सोलह राज्यों के दस लाख आदिवासी घरों को जंगल की जमीन से जबरन बेदखल किया जाएगा, सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद!
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राष्ट्रवाद और देशभक्ति के नशे में डूबे देश के लिए यह कोई मुद्दा नहीं होगा... क्योंकि इस देश में आदिवासियों को सबसे लाचार तबका मान लिया गया है.!
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दस लाख घरों के लोगों को जंगल की जमीन से बेदखल किया जाएगा, क्योंकि वन्यजीवों के लिए काम करने वाले कुछ झुंडों ने सुप्रीम कोर्ट में वनाधिकार कानून के खिलाफ मोर्चा लिया और भाजपा और मोदी की सरकार ने इस कानून और आदिवासियों के पक्ष में अदालत में वकील तक भेजना जरूरी नहीं समझा..! यह फैसला देने वाले जज- अरुण मिश्रा, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी..! ऐसे में और क्या होना था!
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दस लाख घर... यानी एक घर में औसतन पांच लोग भी मानें तो पचास लाख लोग..! अगर मेरा हिसाब सही है तो पचास लाख लोगों को उनकी जमीन से जबरन बेदखल किया जाएगा..!
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क्या यह सब एकदम आसानी से हो जाएगा..? या फिर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कानून को बचाने में जानबूझ कर लापरवाही की और इस तरह देश के भीतर ही किसी युद्ध के हालात पैदा करने की जमीन रची है..!
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क्या तमाम गैर-भाजपाई राजनीतिक पार्टियों की यह तात्कालिक जिम्मेदारी नहीं है कि वे इस मसले पर पूछें सरकार से कि उसने देश के आदिवासियों को बेठौर, लाचार गुलाम बनाने वाली कवायद की नौबत क्यों आने दी..? क्या सभी राजनीतिक पार्टियों को इस मसले को एक ठोस राजनीतिक मुद्दा नहीं मानना चाहिए... और क्या उन्हें आदिवासियों के अधिकारों... वनाधिकार कानून के मूल स्वरूप को बचाने के लिए सब कुछ नहीं करना चाहिए..?
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(पत्रकार अरविंद शेष की एफबी टिप्पणी। संदर्भ समझने के लिए बिजनेस स्टैण्डर्ड की यह खबर पढ़ सकते हैं