्त एहसास हुआ जब उन्होंने अपनी ही भाभी के सती होने की घटना सुनी। राममोहन जी ने कभी यह नहीं सोचा था कि जिस सती प्रथा का विरोध वह कर रहे हैं और जिसे समाज से मिटाना चाहते हैं, उनकी भाभी भी उसी का शिकार हो जाएंगी।
राजा राममोहन राय किसी काम के लिए शहर से बाहर गए हुए थे और इसी बीच उनके बड़े भाई श्री जगमोहन की मृत्यु हो गई। उसके बाद धर्म के ठेकेदारों ने सती प्रथा के नाम पर उनकी भाभी को जिंदा जला दिया।
इसके बाद अत्यधिक द्रवित होकर राममोहन राय जी ने सती प्रथा के खिलाफ अपने आंदोलन को तेज कर दिया। उन्होंने ठान लिया था कि अब ऐसा किसी महिला के साथ नहीं होने देंगे। उन्होंने सती प्रथा के खिलाफ तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक की मदद से साल 1929 में सती प्रथा के खिलाफ कानून (Law against sati) बनवाया।
राममोहन राय जी मूर्ति पूजा के विरोधी भी थे। वह एक परम पिता परमात्मा के अस्तित्व पर विश्वास करते थे। वह प्रत्येक रीति-रिवाज तथा धार्मिक परम्परा को विवेकपूर्वक विचार करने के बाद ही उसे अपनाते थे। वह एक निडर तथा स्वतंत्र विचारक थे। वह ईश्वर एक है इस विचारधारा पर विश्वास करते थे।
जिज्ञासु प्रवृत्ति के चलते उन्होंने विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों तथा सम्यताओं को समझने के लिए 12 भाषाएं हिन्दी, बांग्ला, संस्कृत, हीवरू, अंग्रेजी, फ्रान्स, अरबी, फारसी, जर्मनी आदि का ज्ञान प्राप्त किया। नेपाल तथा तिब्बत में प्रवास के दौरान उन्होंने बौद्ध धर्म का ज्ञान अर्जित किया।
राममोहन जी को आधुनिक भारत का जनक, अग्रदूत, अतीत एवं भविष्य के बीच सेतु, समाज सुधारक, नव प्रयास का तारा आदि सम्मानजनक उपाधियों से पुकारा जाता था। आपने वेद, गीता, पुराण, कुरान, बाईबिल आदि विभिन्न धर्मों की किताबों पढ़ डाली थी।
कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर के दादा महर्षि द्वारका नाथ टैगोर तथा पिता देवेन्द्रनाथ टैगौर के सहयोग से उन्होंने ब्रह्म समाज को आगे बढ़ाया।
Teachings of Raja Rammohan Roy
राजा राममोहन राय की शिक्षाएं समानता तथा विश्व बन्धुत्व की भावना पर आधारित थी। जीवन को नये-नये विचारों से बेहतर बनाने हेतु प्रत्येक मनुष्य को भरसक प्रयास करना चाहिए।
Objectives of brahmo samaj
ब्रह्म समाज के सिद्धान्तों में कोई जटिलता नहीं थी। उनके प्रमुख सिद्धान्त (Principles of Brahmo Samaj) इस प्रकार हैं –
- परमात्मा कभी जन्म नहीं लेता।
- वह सम्पूर्ण गुणों का भंडार है। आत्मा की शुद्धता से शक्ति लेना चाहिए।
- परमात्मा प्रार्थना सुनता तथा स्वीकार करता है।
- सभी जाति के मनुष्यों को ईश्वर स्तुति का अधिकार प्राप्त है।
- पूजा बाहरी कर्मकाण्डों से नहीं वरन् आत्मा की शुद्धता से होती है।
- पाप कर्म का त्याग करना तथा उसके लिए प्रायश्चित करना मोक्ष का साधन है आदि-आदि।
Contribution of brahmo samaj to social reform
ब्रह्म समाज की स्थापना से अज्ञान के अन्धकार में डूबे भारतीय समाज में नवप्रभात का आगमन हुआ। आपने प्रायश्चित को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया जिसका तात्पर्य यह था कि मनुष्य पाप करने में सहज रूप में प्रवृत्त हो जाता है, इसलिए उसे सामाजिक कठोर दंड न देकर उसे फिर से अच्छा जीवन व्यतीत करने का अवसर देना चाहिये।
ब्रह्म समाज ने एक प्रकार से हिन्दुओं में धार्मिक एवं सामाजिक क्रान्ति का सूत्रपात किया। वह कहते थे कि हमारे प्रत्येक कार्य ही रोजाना ईश्वर की सुन्दर प्रार्थना बननी चाहिए।
उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनों क्षेत्रों को गति प्रदान की।
अप्रैल 1822 में राजा राममोहन राय ने फारसी भाषा में एक साप्ताहिक अखबार ‘मिरात-उल-अखबार’ नाम से शुरू किया, जो भारत में पहला फारसी अखबार था। राजा राममोहन राय ने समाचार पत्रों की स्वतंत्रता के लिए भी कड़ा संघर्ष किया था। उन्होंने स्वयं एक बंगाली पत्रिका ‘सम्वाद-कौमुदी’ आरम्भ की और उसका सम्पादन भी किया। यह पत्रिका भारतीयों द्वारा सम्पादित सबसे पुरानी पत्रिकाओं में से थी।
उन्होंने 1833 के समाचार पत्र नियमों के विरूद्ध प्रबल आन्दोलन चलाया। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय को एक स्मृति-पत्र दिया, जिसमें उन्होंने समाचार पत्रों की स्वतंत्रता के लाभों पर अपने विचार प्रकट किए थे। समाचार पत्रों की स्वतंत्रता के लिए उनके द्वारा चलाये गये आन्दोलन के द्वारा ही 1835 में समाचार पत्रों की आजादी के लिए मार्ग बना।
राममोहन जी अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजाद कराना भी चाहते थे। वो चाहते थे कि देश के नागरिक भी उसकी कीमत पहचानें। आधुनिक शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने बड़े काम किए और कलकत्ता का हिंदू कालेज. एंग्लो-हिंदू स्कूल और वेदांत कालेज खड़ा करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी।
Examine the role of brahmo samaj in the social reform movement
राजा राममोहन राय आधुनिक शिक्षा के समर्थक थे तथा उन्होंने गणित एवं विज्ञान पर अनेक लेख तथा पुस्तकें लिखीं। हिन्दी के प्रति भी उनका रूझान था। आपने अंग्रेजी, विज्ञान, पश्चिमी चिकित्सा और प्रौद्योगिकी के अध्ययन की वकालत की। 17 अक्टूबर, 1817 (हिंदू कालेज की स्थापना का वर्ष) में पैदा हुए शिक्षाविद् सर सैयद अहमद खान ने 1875 में राजा राममोहन राय के समान विचारों और उद्देश्यों के साथ मुस्लिम स्कूल की स्थापना की थी। वर्तमान में इसे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है।
राजा राममोहन जी मुगल सम्राट अकबर द्वितीय के राजदूत के तौर पर इंग्लैंड गये, उनकी पेंशन व भत्तों का अनुरोध करने के लिये। 1831 से 1834 तक अपने इंग्लैंड प्रवास काल में राममोहन जी ने ब्रिटिश भारत की प्राशासनिक पद्धति में सुधार के लिए आन्दोलन किया। ब्रिटिश संसद द्वारा भारतीय मामलों पर परामर्श लिए जाने वाले वे प्रथम भारतीय थे। हाउस आफ कामन्स की प्रवर समिति के समक्ष अपना साक्ष्य देते हुए उन्होंने भारतीय शासन की प्रायः सभी शाखाओं के सम्बंध में अपने सुझाव दिये।
Political views of Raja Rammohan Roy
राजा राममोहन राय के राजनीतिक विचार बेकन, ह्यूम,बैंथम, ब्लैकस्टोन और मान्टेस्क्यू जैसे यूरोपीय दार्शनिकों से प्रभावित थे। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय विवादों के शान्तिपूर्वक निबटारे के सम्बंध में कांग्रेस के माध्यम से सुझाव प्रस्तुत किया, जिसमें सम्बंधित देशों की संसदों से सदस्य लिए जाने का निश्चय हुआ।
Samadhi of Raja Rammohan Roy
इंग्लैण्ड में ही 27 सितंबर, 1833 को उनका निधन हो गया। राममोहन जी के मृत शरीर को इंग्लैण्ड में ही दफना दिया गया। ब्रिटेन के ब्रिस्टल नगर के आरनोस वेल कब्रिस्तान में राजा राममोहन राय की समाधि है। ब्रिस्टल नगर में एक प्रमुख स्थान पर चमकीले काले पत्थर से बनी राजा राममोहन राय की लगभग दो मंजिला ऊँचाई की एक प्रतिमा भी स्थापित है, जिसमें वह पुस्तक हाथ में पकड़े खड़े हैं। यह प्रतिमा मानव जाति को संदेश दे रही है कि शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे विश्व को बदला जा सकता है।
प्रदीप कुमार सिंह,
एल्डिको, रायबरेली रोड,
लखनऊ