केसरी फिल्म : अक्षय कुमार को खुला पत्र

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hastakshep
14 Apr 2019
केसरी फिल्म : अक्षय कुमार को खुला पत्र

श्रीमान, अक्षय कुमार।

आपकी केसरी फिल्म (Akshay Kumar's Kesari Film) देख कर आ रहा हूँ। क्या जबरदस्त फिल्माकंन है। फिल्म पर अच्छी मेहनत की गयी है। लोकेशन और ड्रेसिंग भी जबरदस्त है। आपकी कलाकारी ने तो फिल्म में 4 चाँद ही लगा दिए हैं। शायद इसी फिल्म के लिए आपने ये कला सीखी थी। मैंने आपकी दर्जनों फिल्में देखी हैं लेकिन सबसे बेहतरीन कला इस केसरी फिल्म में देखने को मिली। कलाकार के नाम पर आपको 5 स्टार मिलने चाहिए।

जब इसका ट्रेलर (केसरी फिल्म का ट्रेलर Kesari Film Trailer) लांच हुआ या उससे पहले जब फिल्म की चर्चा मीडिया के माध्यम से आम जनता में आई तो बड़ी उत्सुकता थी कि फिल्म में क्या दिखाया जायेगा, क्या संदेश फिल्म जनता को देगी। क्योंकि फिल्म एक ऐतिहासिक घटना पर बन रही थी। फ़िल्में दो तरह की होती हैं एक फिल्म कहानी पर आधारित और दूसरी इतिहास की सच्ची घटनाओं पर आधारित होती है।

कहानी पर आधारित फिल्म में जो मर्जी हो वो दिखाया जा सकता है। कल्पनाओं के घोड़े जितने दौड़ाना चाहो उतने दौड़ाये जा सकते हैं और ये सब किया भी जाता है। उसमें जिस कम्युनिटी को चाहे विलेन बनाओ या जिसको चाहे हीरो बनाओ। जैसे गदर - एक प्रेम कथा में भारत का हीरो तारा अकेला एक तरफ और पूरी पाकिस्तान की फ़ौज एक तरफ, अकेला तारा पूरी पाकिस्तानी फौज को खदेड़ देता है। फ़ौज हार जाती है, तारा जीत जाता है। फिल्म सुपरहिट हो जाती है। ऐसी अनेकों फिल्में बनी जो नफरत के कारोबार को बढ़ाने के लिए बनाई गईं। फ़िल्मकार बड़े ही शातिर दिमाग से पड़ोसी मुल्क को नीचा दिखाकर, उसको हराकर अपने लोगों को चतुराई से अंधराष्ट्रवाद की तरफ ले जाता है। फ़िल्मकार द्वारा एक खास विचार से प्रेरित होकर एक खास मकसद के लिए ये सब किया जाता है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ ऐसे फ़िल्मकार भी बहुत हैं जो अंधराष्ट्रवाद के खिलाफ बिगुल बजाते हैं। वार छोड़ न यार, क्या दिल्ली-क्या लाहौर, वीर जारा जैसी फिल्में भी बनती हैं जो सच में बेहतरीन फिल्में होती हैं। जो नफरत के कारोबार से ऊपर उठकर नफरत को हराने की बात करती हैं। जिनका मकसद भी बेहतरीन होता है।

इतिहास की फिल्म (History film) से अगर छेड़छाड़ करके अगर इतिहास के विपरीत फिल्म बनाई जाए तो ये इतिहास के साथ खिलवाड़ तो है ही, एक भयंकर साजिश और घटियापन भी होता है। ऐसी ही साजिश और घटियापन मुझे आपकी केसरी फिल्म देख कर महसूस हुई।

इसलिए बड़े ही गुस्से से ये आपको खुला पत्र लिख रहा हूँ।

इतिहास से छेड़छाड़ (History tampering) के कारण आने वाली नस्लें आपको कभी माफ नहीं करेंगी। वो सवाल करेंगी आपसे कि कैसे देश और अपनी मिट्टी के लिए लड़ने वाले योद्धाओं को आपने बड़ी ही चतुराई से विलेन बना दिया। कैसे बड़ी चतुराई और शातिराना दिमाग से इस ऐतिहासिक घटना को आपने धर्म का चोला पहना कर धार्मिक रंग में रंग दिया। कैसे इस पूरी लड़ाई को क्रांतिकारी बनाम अंग्रेज सत्ता की जगह आपकी फिल्म ने मुस्लिम बनाम सिख बना कर दिखाया है।

मुझे लगता है कि अगर ऐसे ही इतिहास के साथ छेड़छाड़ चलती रही तो वो दिन दूर नहीं जब गदर पार्टी के क्रांतिकारियों को विलेन और अंग्रेजो की तरफ से गोलियां चलाने वाले सैनिको को सुपर हीरो दिखाया जायेगा या जलियाँ वाला बाग नरसंहार को, सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के सैनिकों को मारने वाली बिर्टिश आर्मी जिसमें भारत के ही जवान थे उनको हीरो दिखाया जाएगा या मध्य भारत के आदिवासी जिनका नेतृत्व बिरसा मुंडा कर रहे थे, चटगांव के विद्रोहियों जो सूर्य सेन के नेतृत्व में लड़ रहे थे या अलग-अलग हिस्सों में लड़ने वाले और अपनी जान की कुर्बानियां देने वाले लाखों क्रांतिकारियों को विलेन और इनकी हत्या करने वाले ब्रिटिश सैनिकों को महान हीरो दिखाया जाएगा।

सारागढ़ी का इतिहास और केसरी फिल्म

History of Saragarhi and Kesari film

सारागढ़ी जो अंग्रेज सरकार की एक महत्वपूर्ण पोस्ट थी जिस पर 36 सिख रेजिमेन्ट के 21 जवानों की तैनाती थी। ये 12 सितम्बर 1897 की बात है। जब ये ऐतिहासिक युद्ध हुआ। (ये भी याद रखना चाहिए की भारतीय जनता द्वारा 1857 का अंग्रेजों के खिलाफ महान विद्रोह हो चुका था।) सारागढ़ी के युद्ध में 21 सिख सैनिक अंग्रेज सरकार की तरफ से लड़ते हुए भारतीय क्रांतिकारी ताकतों के हाथों मारे गए। इस लड़ाई में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाली जनता जो वहां के अफरीदी आदिवासी और पठान शामिल थे, भी बड़ी तादात में शहीद हुए। इन शहीदों की याद में फिल्म बननी चाहिए थी, लेकिन दुर्भाग्य है कि इसके विपरीत इन शहीदों के खिलाफ फिल्म बनती है और इन शहीदों को विलेन दिखाया जाता है। पूरी फिल्म में थोड़ा सा भी आभास नहीं होने दिया गया कि अंग्रेज सरकार के खिलाफ लड़ने वाले ये क्रांतिकारी हैं जो जल-जंगल-जमीन को बचाने और गुलामी की बेड़िया तोड़ने के लिए लड़ रहे हैं। इसके विपरीत ये दिखाया गया कि ये लड़ने वाले वहशी धार्मिक दरिंदे हैं। ये मुस्लिम धर्म के लिए लड़ रहे है न कि देश के लिए। इनका नेतृत्व करने वाला धार्मिक नेता तालिबानी है जो महिलाओं पर अत्याचार करता है।

क्रांतिकारियों को वहशी और तालिबानी साबित करने के लिए फ़िल्मकार ने फिल्म में कई सीन डाले हैं। एक सीन जो ज्यादा महत्वपूर्ण है जिसकी चर्चा करना अनिवार्य है। जब 10 हजार क्रांतिकारी अंग्रेज सेना से लड़ने आते हैं। वो सारागढ़ी के मैदान (Plains of Saragari) में आकर एक महिला की सरेआम गर्दन कलम कर कत्ल करते है। क्योंकि उस महिला ने मुस्लिम धर्म के किसी नियम का उल्लंघन किया है। इसलिए उसको ये सजा दी गयी है। महिला की मौत पर हजारों क्रांतिकारी खुशियां मनाते दिखाये गये हैं। फ़िल्मकार ने ऐसे कई काल्पनिक सीन के माध्यम से इनको दरिंदा और तालिबानी साबित करने की पुरजोर कोशिश की है। ये साबित करने के लिए की वो isisi की तरह थे।

अक्षय कुमार की केसरी फिल्म के संवाद बहुत कुछ बोलते हैं -

➢    विद्रोही गुट के नेता द्वारा बोलना कि शाम तक सारे सिख सैनिकों की पगड़ियां मेरे पैरों में होंगी।

➢    मुझे इस सिख की चींखें सुननी हैं लगा दो आग

➢    ईसर सिंह द्वारा युद्ध से पहले अपने सैनिकों से बोलना कि आज हम ये लड़ाई अंग्रेजों के लिए नहीं लड़ेंगे आज हम ये लड़ाई धर्म के लिए लड़ेंगे। इस केसरी पगड़ी के लिए लड़ेंगे। इस पगड़ी के लिए लाखों शहीद हुए हैं हम उन शहीदों के लिए लड़ेंगे।

➢    सर पर केसरी पगड़ी बांध कर लड़ना।

श्रीमान क्या बताने का कष्ट करेंगे कि, सारागढ़ी का युद्ध सिखों के खिलाफ था या अंग्रेजों के खिलाफ ?

फ़िल्मकार द्वारा केसरी फिल्म एक के तहत बनाई गई फिल्म है। इस साजिश का अहम हिस्सा श्रीमान आप हो। क्योंकि एक कलाकार ही अपनी कला के माध्यम से किसी भी कहानी के पात्र को जीवंत करता है। आपने भी अपनी कला के माध्यम से इतिहास के साथ की गयी गड़बड़ी में अहम भूमिका निभाई है। इस पूरी फिल्म में जो शब्दों का इस्तेमाल किया गया है वो एक भयंकर साजिश की तरफ इशारा करती है। कैसे इस फिल्म को सिख धर्म के साथ जोड़ कर उनकी भावनाओं को कैश किया गया है।

सिख धर्म के झंडे के इस्तेमाल की बात हो या सिख गुरुओं की अनमोल वाणियों की बात हो। उन सबको अपने राजनितिक फायदे के लिए इस फिल्म में इस्तेमाल किया गया है, जो सरासर गलत है। जिसका व्यापक विरोध होना चाहिए। एक खास फासीवादी राजनीतिक विचारधारा को फायदा पहुंचाने के लिए इस फिल्म का निर्माण किया गया है। इसी फायदे के लिए इस फिल्म की रिलीज की तारीख भी आचार सहिंता में तय की गयी है। इस शातिराना चाल का विरोध प्रत्येक भारतीय नागरिक को करना चाहिए।

इस पूरे मसले में एक बात समझने की ये भी है कि आदिवासियों और पठानों की फ़ौज जिसकी संख्या 10 हजार थी। अगर आज की जनसंख्या से उसका मूल्यांकन किया जाये तो ये 10 लाख बैठती है। 10 हजार क्रांतिकारी जो अपनी जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए अंग्रेज सरकार से लड़ रहे थे। जो गुलामी की बेड़ियां तोड़ कर एक नई सुबह में आजादी की साँस लेना चाहते थे। ये एक जन विद्रोह था जिसको अंग्रेज सरकार ने ईशर सिंह जैसे सैनिकों की मदद से इन क्रांतिकारियों के सपनों को अपने लोहे की एड़ियों से कुचला, इनका दमन किया। इस के 122 साल बाद 2019 में श्रीमान आपने भी अपनी कला के जरिये उनके सपनों को कुचलने की कोशिश की है।

मै ऐसे किसी भी ईशर सिंह, जो किसी भी कौम से हो, वो चाहे कितना भी बहादुर क्यों न हो, को महान या योद्धा नहीं मानूँगा, जिसने अपनी बहादुरी साम्राज्यवाद की गुलामी की बेड़ियां तोड़ने में न लगाकर बेड़ियों को ओर ज्यादा मजबूत करने में लगाई हो। महान योद्धा वो सैनिक नहीं थे जिन्होंने अंग्रेज सरकार की गुलामी की बेड़िया पहन कर अपनी बहादुरी जन विद्रोह को कुचलने में दिखाई। उनको बहादुरी की नहीं गद्दार की संज्ञा दी जायेगी।

महान और बहादुर योद्धा Great and brave warrior

के विद्रोही, गदर पार्टी के हजारों सिख योद्धा, सारागढ़ी के आदिवासी और पठान, बिरसा मुंडा, चटगांव के महान क्रांतिकारी सूर्यसेन, भगत सिंह, आजाद, लक्ष्मी बाई, लाखों बागी विद्रोही महान और बहादुर थे जिन्होंने विश्व की सबसे मजबूत साम्राज्यवादी ताकत जिनका कभी सूर्य अस्त नहीं होता था, के खिलाफ लड़ते हुए अपनी जान की कुर्बानियां दी। ऐसे बहादुर योद्धाओं को सलाम।

आप और आपकी साम्प्रदायिक विचारधारा जितना चाहे जोर लगा ले इतिहास को बदलने का लेकिन आप उस खून को दबाने या मिटाने में कामयाब नहीं होंगे जिन्होंने आजाद साँस के लिए खून बहाया था और आज भी खून बहा रहे हैं।

इंक़लाब जिंदाबाद।।।

Uday Che

Review of Kesari film,

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