सोनभद्र में जारी है आदिवासियों पर दमन, सच बोलना कप्तान साहब को गवारा नहीं
लोकतंत्र के लिए पुलिस दमन के खिलाफ प्रतिकार अभियान तेज
सोनभद्र, 29 जून। सोनभद्र में आदिवासियों के हितों के लिए शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक आवाज उठाने वाले स्वराज अभियान व आदिवासी वनवासी महासभा के नेताओं और आदिवासियों पर दमन ढाया जा रहा है। फर्जी मुकदमों में स्वराज अभियान के नेता मुरता के प्रधान डा0 चंद्रदेव गोंड़ ओर ओबरा विधानसभा से प्रत्याशी रहे आदिवासी नेता कृपाशंकर पनिका को जेल भेज दिया गया है, मजदूर किसान मंच के जिला संयोजक राजेन्द्र प्रसाद गोंड़, सहसंयोजक देव कुमार विश्वकर्मा के घरों पर छापे डाले जा रहे है और अन्य नेताओं को भी गिरफ्तार धमकी मिल रही है। यहीं नहीं दुद्धी तहसील में वनाधिकार कानून के तहत दावा करने वाले सैकड़ों आदिवासियों को भूमफिया घोषित कर वन विभाग ने उनके खिलाफ मुकदमे कायम कर दिए है। आदिवासियों पर इन हमलों के खिलाफ जनपद के राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों व सम्मानित नागरिकों ने लोकतंत्र के लिए पुलिस दमन प्रतिकार अभियान तेज कर दिया है।
आदिवासियों को नहीं है आदिवासी का दर्जा
उ. प्र. में मजाक बनाकर रख दिया गया वनाधिकार कानून को
आमतौर पर पूरे प्रदेश में आदिवासी और वनाश्रित पुश्तैनी रूप से जंगल की जमीनों पर बसे हैं। इनके वनभूमि पर अधिकार के लिए संसद द्वारा कानून बनाया गया, लेकिन इस कानून को उ. प्र. में मजाक बनाकर रख दिया गया। प्रदेश में वनाधिकार कानून के तहत जमा किए गए 92433 में से 73416 दावे बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए और सुनवाई का अवसर दिए खारिज कर दिए गए, जिनमें से सोनभद्र जनपद में 65526 दावों में से 53506 दावें, चंदौली में 14088 में से 13998 दावें, मिर्जापुर में 3413 में से 3128 दावें खारिज किए गए।
मुख्य न्यायाधीश के आदेश को दिखाया ठेंगा
स्वराज अभियान के दिनकर कपूर कहते हैं कि एक तरफ यहां वन माफिया पुलिस और वनविभाग के संरक्षण में मौज मारता है वहीं आदिवासियों और वनाश्रितों को उनका वनाधिकार देने की जगह आए दिन वन विभाग पुश्तैनी जमीन से उनको उजाड़ता है और वह पुलिस व वन विभाग की जोर जुल्म का शिकार होते हैं। इस समय हालत यह है कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के आदिवासी वनवासी महासभा की जनहित याचिका संख्या 56003/2017 में दिए आदेश कि वनाधिकार कानून के तहत दावा करने वाले आदिवासी वनवासी महासभा के सदस्य अनुसूचित जनजाति व अन्य परपरागत वन निवासी जातियों के किसी भी प्रकार के उत्पीड़न नहीं किया जाएगा, के बावजूद दुद्धी तहसील के नगंवा, अमवार, रन्दह, गड़ीया, चैरी, तुर्रीडीह, महुअरिया, फरीपान, दुम्हान, सुपांचुआ, विश्रामपुर, भलुही, लौबंद, गम्भीरपुर के सैकड़ों लोगों पर वनाधिकार के तहत दावा करने के बावजूद वन विभाग ने मुकदमे दर्ज कर दिए हैं।
क्या है लीलासी गांव प्रकरण
इसी पृष्ठ भूमि में 19 मई को लीलासी गांव में 12 आदिवासियों को जिनमें ज्यादातर महिलाएं थी, को वनभूमि विवाद में जेल भेजे जाने की घटना अखबारों द्वारा संज्ञान में आने के बाद स्वराज अभियान से जुड़ी आदिवासी वनवासी महासभा और मजदूर किसान मंच की टीम ने 20 मई को सोनभद्र के म्योरपुर थाने के लिलासी गांव का दौरा किया और ग्रामीणों से बातचीत के बाद यह पाया कि गिरफ्तार की गयी महिलाओं को वन भूमि से नहीं अपितु उनके घरों से गिरफ्तार किया गया है।
जांच करके सत्यता सामने लाना पुलिस अधीक्षक सोनभद्र को बेहद नागवार लगा
दिनकर कपूर कहते हैं कि जांच करके सत्यता सामने लाने की यह सामान्य लोकतांत्रिक कार्यवाही भी पुलिस अधीक्षक सोनभद्र महोदय को बेहद नागवार लगी। एफआईआर में नाम तक न होने के बाद भी एसपी के निर्देश पर 22 मई 2018 को लिलासी गांव में आदिवासियों व वन विभाग और पुलिस के बीच हुई विवाद की घटना के बाद जांच टीम के सदस्यों को सबक सिखाने के लिए उनके घरों पर छापे डाले जाने लगे। जांच टीम के सदस्य मुरता के प्रधान डा0 चंद्रदेव गोंड़ को 26 मई को एडीओ पंचायत दुद्धी फोन करके कहते हैं कि एसडीएम दुद्धी आपसे बात करना चाहते हैं इस पर डा. चंद्रदेव द्वारा एसडीएम दुद्धी को फोन किया जाता है तो वह गांव की पेयजल समस्या पर वार्ता करने के लिए अपने कार्यालय बुलाते हैं जहां से दुद्धी पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर चोपन थाने ले जाया गया।
चोपन थाने में 26 मई को आधी रात में खुद एसपी महोदय जाते हैं और चंद्रदेव पर सरकारी गवाह बनने के लिए दबाब बनाते हुए कहते हैं कि तुम सरकारी गवाह बन जाओ और अपने नेताओं का नाम बताओं तो बाकी लोगों की हम नेतागिरी छुड़वा देंगें। इससे इंकार करने पर चोपन से ही उनको जेल भेज दिया जाता है और फर्जी तरीके से दिखाया जाता है कि उन्हें 27 मई को मुखबिर की सूचना पर आश्रम मोड़ म्योरपुर से गिरफ्तार किया गया है।
दिनकर कपूर कहते हैं कि यदि 26 मई की इस घटना की ही जांच करा ली जाए तो सच्चाई सामने आ जाएगी। हालत यह है कि पहली बार विवेचना में 24 मई को एफआईआर दर्ज कराने वाले वन विभाग के दरोगा का ही बयान बदलकर हमारे नेताओ का नाम डाला जाता है। बयान में कहा गया है कि हमने 19 मई को लिलासी गांव में बैठक कर लोगों को भड़काया। यदि बैठक कर लोगों को भड़काने की बात सत्य होती तो स्वभावतः हमारा नाम 22 मई को दर्ज की गई एफआईआर में होता। यहीं नहीं एफआईआर में कहा जाता है कि वहां पर ग्रामीणों द्वारा पेड़ काटे गए हैं। लेकिन विवेचना में यह नहीं बताया जाता कि कटे हुए पेड़ कहां है और किसकी अभिरक्षा में हैं। एफआईआर और विवेचना को देख लें तो पुलिस द्वारा रची जा रही मनगढ़त कहानियों का सच आपके सामने होगा।
दिनकर कपूर कहते हैं कि हमारा यह दमन और उत्पीड़न महज इसलिए किया जा रहा है क्योंकि हम लम्बे समय से इस इलाके में जमीन, सम्मान और आदिवासियों की पहचान के लिए कार्यरत है। आप जानते हैं कि स्वराज अभियान के बनने से पहले से ही आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट और उससे जुड़ी आदिवासी वनवासी महासभा आदिवासियों और वनाश्रितों को पुश्तैनी वन भूमि पर टाईटिल मिले इसके लिए प्रयासरत रही है। हमने इसके लिए माननीय उच्च न्यायालय में जनहित याचिका संख्या 56003/2017 दाखिल की थी। जिसमें माननीय मुख्य न्यायाधीश की खण्डपीठ ने पिछले वर्ष 24 नवम्बर को आदेश दिया था कि वनाधिकार कानून के तहत दावा करने वाले महासभा के सदस्य आदिवासियों और अन्य वनाश्रितों का उत्पीड़न अगली सुनवाई तक नहीं किया जाएगा।
दिनकर कपूर कहते हैं कि आप खुद देखिए खनिज और संसाधनों से भरपूर सोनभद्र की हालत क्या है? यहां प्रदूषित पानी और मलेरिया जैसी बीमारियों से हर वर्ष बड़े पैमाने पर बच्चों और ग्रामीणों की असमय मौतें होती है। यहां के उद्योगों में एक ही स्थान पर बीसियों सालों से कार्यरत ठेका मजदूरों को नियमित नहीं किया जाता। बड़े पैमाने पर टमाटर पैदा करने वाले किसानों को उचित मूल्य और संरक्षण न होने के कारण हर वर्ष अपना टमाटर फेंकना पड़ता है। किसानों की फसल की खरीद नहीं होती और उसका वाजिब दाम नहीं मिलता। मनरेगा ठप्प पड़ी हुई है, लोगों को काम नहीं मिल रहा है करोड़ों रूपए मजदूरी का बकाया है। पानी के जबर्दस्त संकट से यह क्षेत्र गुजर रहा है। अंधाधुंध खनन से पर्यावरण व आम जनता का जीवन खतरे में है। कुल मिलाकर इस पूरे इलाके की स्थिति भयावह बनी हुई है। यहां के लिए जरूरी इन सवालों को हल करने की जगह अब अगला हथियार आ गया कि राजनीतिक कार्यकर्ता बयान तक न दें। बयान देने की सामान्य लोकतांत्रिक कार्यवाही पर चौतरफा दमन ढ़ाया जा रहा है और इस दमन अभियान को एसपी खुद नेतृत्व दे रहे हैं। इस दमन अभियान को रोकने के लिए जनपद के राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, अधिवक्ताओं और सम्मानित नागरिकों ने दो बार डीएम से मिलकर पत्रक दिया। इस प्रतिनिधिमण्ड़ल में सपा, कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई, जनता दल यू, लोकदल, प्रधान संगठन, जन मंच, स्वराज अभियान, वर्कर्स फ्रंट, आदिवासी वनवासी महासभा समेत कई संगठनों के प्रतिनिधि शामिल थे। स्वराज अभियान की तरफ से मुख्यमंत्री कार्यालय को भी पत्रक दिया गया। जन मंच के संयोजक व पूर्व आई0 जी0 पुलिस एस0 आर0 दारापुरी ने पुलिस द्वारा जारी दमन अभियान की शिकायत लखनऊ में प्रमुख सचिव (गृह) श्री अरविन्द कुमार और अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) श्री आनंद कुमार से मिलकर की। इसके अलावा एससी-एसटी कमीशन के अध्यक्ष बृजलाल से मिलकर भी जांच कराने के लिए पत्रक दिया गया।