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क्या शासकों को आईना दिखाना बंद कर दें देश के प्रमुख नागरिक ?

क्या शासकों को आईना दिखाना बंद कर दें देश के प्रमुख नागरिक ?

क्या प्रमुख नागरिकों को शासकों को आईना नहीं दिखाना चाहिए? Should the prominent citizens not show the mirror to the rulers?

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देश के 49 प्रमुख नागरिकों, जिनमें फिल्मी हस्तियां, लेखक और इतिहासविद् शामिल हैं, ने कुछ समय पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुला पत्र (Open letter to Prime Minister Narendra Modi) लिखकर, देश में दलितों के खिलाफ अत्याचार (Atrocities against Dalits)माब लिंचिंग (Mob lynching) की घटनाओं में बढ़ोत्तरी और ‘जय श्रीराम‘ के नारे का एक विशेष धर्म के लोगों को आतंकित करने के लिए इस्तेमाल किए जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए उनका ध्यान इस ओर आकर्षित किया था. हस्ताक्षरकर्ताओं में लब्धप्रतिष्ठित हस्तियां जैसे श्याम बेनेगल, अडूर गोपालकृष्णन, अपर्णा सेन और रामचन्द्र गुहा शामिल थे.

इसके तुरंत बाद, प्रतिष्ठित नागरिकों के एक अन्य समूह, जिसमें प्रसून जोशी, कंगना रनौत, मधुर भंडारकर, सोनल मानसिंह और अन्य शामिल थे, ने एक जवाबी पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि कुछ चुनिंदा घटनाओं को उद्धृत कर पहले पत्र के लेखक, दुनिया की निगाहों में भारत और मोदी को बदनाम करना चाहते हैं. उन्होंने उस पत्र को एक पक्षीय और राजनीति से प्रेरित बताया.

उनका आरोप है कि उक्त पत्र के लेखकों ने सिक्के का दूसरा पहलू नहीं देखा. उन्होंने हिन्दुओें के कैराना से पलायन (Migration of Hindus from Kairana) की चर्चा नहीं की और ना ही वे बशीरहाट में हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा (Violence against Hindus in Basirhat) से चिंतित लगते हैं. उन्होंने दिल्ली के चांदनी चैक में एक मंदिर को नुकसान पहुंचाए जाने की घटना का भी संज्ञान नहीं लिया.

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जवाबी पत्र के लेखकों ने यह प्रश्न भी उठाया कि बेनेगल और उनके साथी तब क्यों चुप्पी साधे रहते हैं जब कश्मीर में अतिवादी, स्कूलों को जलाने का आव्हान करते हैं, जब आदिवासी क्षेत्रों में नक्सली हमले होते हैं या जब टुकड़े-टुकड़े गैंग, भारत को तोड़ने की बात करती है.

पहले पत्र के 49 हस्ताक्षरकर्ताओं ने देश में पिछले कुछ महीनों में एक विशेष प्रवृत्ति के उभार पर चिंता व्यक्त की थी. वे घटनाओं को अलग-अलग नहीं बल्कि एक प्रवृत्ति के भाग के रूप में देख रहे थे. उनकी चिंता निष्पक्ष स्रोतों द्वारा उपलब्ध करवाए गए आंकड़ों पर आधारित थी.

नेशनल क्राईम रिकार्डस ब्यूरो के अनुसार, पिछले वर्षों की तुलना में, सन् 2016 में दलितों के विरूद्ध अत्याचार की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई और आरोपियों की दोषसिद्धि की दर घटी.

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सिटीजन्स रिलीजियस एंड हेट क्राईम वाच के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि पिछले नौ वर्षों में हुईं लिंचिंग की घटनाओं में से 90 प्रतिशत, सन् 2014 के बाद हुईं हैं. इन घटनाओं के शिकारों में मुसलमानों का प्रतिशत 62 और ईसाईयों का 12 था. मुसलमान, देश की आबादी का 14.23 प्रतिशत हैं और ईसाई, 2.30 प्रतिशत.

जहां तक ‘जय श्रीराम‘ के नारे का सवाल है, इन चिंतित नागरिकों का कहना है कि अब तक जय राम, जय सियाराम और राम-राम आदि का इस्तेमाल अभिवादन के लिए किया जाता था. परन्तु अब, जय श्रीराम लोगों को अपमानित करने और उनका मखौल उड़ाने के लिए प्रयुक्त किया जाता है, जैसा कि लोकसभा में मुस्लिम और टीएमसी सांसदों के शपथग्रहण के दौरान हुआ. देश में अनेक ऐसी घटनाएं हुईं हैं जब भीड़ ने मुसलमानों को घेर कर उन्हें जय श्रीराम का नारा लगाने पर मजबूर किया और बाद में पीट-पीट कर उनकी हत्या कर दी.

इस तरह की घटनाएं इसलिए हो रहीं हैं क्योंकि हिंदू राष्ट्रवादी आरएसएस के अनुषांगिक संगठनों को लग रहा है कि अब देश में उनका राज है और वे जो चाहे  कर सकते हैं.

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हम सबको याद है की पिछली केंद्र सरकार के मंत्रियों ने लिंचिंग की घटनाओं के आरोपियों और दोषसिद्ध अपराधियों का सार्वजनिक रूप से सम्मान किया था. अखलाक की हत्या में आरोपी की मृत्यु होने पर उसके शव को तिरंगे में लपेटा गया था और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने लिंचिंग के अपराध में दोषसिद्ध व्यक्तियों के जमानत पर रिहा होने पर फूलमालाएं पहना कर उनका अभिनंदन किया था.

यह कहता गलत है कि उदारवादियों ने कश्मीर घाटी से पंडितों के पलायन और सन 1984 के सिक्ख कत्लेआम की निंदा नहीं की. समाज के धर्मनिरपेक्ष तबके ने इन घटनाओं की निंदा करते हुए बहुत कुछ लिखा और सड़कों पर उतर कर भी उनका विरोध किया. समाज के कमजोर वर्गों पर अत्याचार की घटनाओं का भी यह तबका विरोध करता आया है. जहाँ तक कुछ अन्य घटनाओं - जैसे कैराना से हिन्दुओं के पलायन - का सवाल है, स्थानीय पुलिस ने ही उनका खंडन कर दिया है. चांदनी चौक की घटना की शुरुआत स्कूटर की पार्किंग को लेकर विवाद से हुई थी. मुसलमानों के नेतृत्व वाली स्थानीय अमन कमेटी ने मंदिर को हुए नुकसान को ठीक करवाया और विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सद्भाव स्थापित करने के लिए, अंतरधार्मिक सामूहिक भोज भी आयोजित किए.

प्रजातंत्र में आस्था रखने वाले लोग (People who believe in democracy) आदिवासी क्षेत्रों में नक्सलवादी हिंसा (Naxalite violence in tribal areas) का सतत विरोध करते आए हैं. जहां तक ‘टुकड़े-टुकडे़ गैंग‘ का सवाल है, यह सिर्फ उन लोगों को बदनाम करने की साजिश है जो सत्ताधारी दल और उसकी नीतियों के विरोधी हैं.

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यह बहुत अच्छा है कि प्रसून जोशी एंड कंपनी ने इन घटनाओं की ओर देश का ध्यान आकर्षित किया है. इन घटनाओं की उचित विवेचना की जानी चाहिए.

श्याम बेनेगल और उनके साथी जिन घटनाओं (लिंचिंग व जय श्रीराम के नाम पर हिंसा आदि) की बात कर रहे हैं वे मात्र छुटपुट घटनाएं नहीं हैं. वे एक प्रवृत्ति का भाग हैं जो तेजी से बढ़ रही है. हाल में झारखंड के एक मंत्री ने एक मुस्लिम विधायक, अंसारी, को कैमरों के सामने जय श्रीराम कहने पर मजबूर करने की कोशिश की थी.

जिस मूल प्रश्न पर हमें विचार करना होगा वह यह है कि समाज में अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत क्यों बढ़ रही है. उनके विरूद्ध हिंसा, इसी नफरत का परिणाम है. हिन्दू राष्ट्रवादी, गाय, बीफ और इतिहास की साम्प्रदायिक व्याख्या आदि जैसे मुद्दों का इस्तेमाल मुसलमानों के खिलाफ बहुसंख्यकों को भड़काने के लिए कर रहे हैं. अमरीका ने पिछले साल लिंचिंग के खिलाफ एक कानून पारित किया था. भारत में इस तरह के कानून की सख्त जरूरत है. ‘‘हम बनाम वे‘‘ का विमर्श हमारे प्रजातंत्र के लिए शुभ नहीं है.

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जिन 62 प्रतिष्ठित नागरिकों ने जवाबी पत्र लिखा है, उन्हें यह समझना चाहिए कि सरकार की आलोचना न तो राष्ट्रविरोध है और ना ही अराष्ट्रीयतावाद.

सरकार की आलोचना से देश बदनाम नहीं होता. देश बदनाम होता है अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और उनमें बढ़ती असुरक्षा से, देश बदनाम होता है राम-राम के प्रेमपूर्ण अभिवादन के जय श्रीराम के आक्रामक नारे में बदलने से. सरकार की आलोचना हमारे लिए चिंता का विषय नहीं हो सकती. हमारे लिए चिंता का विषय है वह सोच या प्रवृत्ति, जिसके कारण धार्मिक समुदायों का ध्रुवीकरण हो रहा है. इस प्रक्रिया को तुरंत रोका जाना चाहिए. प्रतिष्ठित नागरिकों को शासकों का भाट बनने की बजाए उन्हें आईना दिखाना चाहिए.

-- राम पुनियानी

(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) (लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन्  2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

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