Sakshi Mishra Ajitesh Controversy : Is it a conflict of two constitution
गत दिनों उत्तर प्रदेश के एक ब्राह्मण विधायक की बेटी ने एक दलित युवक से विवाह कर लिया (Brahmin MLA’s daughter married a Dalit boy) और अपने पिता के डर से नव दम्पत्ति नगर से भाग गया। इतना ही नहीं विधायक और उसके बाहुबलियों के डर से युवक के परिवार को भी नगर से भागना पड़ा। विधायक भाजपा के हैं और उसी पार्टी की प्रदेश और देश में सरकार है।
इसी घटना के कुछ दिन पूर्व गुजरात में ऐसी ही शादी हुयी थी तब घर आये हुये दामाद को उसके ससुर और सालों ने मार डाला था, जबकि लड़की गर्भवती थी।
इसी दौरान उत्तर प्रदेश के औरैया में प्रेम विवाह करने वाले लड़के लड़की को मार कर पेड़ पर लटका दिया गया।
ऐसे ही भय से ग्रस्त होकर पत्रकारिता की पढाई कर चुकी उत्तर प्रदेश के विधायक की शहर छोड़ कर भागी हुयी बेटी ने जब अपने प्रवास स्थल के बाहर पिता के परिचित कुछ लोगों को सन्दिग्ध अवस्था में घूमते पाया तो उसने न केवल अपना फोटो वायरल किया अपितु स्वेच्छा से अपनी शादी की घोषणा करते हुए अपने पिता से अपनी जान को खतरा बताया व पुलिस कप्तान से मदद मांगी।
इस कहानी को न्यूज चैनलों ने उठा लिया और कुछ ही समय में इसे नेशनल न्यूज में बदल दिया।
उल्लेखनीय है कि देश में इसी तरह के अंतरजातीय विवाहों (Inter-caste marriages) से नाराज परिवारियों द्वारा प्रतिवर्ष सैकड़ों सम्भावनाशील युवाओं की हत्याएं हो रही हैं जिन्हें प्रेस के लोग ऑनर किलिंग (honor killing) कह कर हत्याओं की निर्ममता को कम करने की कोशिश करते हैं। इतनी बड़ी संख्या में हो रही इन देशव्यापी हत्याओं पर हर मंच पर विस्तार से बात होना चाहिए।
उत्तरप्रदेश के विधायक की इस बेटी (Mla Rajesh Mishra Daughter Sakshi Mishra) ने साहस करके जान पर खेल अपने पिता और उनके सहयोगियों को चुनौती दी है। औपचारिक रूप से तो विधायक अपनी बेटी के बालिग होने के आधार पर उसका वैधानिक अधिकार बता रहे हैं, किंतु उस शादी को स्वीकारने के सवाल पर ‘नो कमेंट’ कह कर बात को टाल जाते हैं। यह उनकी बेटी द्वारा अपने संवैधानिक अधिकार के इस्तेमाल पर सहमत न होने के संकेत हैं, क्योंकि ज्यादा पूछने पर वे अपनी पत्नी सहित आत्महत्या की धमकी दे कर सामने वाले को चुप करा देते हैं।
बेटी की बातें बताती हैं कि वे प्रतिशोध से भरे हुये होंगे।
Sakshi Mishra Ajitesh Controversy
यह संक्रमण काल है। इसमें दो संविधानों का टकराव चल रहा है। हम एक ओर तो चन्द्रमा पर यान उतारने की तैयारी करते हुये ट्रिलियन डालर में बजट प्रस्तुत कर रहे आधुनिक युग में प्रवेश करते जा रहे हैं किंतु दूसरी ओर हम अभी भी पुराने सामंती युग को जी रहे हैं।
हमारे संविधान निर्माताओं ने दस साल में हजारों साल पुराने जातिवादी समाज के समाप्त हो जाने का खतरा देखा था, किंतु सत्तर साल में भी हम समुचित आगे नहीं बढ सके हैं।
उल्लेखनीय है कि संविधान सभा के गठन के समय आरएसएस के नेताओं ने कहा था कि जब हमारे पास मनुस्मृति है तो नया संविधान बनाने की क्या जरूरत है।
संविधान निर्माता डा. अम्बेडकर भी इस बात को महसूस करते थे कि मनुस्मृति से मुक्ति पाये बिना नया संविधान अपना उचित स्थान नहीं बना सकेगा। शायद यही कारण रहा होगा कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति के दहन का आयोजन किया था और लाखों लोगों को अपना पुराना धर्म त्याग कर दूसरे धर्म को अपनाने के लिए प्रेरित किया था। उनका जोर नये धर्म को अपनाने के प्रति कम और पुराने धर्म को त्यागने के प्रति अधिक था जिससे नये समाज के नागरिक बदलाव को स्वीकार करने की आदत डाल सकें। इसका संकेत इस बात से मिलता है कि उन्होंने कहा था कि मैं हिन्दू धर्म में पैदा जरूर हुआ हूं किंतु हिन्दू धर्म में मरूंगा नहीं।
संविधान के अनुसार युवाओं को अंतर्जातीय, अंतर्धार्मिक विवाह करने का अधिकार है और विवाह की उम्र होने पर वे इस अधिकार का प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं।
मनोरंजन और शिक्षण के लिए सबसे सशक्त दृश्य माध्यम में जिन फिल्मों, नाटकों और सीरियलों को करोड़ों लोग देखते हैं उनमें भी युवाओं को अपनी मर्जी से जीवन साथी चुनने की कहानियों को अंकित किया जाता है। ऐसी कहानियां पूरे परिवार के साथ देखी जाती हैं और जीवन साथी के मिल जाने पर पूरा परिवार एक साथ बैठ कर ताली बजाता है, खुशी व्यक्त करता है। ऐसी फिल्मों की लोकप्रियता और व्यावसायिक सफलता बताती है कि ये भावना कितनी गहराई तक घर कर चुकी है।
इसके विपरीत जब संवैधानिक अधिकार प्राप्त घर का कोई नागरिक अंतर्जातीय, अंतर्धार्मिक विवाह का सवाल उठाता है तो पूरा परिवार मनुस्मृति से संचालित होने लगता है और जाति ही नहीं अपितु गोत्र, उपगोत्र तक के सवाल उठाये जाने लगते हैं।
मनुस्मृति और भारतीय संविधान दोनों साथ साथ नहीं चल सकते।
भारतीय संविधान के अनुसार जाति, धर्म, रंग, लिंग, भाषा, और क्षेत्र के बिना सभी समान नागरिक हैं और तयशुदा उम्र के बाद उन्हें विवाह का अधिकार है जबकि कभी संघ द्वारा भारतीय संविधान के विकल्प के रूप में प्रस्तावित मनु स्मृति में ऐसा नहीं है। तय करना होगा कि देश में कौन सा संविधान चलेगा? तय करना होगा कि भारत के संविधान की शपथ लेने वाली सत्तारूढ भाजपा के अब मनुस्मृति के बारे में क्या विचार हैं?
विवाह के बारे में परिवार, जाति समाज, व धार्मिक गुरुओं का संविधान विरोधी दखल रोकना होगा और युवाओं को संवैधानिक अधिकार से वंचित करने वालों पर देशद्रोह जैसा आरोप लगाना होगा, क्योंकि देश भारत के संविधान से ही चलेगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल के प्रारम्भ में संविधान के आगे सिर झुका कर प्रतीकात्मक रूप से एक संकेत दिया था जिसके सच करने का समय है।
युवाओं को अपनी मर्जी से विवाह के अधिकार के बारे में किसी घटना के घटित होने के अलावा भी बातचीत होना चाहिए, कालेजों आदि शिक्षण संस्थाओं व कार्यस्थलों पर इस विषय पर जानकारी देने के कार्यक्रम आयोजित होने चाहिए व राजनीतिक दलों को वोटों की राजनीति से ऊपर उठ कर इसका प्रचार करना चाहिए। इससे जातिवादी राजनीति से ऊपर उठने में भी मदद मिलेगी, साम्प्रदायिकता घटेगी।

उल्लेखनीय है कि अभी लोकसभा चुनावों के बाद श्री नरेन्द्र मोदी इस बात को रेखांकित कर चुके हैं कि इस बार लोगों ने जातिवाद से ऊपर उठ कर मतदान किया, तथा सबका विश्वास जीतने की इच्छा व्यक्त करते हुए साम्प्रदायिकता से मुक्ति की कामना की है। किसी भी धर्म की कोई भी पुस्तक अगर जनता के संवैधानिक अधिकारों से टकराती हैं तो संविधान की बात ही मानी जाना चाहिए। एक देश में एक संविधान के नारे को इस तरह से भी देखा जाना चाहिए।
उत्पादन के साधन (means of production) बदलने और नई आर्थिक नीति (New economic policy) लागू होने के साथ साथ उक्त घटनाओं में बढोत्तरी हो सकती है। अगर हमने आज सचेत होकर जरूरी तैयारी कर ली तो भविष्य में पछताना नहीं पड़ेगा।
वीरेन्द्र जैन