सिद्धारमैया बीजेपी के लिए सिरदर्द ही हैं. लिंगायत कार्ड खेल दिया !
लिंगायत को आईने में उतारने का मतलब है, कर्नाटक में बीजेपी की पकड़ 30 से 35 सीटों पर ढीली हो जाएगी. कर्नाटक विधानसभा में 224 निर्वाचित सदस्यों में सत्तारूढ़ कांग्रेस के 122 विधायक हैं, दूसरी ओर विपक्ष में 94 एमएलए हैं, इनमे बीजेपी के 43 और देवेगौड़ा की पार्टी जेडीएस के 37 विधायक हैं. बाक़ी खुदरा पार्टियां और आठ निर्दलीय विधायक हैं.
लिंगायत उत्तरी कर्नाटक की प्रभावशाली जातियों में गिनी जाती है. राज्य के दक्षिणी हिस्से में भी लिंगायत लोग रहते हैं. सत्तर के दशक तक लिंगायत दूसरी खेतीहर जाति "वोक्कालिगा" के साथ सत्ता में बंटवारा करते रहे थे. वोक्कालिगा दक्षिणी कर्नाटक की प्रभावशाली जाति है.
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रामकृष्ण हेगड़े की वजह से ही लोकसभा चुनावों में लिंगायतों के वोट भारतीय जनता पार्टी को मिले और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी.
रामकृष्ण हेगड़े के निधन के बाद लिंगायतों ने बीएस येदियुरप्पा को अपना नेता चुना, और 2008 में वे सत्ता में आए थे. येदियुरप्पा को कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद से हटाया गया तो लिंगायतों ने 2013 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार से अपना बदला लिया.
आम मान्यता है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही लोग होते हैं. लेकिन लिंगायत समुदाय के सदस्य ऐसा नहीं मानते. लिंगायत शिव की पूजा नहीं करते. ये देवपूजा, सतीप्रथा, जातिवाद, महिलाओं के अधिकारों का हनन आदि को गलत मानते हैं और इसीलिए लिंगायत अपने समाज को हिन्दू धर्म से भी अलग मानते हैं.
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इस बार सिद्धरमैया कैबिनेट ने लिंगायत समाज को अलग धार्मिक समूह की मान्यता दे दी है. इस फैसले से बीजेपी को लगता है, जैसे उसके हाथों से तोते उड़ गए. बीजेपी प्रवक्ता चीखने लगे हैं, "सिद्धारमैया ने वोट की वजह से हिन्दू समाज को बाँट दिया है !"
सिद्धारमैया का चक्रव्यूह सचमुच परेशान करने लगा है !