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धर्म का मानवता से और आतंक का वास्ता राजनीति से है

धर्म का मानवता से और आतंक का वास्ता राजनीति से है

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दिनांक 13 जुलाई 2011 को मुंबई में हुए आतंकी बम विस्फोटों के बाद से हमारे देश में घृणा फैलाने व समाज को बांटने वाली ताकतें एक बार फिर अपना सिर उठा रही हैं। धार्मिक राष्ट्रवाद के पैरोकार अपना पुराना राग एक बार फिर अलापने लगे हैं। वे धर्म, विशेषकर इस्लाम और मुसलमानों, को आतंकवाद से जोड़ रहे हैं और चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे हैं कि आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए हिन्दुओं को एक होना होगा, हिन्दू पार्टी को समर्थन देना होगा, मुसलमानों को नागरिकता से वंचित करना होगा और भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना होगा (सुब्रमण्यम स्वामी, डीएनए, 16 जुलाई 2011)।

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स्वामी का कहना है कि आतंकवाद, दरअसल, हिन्दू धर्म पर इस्लामिक हमला है और इस्लाम, भारत पर काबिज होना चाहता है। अतः यह ज़रूरी है कि आम हिन्दुओं की मानसिकता हिन्दूवादी बनाई जाए, अयोध्या व वाराणसी में भव्य मंदिरों का निर्माण हो,  संविधान के अनुच्छेद  370 को रद्द किया जाए और हिन्दुओं के दूसरे धर्मों को अपनाने पर प्रतिबंध हो परंतु हिन्दू धर्म अपनाने के इच्छुक गैर-हिन्दुओं पर कोई रोक न हो। भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाया जाना ज़रूरी है और उतना ही जरूरी है मुसलमानों को मताधिकार से वंचित किया जाना।

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“इस्लामिक आतंकवाद“ शब्द को किसने गढ़ा?

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who coined the term islamic terrorism

Who coined the term "Islamic terrorism"?

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यह लेख मूलतः आरएसएस के एजेन्डे को ही प्रतिबिंबित करता है यद्यपि इसकी भाषा अत्यंत कटु व आक्रामक है। अपने गठन से लेकर आज तक आरएसएस ने देश में केवल और केवल घृणा फैलाई है। लगभग पिछले एक सौ सालों से हिन्दू धर्म, संघ की राजनैतिक विचारधारा का मूलाधार रहा है। आरएसएस को अपने इस अभियान में अमरीकी दुष्प्रचार से भी मदद मिल रही है। 9/11 के बाद से अमरीका ने एक नए शब्द “इस्लामिक आतंकवाद“ को गढ़ा और पूरी दुनिया में मुसलमानों और इस्लाम को बदनाम करने का जबरदस्त अभियान चलाया।

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आतंकवाद कितना पुराना है ?

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आतंकवाद सैकड़ों साल पुराना है परंतु अल्-कायदा के अस्तित्व में आने के बाद से यह वैश्विक स्तर पर चर्चा और बहस का विषय बन गया है। अल्-कायदा और तालिबान के लड़ाकों को अमरीका द्वारा स्थापित किए गए मदरसों में  प्रशिक्षण मिला। पिछली सदी के आखिरी तीन दशकों में,  पश्चिम एशिया के तेल संसाधनों पर कब्जा, अमेरिकी सामरिक रणनीति का महत्वपूर्ण अंग रहा है। अमरीकी सरकार ने पश्चिम एशिया के देशों’ पर हमले करने के लिए कई बहाने गढ़े। सच तो यह है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमरीका ने इजराईल के निर्माण के बीज बोए ही इसलिए थे ताकि पश्चिम एशिया पर अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए उसे इस क्षेत्र में एक वफादार पिट्ठू उपलब्ध रहे। पश्चिम एशिया में मुसलमानों का बहुमत है। इन देशों में से कुछ के तानाशाहों और शेखों ने अमरीका से हाथ मिला लिया। कैसी विडंबना है कि दुनिया के “सबसे बड़े प्रजातंत्रों में से एक“ के दोस्त, पश्चिम एशिया और दुनिया के अन्य हिस्सों पर राज कर रहे निर्दयी तानाशाह हैं।

अमरीका हमेशा से ऐसे मौकों की तलाश में रहा जिनका इस्तेमाल वह दुनिया के विभिन्न देशों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए कर सके। तेल-उत्पादक क्षेत्र में अपनी पैठ जमाने के लिए ही अमरीका ने ईरान की प्रजातांत्रिक मोसाडिक सरकार का तख्ता पलटा।

मोसाडिक सरकार, तेल के कुओं का राष्ट्रीयकरण करना चाह रही थी और इससे अमरीका और इंग्लैंड की तेल कंपनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ता। इसके कुछ वर्षों बाद, सोवियत सेनाओं ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया।

इस्लाम में काफिर का अर्थ और जिहाद का अर्थ

रूस के विरूद्ध युद्ध में झोंकने के लिए जुनूनी मुस्लिम युवकों की जरूरत थी और इसके लिए पाकिस्तान में मदरसे स्थापित किए गए। इन मदरसों में मुस्लिम युवकों के दिमाग में यह भरा गया कि हर गैर-मुस्लिम काफिर है और काफिरों को मारना जेहाद है। जबकि सच यह है कि इस्लाम में काफिर का अर्थ होता है सच को छिपाने वाला और अपनी पूरी ताकत से किसी लक्ष्य को पाने का यत्न, जेहाद कहलाता है।

सैम्युल हंटिंगटन के “सभ्यताओं का टकराव“ के सिद्धांत से इस्लाम को नुकसान

इसके साथ-साथ सैम्युल हंटिंगटन के “सभ्यताओं का टकराव“ के सिद्धांत का जमकर प्रचार किया गया। इस सिद्धांत के अनुसार, सोवियत संघ के पतन के बाद, हमारी दुनिया में टकराव कम्युनिस्ट गुट व अमरीकी गुट के बीच नहीं वरन् पिछड़ी हुई इस्लामिक सभ्यता और उन्नत पश्चिमी सभ्यता के बीच होगा।

इस सिद्धांत ने इस्लाम की छवि को गहरा आघात पहुंचाया। इस्लाम को एक पिछड़े हुए धर्म के रूप में देखा जाने लगा जिसके अनुयायी दकियानूसी और हिंसक हैं। मदरसों से ऐसे नौजवानों की टोलियां तैयार होकर निकलने लगीं जो किसी की जान लेने में जरा भी संकोच नहीं करते थे। अमरीका ने कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों को आर्थिक मदद दी और उन्हें असलाह भी उपलब्ध करवाया। ईरान में अयातुल्लाह खौमेनी के सत्ता संभालने के बाद अमरीकी मीडिया ने इस्लाम को दुनिया के लिए नया खतरा बताना शुरू कर दिया। 9/11 के हमले के लिए ओसामा बिन लादेन व अल्कायदा को जिम्मेदार ठहराए जाने के बाद से तो इस्लामिक आतंकवाद शब्द का प्रयोग जम कर होने लगा।

कहने की ज़रूरत नहीं कि न तो इस्लाम और न ही कोई अन्य धर्म निर्दोष, निहत्थे लोगों की हत्या करने की इजाजत देता है। आईआरए, लिट्टे, उल्फा और खालिस्तानियों ने अपने राजनैतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए निर्दोषों का खून बहाया परंतु उनकी गतिविधियों को कभी ईसाई, हिन्दू या सिक्ख धर्म से नहीं जोड़ा गया। इस्लाम और मुसलमानों के दानवीकरण की प्रक्रिया का चरम था वह डेनिश कार्टून,  जिसमें पैगम्बर मोहम्मद को अपनी पगड़ी में बम छिपाकर ले जाते हुए दर्शाया गया था।

भारत में अँगरेज़ शासकों की फूट डालो और राज करो की नीति व इतिहास को साम्प्रदायिकता के चश्मे से देखने के कारण हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच पहले से ही आपसी शंका व घृणा का भाव था। इस्लाम के बारे में पश्चिमी दुष्प्रचार ने भारत में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच की खाई को और गहरा किया।

अत्यंत बेहूदा और आधारहीन हैं सुब्रमण्यम स्वामी के तर्क

सुब्रमण्यम स्वामी ने हिन्दू धर्म के नाम पर जो तर्क दिए हैं वे अत्यंत बेहूदा और आधारहीन हैं। भारत में किए गए अधिकतर आतंकी हमले किसी एक समुदाय को निशाना बनाकर नहीं किए गए थे। इसके कुछ अपवाद हैं साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और असीमानंद द्वारा मस्जिदों या ऐसे स्थानों पर किए गए बम विस्फोट, जहां मुसलमान बड़ी संख्या में इकट्ठा थे। दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला 11/9/2001 को न्यूयार्क में हुआ था और इसमें सभी धर्मों और देशों के नागरिक मारे गए थे। पाकिस्तान में अल्-कायदा द्वारा मारे गए लोगों की संख्या हजारों नहीं तो कम से कम सैकड़ों में जरूर होगी।

यह मान्यता मूखर्तापूर्ण है कि मुस्लिम शासकों ने भारत में इस्लाम का प्रचार करने के लिए देश पर कब्जा किया था। भारत में सम्राट अशोक को छोड़कर किसी राजा ने धर्मप्रचार नहीं किया। केवल अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार किया और वह भी शांतिपूर्ण तरीकों से। भारत में इस्लाम को फैलाया सूफी संतों ने और हिन्दू धर्म की निष्ठुर जाति प्रथा के चंगुल से निकलने के लिए दलितों ने बड़ी संख्या में इस्लाम को गले लगाया।

इस तर्क में कोई दम नहीं है कि हिन्दुओं को मारकर और ढेर सारे बच्चे पैदा कर मुसलमान, भारत को दारूल इस्लाम बनाना चाहते हैं। पिछले साठ सालों में भारत की कुल आबादी में मुसलमानों के प्रतिशत में मात्र 0.8 की वृद्धि हुई है जबकि इसी अवधि में आदिवासियों का प्रतिशत 7.5 से बढ़कर 8.5 हो गया है। इन दोनों समुदायों की आबादी की अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि दर के पीछे गरीबी और अशिक्षा है न कि अपने समुदाय की आबादी बढ़ाने का कोई सोचा-समझा षड़यंत्र।

क्या सभी आतंकी मुसलमान होते हैं?

सभ्यताओं के टकराव“  के सिद्धांत से ही जन्मी है यह मान्यता कि सभी आतंकी मुसलमान होते हैं। यह मानने में किसी को कोई गुरेज नहीं हो सकता कि अमेरिका द्वारा स्थापित किए गए मदरसों में मुस्लिम युवकों को निर्दयता से निर्दोष पुरूषों, महिलाओं और बच्चों को मारने के लिए प्रोग्राम किया गया था परंतु हमें यह भी याद रखना चाहिए कि भारत में हुए आतंकी हमलों के बाद पकड़े गए अधिकांश मुस्लिम युवक, अंततः निर्दोष साबित हुए।

यह सोचना भी गलत है कि भारत में आतंकी हमलों में केवल हिन्दू मारे जाते हैं। 26/11/2008 के आतंकी हमले में मारे गए मुसलमानों का प्रतिशत, आबादी में उनके प्रतिशत से कहीं अधिक था। हालिया (13/7/11) हमले में भी दोनों समुदायों के लोग मारे गए।  यह कहना कि आतंकवाद की समस्या का हल हिन्दुओं में एकता स्थापित करना और हिन्दू पार्टी को समर्थन देना है, राजनैतिक प्रचार के अतिरिक्त कुछ नहीं है। भारत ने अपनी इच्छा से धर्मनिरपेक्ष राज्य बने रहना स्वीकार किया था। हमारे संविधान निर्माताओं ने बहुत सोच-समझकर इस्लामिक या हिन्दू राष्ट्र के सिद्धांत को खारिज किया था।

the entire hindu community does not become terrorists because of a few aseemanands or dayanands.

the entire hindu community does not become terrorists because of a few aseemanands or dayanands.

हम यह नहीं भूल सकते कि हेमन्त करकरे की सूक्ष्म जांच के फलस्वरूप प्रज्ञा सिंह ठाकुर से लेकर असीमानंद से आरएसएस के एक प्रमुख नेता इन्द्रेश कुमार के आतंकवादी हमलों में शामिल होने के अकाट्य सुबूत सामने आए हैं। इस्लाम के नाम पर लोगों के दिमागों में जहर भरने का काम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक महाशक्ति कर रही है, जिसका लक्ष्य अपने राजनैतिक उदेश्यों की पूर्ति है। हमारे देश में हिन्दुत्व की विचारधारा की पोषक वे शक्तियां हैं जो हमारे देश के बहुवादी एवं प्रजातांत्रिक चरित्र का गला घोंटना चाहती हैं। बहुवाद व प्रजातंत्र हमारे स्वतंत्रता संग्राम की थाती हैं। आतंकवादी हमलों का बदला लेने या पाकिस्तान पर हमला करने की बातें शुद्ध पागलपन हैं और ऐसा कोई भी कदम, भारतीय उपमहाद्वीप को बर्बादी के रास्ते पर ले जाएगा।

किसी एक समुदाय पर आतंकवाद का पोषक होने का आरोप लगाना गलत है। कुछ असीमानंदों या दयानंदों के कारण पूरा हिन्दू समुदाय आतंकवादी नहीं हो जाता।

राम पुनियानी

कुरान, मदरसे और आतंकवाद : नेक नहीं हैं वसीम रिजवी के इरादे | डॉ. राम पुनियानी का लेख

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