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ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ जंग-ए-आजादी का ज़िक्र आते ही कई नाम और चेहरे याद आ जाते हैं, जिन्होंने लंबी लड़ाई और तमाम जुल्मों-सितम सहकर देश को अंग्रेजों की बेड़ियों से आजाद कराया... एक लम्बी फेहरिस्त है आजादी के उन दीवानों की।
आइये हम याद करते हैं उन चुनिन्दा क्रांतिकारियों को जिन्होंने देश के लिए खुद को कुर्बान कर दिया..
1...मंगल पांडे (8 अप्रैल 1857)
हर कोई आजादी के मतवालों को याद कर रहा है, जिनके बलिदान से भारतीयों को मुक्ति मिली है। मंगल पांडेय भी उन्हीं क्रांतिकारियों में से एक थे। या यूं कहें कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले नायक थे, जिनके विद्रोह से निकली चिंगारी ने पूरे उत्तर भारत को आग के शोले में तब्दील कर दिया था। दिल्ली लाशों से अटी पड़ी थी। डरे-सहमे ब्रिटिश अफसरों ने रातों-रात मंगल पांडेय को फांसी पर लटका दिया था और कई दमनकारी कानून सिर्फ इसलिए बना दिए थे ताकि दोबारा कोई मंगल पांडेय पैदा ही ना हो सके। 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दी गई थी..
किसी कौम व दूसरे देश से नफरत देशभक्ति नहीं है
2 …खुदीराम बोस( 11 अगस्त 1908 )
खुदीराम बोस सबसे नौजवान स्वतंत्रता संग्रामी रहे हैं। स्वतंत्रता की लड़ाई की शुरूआती दौर में ही ये उसमें कूद पड़े थे। बचपन से देश प्रेम के चलते इन्होंने आज़ादी को ही अपनी मज़िल बना ली थी। स्कूल में पढ़ने के दौरान खुदीराम ने अपने टीचर से उनकी पिस्तौल मांग लिया था, ताकि वे अंग्रेंज़ों को मार सके। मात्र16 साल की उम्र में इन्होंने पास के पुलिस स्टेशन व सरकारी दप्तर में बम ब्लास्ट कर दिया। जिसके तीन साल बाद इन्हें इनके जुर्म के लिए गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी की सज़ा सुनाई गई। जिस समय इन्हें फांसी हुई उस समय इनकी उम्र 18 साल 8 महीने 8 दिन थी।
देश हामिद अंसारी और उनके पिता का हमेशा क़र्ज़दार रहेगा।
3 ...राम प्रसाद बिसमिल (दिसंबर 1927)
राम प्रसाद बिस्मिल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें 30 वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फांसी दे दी। क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने ब्रिटिशों की हुकुमत के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी...ब्रिटिश राज का विरोध करने पर हकुमरानों ने उन्हें जेल में डाल दिया...फिर उन्हें फांसी दे दी गई..
मोदीजी, आपका हश्र भी आपातकालीन इंदिरा जैसा होगा!!
4... अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ां ( 19 दिसंबर 1927 )
अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ां भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19दिसंबर 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फांसी पर लटका कर मार दिया गया।
5.. लाला राजपत राय ( 17 नवंबर 1928)
लाला जी पंजाब केसरी के नाम से प्रसिद्ध थे। भारतीय नेशनल कॉंग्रेस के लाला लाजपत राय बहुत ही प्रसिद्ध नेता और स्वतंत्रता सैनानी थे। लाला लजपत राय लाल-बाल-पाल की तिकड़ी में शामिल थे। ये तीनों कॉंग्रेस के मुख्य और प्रसिद्ध नेता थे। 1914 में वे ब्रिटेन भारत का हाल बताने गए थे लेकिन विश्व युद्ध की वजह से वे वहां से लौट न सके। 1920 में वे जब भारत आए तब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था जिसके विरूद्ध उन्होंने आंदोलन छेड़ दिया था। एक आंदोलन के दौरान जब अंग्रेज़ों ने उन पर लाठी चार्ज किया तो वे उसमें बुरी तरह से घायल हो गए जिसके पश्चात उनकी मृत्यु हो गई..
मुमकिन तो यह भी है कि किसी सुबह चार गुंडे वंदेमातरम चिल्लाते हुए कफ़ील अहमद को मार डालें
6. चंद्रशेखर आज़ाद-(27 फ़रवरी 1931)
आज़ाद 1921 में बनारस के सत्याग्रह आंदोलन के दमन ने उनकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल दी. 1922 में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके बाद भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स की हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया। 27 फ़रवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में आज़ाद अपने एक साथी के साथ थे तभी ब्रितानी पुलिस ने उन्हें घेर लिया और गोलीबारी में आजाद शहीद हो गए.. कहा जाता है कि चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजी शासन का डटकर मुकाबला किया लेकिन जब उनकी पिस्तौल में सिर्फ एक गोली बची थी तब उन्होंने सरेंडर करने की बजाय खुद को गोली मरना बेहतर समझा..
7..भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु (23 मार्च 1931)
आजादी की लड़ाई में वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का बहुत महत्तवपूर्ण योगदान रहा है..8 अप्रैल 1929 को चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में ‘पब्लिक सेफ्टी’ और ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ के विरोध में ‘सेंट्रल असेंबली’ में बम फेंका गया था। जिसके बाद अंग्रेजी सरकार ने क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी करना शुरू की थी। इसी सिलसिले में भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को 24 मार्च 1931 को फांसी की सजा दी जानी थी। लेकिन पूरे देश में विरोध और क्रांतिकारियों के दबदबे के चलते अंग्रेजो ने तय दिन से एक दिन पहले ही 23 मार्च को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को देर शाम फांसी दे दी। ये तीन वीर हंसते-हंसते देश के लिए फांसी पर चढ़ कर अमर हो गए थे।
8..ऊधम सिंह (31 जुलाई 1940)
सरदार उधम सिंह का नाम भारत की आज़ादी की लड़ाई में पंजाब के क्रान्तिकारी के रूप में दर्ज है। उधम सिंह ने 13 मार्च 1940 में जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब के गर्वनर जनरल रहे माइकल ओ' डायर को लन्दन में जाकर गोली मारी थी...जिसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर पेंटनविले जेल में फांसी पर चढ़ा दिया था...